सिंधु घाटी सभ्यता का विकास : वर्षा ने निभाया अहम किरदार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सिंधु घाटी सभ्यता के संदर्भ में कुछ नए अध्ययन सामने आए हैं, जिनसे इस सभ्यता के संबंध में कुछ बेहद अहम एवं उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है। इस लेख के अंतर्गत हमने इन्हीं बिंदुओं के संदर्भ में संक्षेप में बताने का प्रयास किया है।

पृष्ठभूमि

  • सिंधु घाटी सभ्यता सुनियोजित नगरीय मानव बस्तियों के सबसे पुराने ज्ञात उदाहरणों में से एक है।
  • 3000 से 1500 ई.पू. के बीच लगभग 1500 सालों तक इस सभ्यता का विकास भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों, उत्तरी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के आस-पास के क्षेत्रों और मुख्यतः पाकिस्तान में सिंधु नदी के आस-पास के क्षेत्रों में हुआ।
  • 2600 और 1900 ई.पू. के बीच (600-700 वर्ष का समय) का काल सर्वश्रेष्ठ काल था, जिसमें उस काल के सबसे आधुनिक तथा परिपक्व हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और राखीगढ़ी जैसी नगरीय बस्तियों का विकास हुआ। 

सिंधु घाटी सभ्यता का पतन

  • सिंधु घाटी सभ्यता के पतन और विघटन के लिये कई कारकों को उत्तरदायी माना जाता है, जैसे- जलवायु, विवर्तनिकी इत्यादि। कुछ विशेषज्ञों द्वारा इस सभ्यता के पतन के लिये सामाजिक कारणों को भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है। इन कारणों के समर्थन में उपलब्ध साक्ष्यों की सीमा अलग-अलग है।
  • अधिकांश वैज्ञानिक और पुरातत्त्वविदों का मानना है कि अन्य प्राचीन सभ्यताओं के समान इस क्षेत्र में भी सभ्यता के अस्तित्व के लिये प्रचुर मात्रा में पानी की उपलब्धता सबसे महत्वपूर्ण थी।
  • हरियाणा में फ़तेहाबाद और टोहाना के बीच (वर्तमान में विलुप्त) प्रमुख सरिताओं की उपस्थिति तथा इनके किनारों पर अवस्थित पुरातात्त्विक टीलों की सघनता, जल के बारहमासी स्रोत सिंधु सभ्यता के लोगों की निर्भरता को प्रदर्शित करते हैं।
  • इस संबंध में प्रचुर मात्रा में भूगर्भिक तथा जलवायवीय अध्ययन सामग्री उपलब्ध है जो उस समयावधि में उस क्षेत्र में अच्छी वर्षा के स्वरूप को इंगित करती है। हालाँकि, इसके साथ-साथ कुछ प्रतिकूल साक्ष्य भी उपलब्ध हैं जो दर्शाते हैं कि सभ्यता का विकास अधिकांशतः शुष्क समय में हुआ होगा। 

हाल के अध्ययन से प्राप्त जानकारी

  • भारत, यूनाइटेड किंगडम तथा फ्राँस के भू-वैज्ञानिकों, पुरातत्त्वविदों और जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में ‘Nature’ नामक वैज्ञानिक रिपोर्ट में ताज़ा प्रमाण प्रस्तुत किया गया है जो इस बात को स्पष्ट करता है कि सिंधु घाटी सभ्यता वृष्टि बहुल काल में अपने शिखर पर थी।
  • वैज्ञानिकों ने 9000 और 2000 ईसा पूर्व के बीच क्षेत्र में आर्द्र और शुष्क चरणों का एक उच्च विश्लेषण वाला कालक्रम स्थापित किया है। साथ ही इसमें यह भी दर्शाया गया है कि आर्द्र चरण के समय सभ्यता लगभग अपने चरम पर थी, विशेषकर उस समय जब मानसून लगभग 3000 से 2400 ईसा पूर्व के बीच अपनी चरमावस्था में था।
  • आश्चर्य की बात यह है कि इस सभ्यता का विस्तार क्षेत्र शुष्क चरण की शुरुआत के साथ भी मेल खाता है।
  • वैज्ञानिकों के इस समूह द्वारा उत्तरी राजस्थान के नोहर-भादरा क्षेत्र (थार मरुस्थल के किनारे स्थित) के करसन्डी गाँव के समीप सूखी हुई झील में जिप्सम के निक्षेपों के अध्ययन के आधार पर यह जानकारी दी गई है।
  • इस क्षेत्र में इस प्रकार की बहुत-सी प्राचीन झीलें अवस्थित हैं, जो प्रायः पिछले सिंधु शहरीकरण के विस्तार और संकुचन संबंधी अध्ययनों का भी केंद्र रही हैं, लेकिन यह पहली बार है कि वैज्ञानिक उन क्षेत्रों पर वर्षा की भिन्नता का विस्तृत कालक्रम प्रस्तुत करने में सक्षम हैं।
  • राखीगढ़ी से लगभग 120 किमी. उत्तर-पूर्व में स्थित करसंडी प्राचीन झील, एक महत्त्वपूर्ण सिंधु बस्ती है जहाँ हाल ही में हुई खुदाई में कुछ रोमांचक जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं।
  • इसके अतिरिक्त कालीबंगा और करणपुरा के पास भी सिंधु सभ्यता के कुछ महत्वपूर्ण केंद्र अवस्थित हैं।

जिप्सम – साक्ष्य के रूप में 

  • आपको बता दें कि इन क्षेत्रों की प्राचीन झीलों में जिप्सम (रासायनिक रूप से कैल्शियम सल्फेट, सामान्य रूप से लवणीय जल के वाष्पोत्सर्जन के बाद बचा खनिज निक्षेप) पाया जाता है। इसके रासायनिक विश्लेषण से वर्षा के समय इन झीलों में जल के संयोजन तथा पर्यावरणीय दशाओं के संबंध में अच्छे प्रमाण प्राप्त होते हैं।
  • उदाहरण के लिये यदि निक्षेप शुद्ध जिप्सम है तो यह क्षेत्र में वर्षा न होने या बहुत कम वर्षा होने का संकेत हो सकता है। ऐसा इसलिये क्योकि इस क्षेत्र के चारों तरफ का हिस्सा बहुत रेतीला है और यदि वहाँ वर्षा होती थी तो वर्षा के कारण रेत इन झीलों में आई होगी और ये निक्षेप जिप्सम तथा रेत के मिश्रण होंगे। इसी प्रकार शुद्ध रेत वर्षा का बहुत अच्छा सूचक साबित हो सकती है।
  • वैज्ञानिकों ने जिप्सम के विभिन्न स्तर के नमूनो को एकत्र किया तथा उनका विस्तृत अध्ययन किया। अलग-अलग परतों की आयु का अनुमान लगाने के लिये सूक्ष्म ओस्टरकोड कार्बन आयु का प्रयोग किया गया तथा इन परतों से जिप्सम में ऑक्सीजन और ड्यूटीरियम के समस्थानिकों के मिश्रण का अध्ययन किया गया।
  • इस अध्ययन के आधार पर, वे इस क्षेत्र में वर्षा भिन्नता के लिये एक विशिष्ट समयरेखा प्रस्तुत करने में सक्षम हुए हैं। उन्होंने अनुमान लगाया है कि यह क्षेत्र (राजस्थान का उत्तरी भाग) लगभग 11,200 साल पहले अर्थात् लगभग 9000 ईसा पूर्व तक सूखाग्रस्त था। लेकिन, 9000 और 3000 ईसा पूर्व के बीच, इस क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा हुई, जिससे यह मानव बस्ती के लिये अनुकूल हो गया।
  • वैज्ञानिकों का मानना है कि मानसून की तीव्रता 3000 और 2400 ईसा पूर्व के बीच देखी गई थी, जिसके बाद आधुनिक स्थिति के समान एक और शुष्क चरण का प्रारंभ हुआ।
  • यह समयरेखा लगभग सिंधु सभ्यता के उत्थान और पतन के साथ मेल खाती है।

सिंधु सभ्यता के महान शहरों को बनाए रखने तथा इनके नष्ट होने के पीछे जलवायु मुख्य कारणों में से एक हो सकता था। इस तथ्य को मज़बूत करने के लिये इसके कई और क्षेत्रों में ज़्यादा काम करने की आवश्यकता है। अध्ययन में आधुनिक समाज के लिये भी प्रभाव हैं जिसमें जलवायु परिवर्तन और वर्षा तथा तापमान में प्रत्यक्ष भिन्नताएँ देखी जा रही हैं।