UP PCS Mains-2024

दिवस- 38: उत्तर प्रदेश के प्रमुख भौतिक संसाधनों की पहचान कीजिये तथा इनके कुशल उपयोग में आने वाली प्रमुख बाधाओं का विश्लेषण कीजिये। (200 शब्द)

17 Apr 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 6 | उत्तर प्रदेश स्पेशल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भौतिक संसाधन शब्द की व्याख्या कीजिये।
  • उत्तर प्रदेश में उपलब्ध भौतिक संसाधनों पर चर्चा कीजिये।
  • इन संसाधनों के दोहन में आने वाली चुनौतियों का विवरण दीजिये।
  • निष्कर्ष के साथ उत्तर को समाप्त कीजिये।

परिचय:

भौतिक संसाधनों में अंतर्निहित शैलें, मृदा, वायु और जल शामिल हैं जो स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के अभिन्न अंग हैं। इनमें भूवैज्ञानिक संरचनाएँ भी शामिल हैं, जैसे ज्वालामुखी, गुहाएँ, घाटियाँ और जीवाश्म जो पृथ्वी पर जीवन का व्याख्यान करते हैं।

मुख्य भाग:

उत्तर प्रदेश में उपलब्ध भौतिक संसाधन:

  • ऊर्जा: राज्य के विकास के साथ-साथ ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है। यह दो स्रोतों से प्राप्त होती है:
  • परंपरागत स्रोत: ऊर्जा के ऐसे स्रोत जिन्हें एक बार इस्तेमाल करने के बाद दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, उन्हें "परंपरागत ऊर्जा स्रोत या "अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन" कहा जाता है। उदाहरण के लिये, मेजा थर्मल पावर स्टेशन प्रयागराज ज़िले में स्थित एक कोयला आधारित संयंत्र है।
  • गैर-परंपरागत स्रोत: ये ऊर्जा के वे स्रोत हैं जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा निरंतर नवीनीकृत होते रहते हैं। उदाहरण के लिये, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, आदि। राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान के एक आकलन के अनुसार, उत्तर प्रदेश में लगभग 22.83 गीगावाट की सौर क्षमता है, जबकि इसकी स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता 4,727 मेगावाट है।
  • खनिज: उत्तर प्रदेश की भूवैज्ञानिक संरचना आग्नेय, अवसादी और कायांतरित खनिज भंडारों के अनुकूल है।
  • बॉक्साइट चित्रकूट, सोनभद्र, चंदौली और बाँदा ज़िलों में पाया जाता है।
  • कोयला सोनभद्र ज़िले में पाया जाता है और इसका उपयोग सिंगरौली सुपर थर्मल पावर प्लांट में किया जाता है।
  • हीरे के भंडार बाँदा और मिर्जापुर ज़िलों में पाए जाते हैं।
  • मृदा: उत्तर प्रदेश का एक बड़ा क्षेत्र जलोढ़ मृदा की गहरी परत से आच्छादित है, जो मुख्य रूप से गंगा नदी प्रणाली की धीमी गति से बहने वाली नदियों द्वारा निर्मित है।
    • गंगा का मैदान बहुत उपजाऊ मैदान है जहाँ रबी और खरीफ की फसलें उगाई जाती हैं, उदाहरण के लिये, चावल, गेहूँ, बाजरा, चना आदि।
    • गन्ना इस क्षेत्र की प्रमुख नकदी फसल है।
  • जल: उत्तर प्रदेश में कई नदियाँ बहती हैं जो उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विंध्य पर्वतमाला से निकलती हैं।
    • गंगा और उसकी सहायक नदियाँ, यमुना, रामगंगा, गोमती, घाघरा और गंडक नदियाँ हिमालय की निरंतर हिम से पोषित होती हैं।
    • चंबल, बेतवा और केन नदियाँ प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र से निकलती हैं और यमुना में मिलने से पहले राज्य के दक्षिण-पश्चिमी भाग में बहती हैं।
  • वन: उत्तर प्रदेश में तीन मुख्य प्रकार के वन हैं: उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती, उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती और उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन। ये वन राज्य के उत्तरी, पूर्वोत्तर और दक्षिणी भागों में फैले हुए हैं।
    • तराई क्षेत्र में ज्यादातर साल के नम उष्णकटिबंधीय वन हैं, पूर्वी उत्तर प्रदेश में शुष्क पर्णपाती मिश्रित वन हैं, पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आमतौर पर सागौन या मिश्रित वन हैं, और बुंदेलखंड क्षेत्र व्यापक रूप से काँटेदार झाड़ीदार वनों से आच्छादित है।

भौतिक संसाधनों के दोहन में चुनौतियाँ:

  • नवीकरणीय ऊर्जा सुविधाएँ जो ग्रिड में ऊर्जा पहुँचाती हैं, उन्हें बहुत अधिक स्थान (भूमि अधिग्रहण की समस्या) की आवश्यकता होती है, साथ ही स्थापना और रखरखाव भी महँगा होता है।
  • सिंचाई में जल के अत्यधिक उपयोग से मृदा की लवणता बढ़ती है और भूजल का ह्रास होता है। भूजल स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार, मार्च 2020 तक उत्तर प्रदेश के 822 ब्लॉकों में से 70% और शहरी क्षेत्रों के 80% में भूजल स्तर में भारी गिरावट देखी गई।
  • खनिज अन्वेषण के क्षेत्र में पूंजी निवेश का अभाव, योग्य जनशक्ति की अपर्याप्तता, तथा ठोस खनिजों के प्रसंस्करण के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकी का अभाव।
  • उत्तर प्रदेश में मृदा अपरदन सबसे गंभीर समस्या है, जिसके परिणामस्वरूप ऊपरी मृदा नष्ट हो जाती है और भूभाग विकृत हो जाता है। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा की प्राकृतिक उर्वरता लगातार कम होती जा रही है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और वृक्षों की अवैध कटाई, अवैध खनन, अतिक्रमण गतिविधियों और अनियंत्रित चारण के कारण वनोन्मूलन, वन संसाधनों के सतत् दोहन के लिये प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

निष्कर्ष:

उत्तर प्रदेश में प्रचुर मात्रा में भौतिक संसाधन हैं, जिससे सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये राज्य की क्षमता बढ़ जाती है। अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखते हुए भौतिक संसाधनों का सतत् दोहन करने की आवश्यकता है।