एमनेस्टी रिपोर्ट ने भारत के देशद्रोह कानून को दोषी बताया

एमनेस्टी इंटरनेशनल की वार्षिक रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड ह्यूमन राइट्स रिपोर्ट 2016-17’ (The State of the World’s Human Rights Report) के द्वारा भारत में मानव अधिकारों के उल्लंघन के सम्बन्ध में चिंता व्यक्त की गई है| उल्लेखनीय है कि विश्व स्तर पर यह रिपोर्ट 21 फरवरी को जारी की गई है| इस रिपोर्ट के अंतर्गत सरकार की आलोचनाओं को शांत करने तथा सिविल सोसाइटी संगठनों (civil society organizations) को ध्वस्त करने के लिये देशद्रोह कानून के साथ-साथ विदेशी मुद्रा (नियामक) अधिनियम [Foreign Currency (Regulation) Act - FCRA] के उपयोग पर भी रोक लगा दी है|

प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट के अंतर्गत, विशेष रूप से अधिवक्ता समूहों के एफसीआरए नामांकन को समाप्त करने तथा  सरकार द्वारा बिना कोई वैध कारण बताए 25 गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए लाइसेंसों को नवीकृत करने से इनकार करने के कारण संबंधी मुद्दों पर विशेष बल दिया गया है|
  • ध्यातव्य है कि बिना किसी वैध कारण के लाइसेंसों का नवीकरण करने से इनकार करना वस्तुतः संघ बनाने की स्वतंत्रता (Right to Freedom of Association) के अधिकार का उल्लंघन करना है|
  • भारत के विषय में एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा स्पष्ट किया गया है कि भारत में कई मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं और पत्रकारों को राज्य और गैर-राज्य अभिकर्ताओं (Non – state actors) के विरुद्ध सूचनाएँ प्रसारित करने के आरोप में उत्पन्न खतरों अथवा हमलों का सामना करना पड़ता|
  • गौरतलब है कि उक्त रिपोर्ट में विशेषकर दो पत्रकारों करुण मिश्रा और राजदेव रंजन की मौत की ओर संकेत करते हुए ऐसा कहा गया है|
  • विदित हो कि उक्त दोनों पत्रकारों को सुलतानपुर (उत्तर प्रदेश) तथा सिवान (बिहार) के विषय में रिपोर्टिंग करने का आरोप लगाते हुए मौत के घाट उतार दिया गया था|
  • इस रिपोर्ट में भारत के संबंध में ‘जाति आधारित भेदभाव और हिंसा’ (caste-based discrimination and violation) नामक एक शीषर्क के अंतर्गत यह सूचित किया गया है कि भारत में आज भी दलितों और आदिवासियों द्वारा उनके विरुद्ध कहे जाने वाले अपशब्दों एवं अपमानों का चुपचाप सामना करना पड़ता है|

रोहित वेमुला मामला  

  • इस रिपोर्ट के अंतर्गत एक दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के साथ-साथ उना में एक गौ सतर्कता समूह (cow vigilante group) द्वारा दलित पुरुषों पर हमला तथा सामाजिक स्थानों एवं सार्वजनिक सेवाओं तक अपनी पहुँच बनाने में प्रयासरत दलितों के साथ किये जाने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार के संबंध में हुए राष्ट्र-स्तरीय विरोध के सन्दर्भ में भी प्रकाश डाला गया है|

बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराध

  • इस रिपोर्ट के अंतर्गत इस बात की ओर इशारा किया गया है कि वर्ष 2015 में भारत में बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्या में 5% की वृद्धि दर्ज़ की गई है| 
  • हालाँकि इस रिपोर्ट में बाल श्रम कानून में भारत द्वारा किये गए संशोधनों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया था|
  • ध्यातव्य है कि बाल श्रम कानून में हुए संशोधनों के अंतर्गत, 14 वर्ष की आयु से कम के बच्चे केवल पारिवारिक उद्यमों (family enterprises) में ही कार्य कर सकते हैं, जबकि 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को ऐसे कार्य करने की अनुमति प्रदान की गई है जो खतरनाक न हों|
  • इस रिपोर्ट में इस बात की ओर भी संकेत किया गया है कि वर्ष 2016 के अगस्त माह में भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप भी परिवर्तित किया गया है, तथापि इस नए प्रारूप में मानवाधिकार शिक्षा के संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया गया जो कि चिंता की बात है|
  • इसके अतिरिक्त ‘सांप्रदायिक और नैतिक हिंसा’ (communal and ethical violance) खंड के अंतर्गत यह सूचना दी गई है  कि गुजरात ,हरियाणा, मध्यप्रदेश और कर्नाटक आदि राज्यों में गौ सतर्कता समूहों द्वारा बहुत से लोगों को प्रताड़ित किया गया उन पर हमले किये गए|

इसके अतिरिक्त अन्य न्यायिक मौतें

  • इस रिपोर्ट में विभिन्न राज्यों (जिनमें मणिपुर, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा और मध्य प्रदेश शामिल हैं) में होने वाली अतिरिक्त न्यायिक मौतों (extra-judicial killings) के विषय में भी चिंता व्यक्त की गई हैं|   
  • इसके अलावा इस रिपोर्ट में वर्ष 2016 के जुलाई माह में कश्मीर में हुई हिज़बुल मुज़ाहिदीन नेता बुरहान वानी की मौत के पश्चात् जम्मू-कश्मीर में उपजे विरोध पर नियंत्रण करने के संबंध में भारत की असफलता की जमकर आलोचना भी की गई है|
  • उक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के सुरक्षा बलों के द्वारा विभिन्न अवसरों पर प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध विवेकाधीन एवं अत्यधिक बल का उपयोग किया गया, जो कि सर्वथा अनुचित था|