शून्य बजट प्राकृतिक कृषि | 02 Nov 2019

इस कृषि पद्धति में बजट शब्द खर्च को प्रदर्शित करता है अर्थात् शून्य बजट खेती बाज़ार में उपलब्ध आगतों जिसमें रासायनिक उर्वरक और खाद शामिल है, के उपयोग के बिना प्राकृतिक आगतों द्वारा खेती पर बल देता है। इससे इस कृषि पद्धति में खर्च शून्य हो जाता है।

  • भारत में इस कृषि पद्धति का प्रचलन दक्षिण के क्षेत्रों में प्रमुख रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में है।
  • शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को पहचान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका श्री सुभाष पालेकर की मानी जाती है।

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के चार स्तंभ

जीवामृत: इसमें पालतू पशुओं के गोबर, मल-मूत्र आदि को किण्वित करके उपयोग में लाया जाता है। इससे मिट्टी में सूक्ष्म जीवों को एक अनुकूल स्थिति प्राप्त होती है।

बीजामृत: इसमें भी जीवामृत के समान सामग्री होती है। यह अंकुरों को मिट्टी एवं बीज जनित बीमारियों से बचाती है।

आच्छादन (Mulching): इसके माध्यम से मृदा में आदृता तथा वातन (Aeration) में सहायता मिलती है।

वाष्प (Moisture): वाष्प एक ऐसी स्थिति है जिसमें वायु एवं जल के कण मृदा में उपस्थित होते हैं। इससे अति सिंचाई में कमी आती है तथा कम समय के लिये ही निश्चित अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है।

ZBNF का महत्त्व

  • ZBNF वर्तमान में उच्च लागत वाले रसायन आधारित कृषि का एक बेहतर विकल्प है।
  • यह जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं को दूर करने में बहुत प्रभावी है, साथ ही ZBNF कृषि पारिस्थितिकी के अनुरूप है।
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आँकड़ों के अनुसार, कृषक परिवारों में लगभग 70% परिवार आय से अधिक व्यय करते हैं और आधे से अधिक परिवार कर्ज़ में हैं।
  • आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में ऋणग्रस्तता का स्तर लगभग 90% है, जहाँ प्रत्येक परिवार पर कर्ज़ का अत्यधिक बोझ है।
  • वर्ष 2022 तक ‘किसानों की आय दोगुनी’ करने के वादे की प्राप्ति के क्रम में ZBNF जैसी प्राकृतिक कृषि पद्धतियाँ, जो किसानों की उच्च ऋण पर निर्भरता कम करती हैं, कारगर हो सकती हैं।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में भी इसके पारिस्थितिक लाभों पर प्रकाश डाला गया है।

ZBNF की आलोचना

  • ZBNF पूरी तरह से शून्य बजट कृषि नहीं है। इसमें कई तरह की लागतें शामिल होती हैं, जैसे- गायों के रखरखाव, सिंचाई हेतु बिजली और पम्पों की लागत, श्रम आदि।
  • ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो यह प्रमाणित करे कि ZBNF में प्रयुक्त भूमि अपेक्षाकृत अधिक उत्पादक होती है।
  • भारतीय मिट्टी कार्बनिक पदार्थों की दृष्टि से कम गुणवत्ता वाली है और कई अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा मिट्टी के प्रकार के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है।
  • ZBNF अलग-अलग प्रकार की मिट्टी की समस्या के लिये एक ही तरह के सुझाव पर ज़ोर देता है, जबकि भारत में अत्यधिक भौगोलिक विविधता विद्यमान है।
  • औद्योगिक इकाइयों और नगरपालिका के कचरे से रासायनिक संदूषण या उर्वरकों एवं कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग, मिट्टी की विषाक्तता का कारण है।