ग्रीवा कैंसर के उपचार हेतु एक बेहतर विकल्प की खोज

संदर्भ
भारत में कैंसर से होने वाली महिलाओं की मौतों का दूसरा प्रमुख कारण गर्भाशय ग्रीवा (uterine cervix) कैंसर है| इसे ‘ग्रीवा कैंसर’ (cervical cancer) भी कहा जाता है| विदित हो कि देश में प्रतिवर्ष तक़रीबन एक लाख महिलाएँ इस रोग से पीड़ित होती हैं|

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि नई दिल्ली स्थित ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी’ (National Institute of Immunology-NII) ने SPAG9 नामक ट्यूमर एंटीजेन की खोज की है, जिसका उपयोग गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के विरुद्ध एक हथियार के रूप में किया जा सकता है| 
  • इस एंटीजेन को प्रथम चरण के परीक्षणों में सफल पाया गया है| इसका अर्थ यह है कि यह मानवीय उपयोग के लिये सुरक्षित सिद्ध हो चुका है| 
  • इसकी कुशलता की जाँच करने हेतु दूसरे चरण के परीक्षण किये जा रहे हैं| वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगले वर्ष तक इसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे|
  • एंटीजेन पर आधारित चिकित्सकीय वैक्सीन का परीक्षण चेन्नई के अड्यार स्थित कैंसर संस्थान के 54 रोगियों पर किया गया| ये परीक्षण डॉ. टी. राजकुमार के नेतृत्व में कैंसर चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा किये गए थे|
  • मनुष्य के शरीर में बाहरी तत्त्वों जैसे जीवाणु अथवा विषाणु का प्रवेश सामान्यतः फाइटर कोशिकाओं (जिन्हें टी-कोशिकाएँ कहा जाता है) को बिखरा देता है| विदित हो कि ये कोशिकाएँ रोगाणुओं को घेरती हैं और उन्हें नष्ट कर देती हैं|
  • वस्तुतः प्रत्येक प्रकार के विषाणु अथवा जीवाणुओं के लिये विशिष्ट एंटीजेन टी- कोशिकाओं की आवश्यकता होती है| अतः टीकाकरण शरीर को खतरों का सामना करने की क्षमता प्रदान करता है और एंटीजन को शरीर पर होने वाले किसी भी प्रकार के बाह्य आक्रमण का सामना करने के लिये सदैव तैयार रखता है|

संक्रमण के कारण

  • खराब स्वास्थ्य, कुपोषण और एक अस्वच्छ वातावरण मानव पैपिलोमा वायरस (Human papillomavirus-HPV)  संक्रमण के मुख्य कारण हैं| इसी से गर्भाशय ग्रीवा नामक कैंसर होता है|
  • सामान्यतः हमारे शरीर में ट्यूमर को नष्ट करने वाले जीन और प्रोटीन उपस्थित होते हैं| ये ट्यूमर के निर्माण को रोकने में सक्षम होते हैं| ट्यूमर में उपस्थित कोशिकाएं बमुश्किल ही किसी अन्य कोशिकाओं से अनियंत्रित रूप से जुड़ती हैं| 

प्रतिरक्षा चिकित्सा (Immunotherapy) का महत्त्व

  • प्रतिरक्षा चिकित्सा एक नया दृष्टिकोण है जो कैंसर से लड़ने की शरीर की आतंरिक क्षमता का आकलन करती है| इसके अंतर्गत या तो प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूती प्रदान की जाती है अथवा अवसादग्रस्त कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने तथा उन्हें मारने के लिये टी-कोशिकाओं को प्रशिक्षित किया जाता है| 
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी के वैज्ञानिक ग्रीवा कैंसर के विरुद्ध  नए हथियार को विकसित करने के लिये इस रणनीति का उपयोग कर रहे हैं| 
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, वे रोगी के रक्त से मोनोसाइट्स (monocytes) नामक कोशिकाएँ लेते हैं और उन्हें डेंडरीटिक कोशिकाओं (dendritic cells) में रूपांतरित कर देते हैं| इन कोशिकाओं में शरीर में उपस्थित फाइटर कोशिकाओं अथवा टी कोशिकाओं को उत्तेजित करने वाले एंटीजेन होते हैं| इसके पश्चात् इन कोशिकाओं को 10 दिन के लिये ट्यूमर एंटीजेन SPAG9 के साथ रख दिया जाता है तथा रोगी को टीके के रूप में वापस दे दिया जाता है| 
  • एजुकेटेड टी कोशिकाएँ’ (educated T cells ) कैंसर कोशिकाओं में विभेद करने तथा उनसे होने वाले खतरे का सामना करने में सक्षम होती हैं|

निष्कर्ष
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी ने यह सूचित किया है कि वे बेंगलुरु के सिंजेने इंटरनेशनल (बायोकॉन लिमिटेड) में रिकोम्बिनेंट SPAG9 का निर्माण कर रहे हैं| यदि यह परीक्षण सफल होता है तो यह भारत में विकसित किया जाने वाला पहला अणु होगा वैज्ञानिकों की इस खोज ने विश्वस्तर पर कैंसर जैसे रोग से लड़ने के एक आदर्श तरीके के विकास हेतु मार्ग खोल दिया है|