द्वितीय विश्व युद्ध | 19 Feb 2021

परिचय

  • द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था।
  • इस युद्ध में दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी गुट धुरी शक्तियाँ (जर्मनी, इटली और जापान) तथा मित्र राष्ट्र (फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन) शामिल थे।
  • यह इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष था जो लगभग छह साल तक चला था।
  • इसमें लगभग 100 मिलियन लोग शामिल हुए थे और 50 मिलियन लोग (दुनिया की आबादी का लगभग 3%) मारे गए थे।

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युद्ध के कारण

द्वितीय विश्व युद्ध के कई प्रमुख कारण थे। उनमें प्रथम विश्व युद्ध के बाद होने वाली वर्साय संधि की कठोर शर्तें , आर्थिक मंदी, तुष्टीकरण की नीति, जर्मनी और जापान में सैन्यवाद का उदय, राष्ट्र संघ की विफलता आदि कारण प्रमुख हैं।

वर्साय की संधि

  • प्रथम विश्व युद्ध के बाद विजयी मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के भविष्य का फैसला किया। जर्मनी को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये मज़बूर किया गया था।
  • इस संधि के तहत जर्मनी को युद्ध का दोषी मानकर उस पर आर्थिक दंड लगाया गया, उसके प्रमुख खनिज और औपनिवेशिक क्षेत्र को ले लिये गया तथा उसे सीमित सेना रखने के लिये प्रतिबद्ध किया गया।
  • इस अपमानजनक संधि ने जर्मनी में अति-राष्ट्रवाद के प्रसार का मार्ग प्रशस्त किया।

राष्ट्र संघ की विफलता

  • राष्ट्र संघ की स्थापना वर्ष 1919 में एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में विश्व शांति को बनाए रखने के लिये की गई थी।
  • यह संगठन विश्व के सभी देशों को अपना सदस्य बनाना चाहता था ताकि उनके बीच विवाद होने पर उसे बल के बजाय बातचीत द्वारा सुलझाया जा सके।
  • राष्ट्र संघ का विचार अच्छा था, लेकिन यह सफल नहीं हुआ क्योंकि सभी देश इसमें शामिल नहीं हो सके।
  • इसके अलावा संघ के पास इटली के इथियोपिया पर या जापान के मंचूरिया क्षेत्र पर आक्रमण जैसे सैन्य आक्रमणों को रोकने के लिये अपनी सेना नहीं थी।

वर्ष 1929 की महामंदी

  • वर्ष 1930 के दशक की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने यूरोप और एशिया में अलग-अलग तरीकों से अपना प्रभाव डाला।
  • यूरोप की अधिकांश राजनीतिक शक्तियाँ जैसे- जर्मनी, इटली, स्पेन आदि अधिनायकवादी और साम्राज्यवादी सरकारों में स्थानांतरित हो गईं।
  • एशिया का संसाधन संपन्न देश जापान, एशिया और प्रशांत क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिये इन क्षेत्रों पर आक्रमण करने लगा।

फासीवाद का उदय

  • प्रथम विश्व युद्ध के विजेताओं का उद्देश्य "दुनिया को लोकतंत्र के लिये सुरक्षित करना" था।  युद्ध के बाद जर्मनी ने अन्य अधिकांश देशों की तरह लोकतांत्रिक संविधान को अपनाया।
  • इटली में सन् 1920 के दशक में राष्ट्रवादी, सैन्यवादी अधिनायकवाद की लहर को फासीवाद के नाम से जाना जाता है।
  • इस विचारधारा ने स्वयं को लोकतंत्र से अधिक प्रभावी ढंग से काम करने वाली और साम्यवाद को रोकने वाली के रूप में प्रस्तुत किया।
  • बेनिटो मुसोलिनी द्वारा वर्ष 1922 में इटली में इंटरवार (Interwar) अवधि के दौरान पहली फासीवादी तानाशाही सरकार की स्थापना की गई।

नाज़ीवाद का उदय

  • जर्मन नेशनल सोशलिस्ट (नाज़ी) पार्टी के नेता एडोल्फ हिटलर ने फासीवाद की नस्लवादी विचारधारा का प्रचार किया।
  • हिटलर ने वर्साय की संधि को पलट देने, जर्मनी की संवृद्धि धन और वैभव को पुनः बहाल करने और जर्मन लोगों के लिये अतिरिक्त लेबेन्सराम (Lebensraum- रहने की जगह) को सुरक्षित करने का वादा किया।
  • हिटलर वर्ष 1933 में जर्मन चांसलर बना और उसने आगे चलकर खुद को एक तानाशाह के रूप में स्थापित कर लिया।
  • नाज़ी शासन ने वर्ष 1941 में स्लाव, यहूदियों और हिटलर की विचारधारा के दृष्टिकोण से हीन समझे जाने वाले अन्य तत्त्वों के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया।

तुष्टिकरण की नीति

  • हिटलर ने खुले तौर पर वर्साय की संधि का उल्लंघन किया और जर्मनी की सेना तथा हथियारों का गुप्त रूप से निर्माण शुरू कर दिया।
  • हिटलर की गतिविधियों के बारे में ब्रिटेन और फ्राँस को पता था, लेकिन उन्हें लगा कि एक मज़बूत जर्मनी ही रूस के साम्यवाद के प्रसार को रोक सकता है।
  • इस तुष्टिकरण का म्यूनिख समझौता (सितंबर 1938) एक प्रमुख उदाहरण था। इस समझौते में ब्रिटेन और फ्राँस ने जर्मनी को चेकोस्लोवाकिया के उन क्षेत्रों में प्रवेश करने की अनुमति दे दी, जहाँ जर्मन-भाषी लोग रहते थे।
    • जर्मनी ने वादा किया था कि वह शेष चेकोस्लोवाकिया या किसी अन्य देश पर आक्रमण नहीं करेगा, लेकिन जर्मनी द्वारा मार्च 1939 में इस वादे को तोड़कर शेष चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण कर दिया गया।
    • इसके बाद भी ब्रिटेन और फ्राँस द्वारा सैन्य कार्रवाई नहीं की गई।

द्वितीय विश्व युद्ध की प्रमुख घटनाएँ

शुरुआत

  • अंतर्राष्ट्रीय तनाव (स्पेनिश गृह युद्ध, जर्मनी और ऑस्ट्रिया का संघ, हिटलर द्वारा सूडिटेनलैंड पर कब्ज़ा और चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण) के तीन वर्षों में अत्यधिक बढ़ जाने के कारण धुरी और मित्र शक्तियों के बीच संबंध बिगड़ने लगे।
  • जर्मनी द्वारा 1 सितंबर, 1939 को पोलैंड पर आक्रमण के दो दिन बाद ब्रिटेन और फ्राँस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
  • इस घटना ने द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी।

वाक् युद्ध

  • पश्चिमी यूरोप युद्ध के पहले कुछ महीनों के दौरान बहुत शांत था।
  • युद्ध की इस अवधि को 'वाक् युद्ध' (Phoney War) के रूप में जाना जाता है।
  • इस दौरान युद्ध की तैयारी जारी रही, लेकिन वास्तविक सैन्य संघर्ष बहुत कम हुआ। पश्चिमी यूरोपीय देशों के नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया।

रिबेंट्रोप की संधि

  • जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने वर्ष 1939 के शुरुआती दौर में पोलैंड पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया था।
  • पोलैंड को फ्राँस और ब्रिटेन द्वारा जर्मन आक्रमण के समय सहायता दिये जाने का आश्वासन प्राप्त था। हिटलर का पूरा इरादा पोलैंड पर आक्रमण करने का था, लेकिन इससे पहले वह  सोवियत संघ के विरोध को खत्म करना चाहता था।
  • यद्यपि जर्मनी और सोवियत संघ के बीच  मास्को में अगस्त 1939 में अनाक्रमण समझौता हो चुका था।

शीतकालीन, 1940

  • रूस और फिनलैंड के बीच 'शीतकालीन युद्ध' मार्च 1940 में खत्म हुआ था और अगले महीने जर्मनी ने डेनमार्क और नॉर्वे पर आक्रमण कर दिया।
  • डेनमार्क ने तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन नॉर्वे ने ब्रिटेन और फ्राँस की सहायता से जून 1940 तक जर्मनी का मुकाबला किया।

फ्राँस का पतन, 1940

  • जर्मनी ने स्केंडिनेवियाई देशों के साथ युद्ध समाप्त होने के बाद फ्राँस, बेल्जियम और हॉलैंड पर आक्रमण किया।
  • इस चरण के दौरान पश्चिमी यूरोप ने ‘तड़ित युद्ध प्रणाली’ (Blitz Krieg) का सामना किया।
    • तड़ित युद्ध प्रणाली: जर्मनी की सेना दुश्मनों पर लड़ाकू हवाई जहाज़ों से अतितीव्र गति से हवाई हमले करके उन्हें बर्बाद कर देती थी। इस तरह जर्मन सेना दुश्मनों को मुकाबला करने का मौका ही नहीं देती थी।  
  • जर्मनी ने फ्राँस में कठपुतली फ्राँसीसी विची (French Vichy) सरकार के साथ युद्धविराम पर हस्ताक्षर किये।
  • हिटलर ने फ्राँस पर विजय प्राप्त करने के बाद ब्रिटेन पर आक्रमण की तैयारी शुरू कर दी।

ब्रिटेन पर जर्मनी का आक्रमण, 1940

  • ब्रिटेन पर जर्मनी का आक्रमण जुलाई से सितंबर 1940 तक लगातार जारी रहा। यह पूरी तरह से हवा में लड़ी जाने वाली पहली लड़ाई थी।
  • जर्मनी ने हवाई मार्ग से प्रमुख कारखानों और शहरों पर हमला करने का फैसला लिया, लेकिन रॉयल एयर फोर्स बड़ी मुश्किल से उन्हें बचाने में सफल रही।
  • अंततः जर्मनी ने ब्रिटेन पर आक्रमण की  अपने योजनाओं को अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर दिया।

युद्ध का वैश्विक स्वरूप

  • यूरोप महाद्वीप (ब्रिटेन को छोड़कर) पर नाज़ी नियंत्रण के बाद युद्ध को वैश्विक स्तर पर ले जाया गया।
  • मुसोलिनी की सेना की ग्रीस और टोब्रुक (Tobruk) में हार के बाद जर्मन सेना उत्तरी अफ्रीका तक पहुँच गई और ग्रीस तथा उसने अप्रैल 1941 में  यूगोस्लाविया पर आक्रमण कर दिया।

ऑपरेशन बारबोसा

  • हिटलर ने ब्रिटेन में हार का सामना करने के बाद रिबेंट्रोप संधि को रद्द कर वर्ष 1941 में रूस पर आक्रमण कर दिया।
  • सेबेस्टोपोल (Sebastopol) को अक्तूबर के अंत तक जीत लेने के बाद अगला कदम मास्को पर साल के अंत तक विजय पाना था।
  • रूस के जिस शीत ऋतु का अनुभव नेपोलियन ने एक सदी पहले किया था, वैसा ही अनुभव जर्मनी को करना पड़ा। 
  • सोवियत संघ ने दिसंबर में पलटवार किया और बसंत ऋतु तक पूर्वी मोर्चा स्थिर रहा।

पर्ल हार्बर

  • अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों से परेशान जापान ने 7 नवंबर, 1941 को हवाई में स्थित अमेरिकी नौसेना बेस पर्ल हार्बर पर एक अचानक हमला कर दिया।
  • इसने यह सुनिश्चित किया कि वैश्विक संघर्ष शुरू हो गया है। इस हमले के कुछ दिनों बाद जर्मनी ने अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
  • जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला करने के एक सप्ताह के भीतर ही फिलीपींस, बर्मा और हाॅन्गकाॅन्ग पर आक्रमण कर दिया।

युद्ध में अमेरिका का प्रवेश

  • द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका ने वर्ष 1942 में प्रवेश किया। अमेरिका के लड़ाकू विमानों ने इस युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाते हुए चार जापानी वाहक (Carrier) और एक युद्धपोत को नष्ट कर दिया।
  • नाज़ियों द्वारा यहूदी लोगों की सामूहिक हत्या की खबरें मित्र राष्ट्रों तक फैल गई और अमेरिका इन अपराधों का बदला लेने का वादा किया।

जर्मनी की पराजय

  • वर्ष 1942 के उत्तरार्द्ध में ब्रिटिश सेनाओं ने उत्तरी अफ्रीका और स्टालिनग्राद पर जवाबी कार्रवाई की।
  • जर्मनी ने फरवरी 1943 में स्टालिनग्राद में सोवियत संघ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। जर्मन सेना की यह पहली बड़ी हार थी।
  • इसके अलावा उत्तरी अफ्रीका में जर्मन और इतालवी सेनाओं ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
  • रूसी सेना को पूर्वी मोर्चे पर बढ़त मिलने लगी, इसने जर्मनी से खार्किव (Kharkiv) और कीव (Kiev) को वापस ले लिया। इसके अलावा मित्र देशों के बमवर्षकों ने जर्मन शहरों पर हमला करना शुरू कर दिया।
  • रूसी सेना 21 अप्रैल, 1945 को बर्लिन (जर्मनी की राजधानी) तक पहुँच गई।
    • हिटलर ने 30 तारीख को खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली और मुसोलिनी को इटली के देशभक्तों द्वारा पकड़कर फाँसी दे दी गई।
  • जर्मनी ने 7 मई को बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया और अगले दिन यूरोप में विजय दिवस के रूप में मनाया गया। इस प्रकार यूरोप में युद्ध समाप्त हो गया।

परमाणु हमला और युद्ध की समाप्ति

  • जापान, मित्र देशों पर आक्रमण के लिये योजनाएँ तैयार कर रहा था। अतः बड़े पैमाने पर लड़ाई और जनहानि की आशंका ने नए अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन को जापान के खिलाफ परमाणु बम के उपयोग की मंज़ूरी देने के लिये प्रेरित किया।
  • परमाणु और इसी प्रकार के अन्य विनाशकारी बमों का विकास वर्ष 1942 से ही किया जा रहा था, जिसमें से एक को  6 अगस्त, 1945 को जापान के शहर हिरोशिमा पर गिराया गया।
  • तीन दिन बाद एक और बम नागासाकी पर गिरा दिया गया।
  • कोई भी देश इस तरह के हमलों का सामना नहीं कर सकता था। अतः  जापान ने 14 अगस्त को आत्मसमर्पण कर दिया।
  • जापान के आत्मसमर्पण के साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हो गया।

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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद

नई महाशक्तियों का उद्भव

  • द्वितीय विश्व युद्ध के कारण देशों और महाद्वीपों की स्थिति में बदलाव आया। महाशक्तियों के रूप में ब्रिटेन और फ्राँस ने अपनी स्थिति को खो दिया तथा अब संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूएसएसआर ने इनकी जगह ले ली।

विउपनिवेशीकरण की शुरुआत

  • युद्ध के बाद ब्रिटेन और फ्राँस विभिन्न घरेलू और बाहरी समस्याओं से जूझने लगे। इन दोनों देशों का अपने उपनिवेशों पर से नियंत्रण खत्म होने लगा। इस प्रकार युद्ध के बाद अफ्रीका और एशिया में से उपनिवेशवाद का अंत हो गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना

  • संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के महत्त्वपूर्ण परिणामों में से एक थी।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर मानव जाति की आशाओं और आदर्शों को सुनिश्चित करता है जिसके आधार पर देश स्थायी शांति बनाए रखने के लिये मिलकर काम कर सकते हैं।
  • हालाँकि द्वितीय विश्व युद्ध के अंत से बहुत पहले अटलांटिक चार्टर के तहत संयुक्त राष्ट्र की स्थापना पर सहमति बन चुकी थी।

शीत युद्ध की शुरुआत

  • युद्ध की समाप्ति के बाद शांति संधि स्थापित करने के लिये जर्मनी के पॉट्सडैम (Potsdam) में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। हिटलर के साथ युद्ध में शामिल देशों को हार का सामना करना पड़ा। जर्मनी और उसकी राजधानी बर्लिन को चार भागों में विभाजित कर दिया गया।
  • इन चारों भागों को ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस और सोवियत संघ द्वारा नियंत्रित किया जाना था।
  • तीन पश्चिमी सहयोगियों और सोवियत संघ के मध्य कई चीज़ों पर असहमति थी। परिणामस्वरूप जर्मनी दो भागों (पूर्वी जर्मनी, एक कम्युनिस्ट सरकार और पश्चिम जर्मनी, एक लोकतांत्रिक राज्य) में विभाजित हो गया।
  • इस विभाजन ने शीत युद्ध की नींव रखी।

नई विश्व आर्थिक व्यवस्था

  • ब्रेटन वुड्स सम्मेलन को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन (United Nations Monetary and Financial Conference) के रूप में जाना जाता है। 1 से 22 जुलाई, 1944 तक 44 देशों के प्रतिनिधि इस सम्मेलन में शामिल हुए थे। इसका तात्कालिक उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध और विश्वव्यापी संकट से जूझ रहे देशों की मदद करना था।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् युद्ध प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण एवं विकास के लिये पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (IBRD- जिसे अब विश्व बैंक के रूप में जाना जाता है) का स्थापना की गई।
  • अमेरिकी डॉलर को विश्व व्यापार के लिये आरक्षित मुद्रा के रूप में स्थापित किया गया।

भारत और द्वितीय विश्व युद्ध

  • ब्रिटिश साम्राज्य को द्वितीय विश्व युद्ध के कारण भारी नुकसान हुआ था। ब्रिटेन ने इसकी भरपाई के लिये अपने उपनिवेशों की तरफ देखना शुरू किया ताकि उसे विश्व शक्ति का दर्जा वापस मिल सके। इसी समय महात्मा गांधी ने भारतीयों को अंग्रेज़ों के खिलाफ संगठित करने हेतु आंदोलन शुरू कर दिया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध का उद्देश्य हिटलर के तानाशाही और ब्रिटेन के उपनिवेशिक अधिपत्य को खत्म करना था।
  • उपनिवेशों की जनता ने युद्ध के बाद अपनी आज़ादी के लिये आंदोलन शुरू कर दिया।
  • ब्रिटेन में वर्ष 1945 में जब लेबर पार्टी सत्ता में आई तो इसका झुकाव उदारवादी सिद्धांतों और नस्लीय समानता की ओर था।
  • सत्ता में आने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली (लेबर पार्टी) ने भारत को स्वतंत्रता देने की प्रक्रिया शुरू कर दी।