ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज आरक्षण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज आरक्षण की कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया है।

प्रमुख बिंदु

  • ऊर्ध्वाधर आरक्षण:
    • ऊर्ध्वाधर आरक्षण (Vertical Reservation) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण को संदर्भित करता है।
    • यह कानून के तहत निर्दिष्ट प्रत्येक समूहों के लिये अलग से लागू होता है।
    • उदाहरण: अनुच्छेद 16 (4) ऊर्ध्वाधर आरक्षण की परिकल्पना करता है।
  • क्षैतिज आरक्षण:
    • क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) के तहत ऊर्ध्वाधर श्रेणियों से एक विशेष वर्ग जैसे- महिलाओं, बुजुर्गों, ट्रांसजेंडर समुदाय और विकलांग व्यक्तियों आदि को निकालकर आरक्षण दिया जाता है।
    • उदाहरण: अनुच्छेद 15 (3) क्षैतिज आरक्षण की परिकल्पना करता है।
  • आरक्षण का अनुप्रयोग:
    • क्षैतिज कोटा (Quota) को ऊर्ध्वाधर श्रेणी से अलग लागू किया जाता है।
    • उदाहरण के लिये यदि महिलाओं के पास 50% क्षैतिज कोटा है तो चयनित उम्मीदवारों (Candidates) में से आधे को ऊर्ध्वाधर कोटा श्रेणी जैसे- अनुसूचित जाति, अनारक्षित वर्ग इत्यादि की महिला होना चाहिये।
  • संबंधित मामले
    • वर्ष 2020 में सौरव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य वाद में कांस्टेबलों के पदों की चयन प्रक्रिया में आरक्षण को लागू करने से उत्पन्न मुद्दे का समाधान किया गया।
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों द्वारा उच्च ग्रेड हासिल करने के बाद भी उन्हें अपनी श्रेणियों तक सीमित रखने की नीति का अनुसरण किया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
    • न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि ऊर्ध्वाधर- क्षैतिज दोनों ही आरक्षित श्रेणियों के तहत आने वाला कोई व्यक्ति ऊर्ध्वाधर आरक्षण के बिना ही अर्हता के लिये पर्याप्त अंक हासिल कर लेता है तो उस व्यक्ति को ऊर्ध्वाधर आरक्षण के बिना अर्हता प्राप्त के रूप में गिना जाएगा और उसे सामान्य श्रेणी में क्षैतिज कोटा से बाहर नहीं किया जाएगा।
    • न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के तर्क का अर्थ है कि सामान्य वर्ग केवल उच्च जातियों के लिये 'आरक्षित' था।
  • महत्त्व:
    • न्यायालय का यह निर्णय आरक्षण को लेकर स्पष्टता प्रदान करेगा और सरकारों के लिये आरक्षण को लागू करना आसान बना देगा।
    • यदि उच्च स्कोरिंग उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी के तहत भर्ती किया जाएगा तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के अधिक ज़रूरतमंद उम्मीदवारों को लाभ मिलेगा।

आरक्षण

  • आरक्षण सकारात्मक विभेद का एक रूप है, जो हाशिये के वर्गों के बीच समानता को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया है, ताकि उन्हें सामाजिक और ऐतिहासिक अन्याय से बचाया जा सके।
  • सामान्यतः इसका अभिप्राय रोज़गार और शिक्षा में समाज के हाशिये पर मौजूद वर्गों को वरीयता देने से है।
  • इस अवधारणा का मूल उद्देश्य वर्षों से भेदभाव का सामना कर रहे वंचित समूहों को बढ़ावा देना और उनका विकास सुनिश्चित करना है।
  • ज्ञात हो कि भारत में एक वर्ग विशेष को जातीयता के आधार पर ऐतिहासिक रूप से भेदभाव का सामना करना पड़ा है।

भारत में आरक्षण से संबंधित प्रावधान

  • संविधान का अनुच्छेद 15(3) महिलाओं के पक्ष में सुरक्षात्मक विभेद की अनुमति देता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 15 (4) और अनुच्छेद 16 (4) राज्य और केंद्र सरकारों को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये सरकारी सेवाओं में सीटें आरक्षित करने में सक्षम बनाते हैं।
  • वर्ष 1995 में संविधान में 77वाँ संविधान संशोधन किया गया और अनुच्छेद 16 में एक नया खंड (4A) शामिल किया गया, जो सरकार को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  • बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने एक आरक्षण संबंधी मामले में अनुच्छेद-32 के तहत दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार नहीं है।
  • वर्ष 2001 में 85वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 16 के खंड (4A) को संशोधित किया गया और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये ‘परिणामी वरिष्ठता’ का प्रावधान किया।
  • वर्ष 2000 में 81वाँ संविधान संशोधन किया गया, जिसने राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित बीते वर्षों की शेष रिक्तियों को अगले वर्ष हस्तांतरित करने की अनुमति दी, जिससे उस वर्ष की कुल रिक्तियों पर 50 प्रतिशत के आरक्षण की सीमा का नियम शून्य हो जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332 क्रमशः संसद एवं राज्य विधानसभाओं में SC और ST समुदायों के लिये सीटों के आरक्षण के माध्यम से विशिष्ट प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हैं।
  • अनुच्छेद 243D प्रत्येक पंचायत में SC और ST के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • साथ ही यह उपलब्ध सीटों की कुल संख्या में से एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित करने का भी प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 233T प्रत्येक नगरपालिका में SC और ST के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 335 के अनुसार, प्रशासन की दक्षता बनाए रखने हेतु अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का ध्यान रखा जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस