भारत में पर्यटन परिदृश्य | 06 Nov 2020

दीपों का त्योहार दीपावली आने वाली है। भारत की होली और दीवाली पूरे विश्व में विख्यात है। वैसे तो भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है, क्योंकि यहाँ अलग-अलग धर्मों के लोग मिलकर पूरे वर्ष अनेक त्योहारों को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यहाँ के प्रमुख त्योहार, जैसे- होली, दशहरा, दीवाली, ईंद, दुर्गा पूजा आदि त्योहारों में शामिल होने के लिये विश्व भर से लोग आते हैं। यूँ तो पर्यटन के कई कारण होते हैं लेकिन भारत पर्यटन क्षेत्र में अपनी विविधतापूर्ण स्वरूप को लेकर विख्यात है। तभी तो इसे ‘अतुलनीय भारत’ का नाम दिया गया है।

शृंगारिक कल्लोलिनी गंगा
भुजाएँ निर्मित गुजरात, बंगा,
हे अतुलनीय भारत!
हे वंदनीय भारत!
हे अभिनंदनीय भारत!

सुना है कि इंडियंस को एशिया का इटैलियंस कहा जाता है और इटैलियंस को यूरोप का इंडियन्स। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि दोनों देशों के लोग जब खुश होते हैं तो गायक बन जाते हैं, और जब महिलाएं खुश होकर चलती है, तो नृत्यांगना बन जाती हैं। उनके लिये शरीर के भीतर भोजन संगीत के समान होता है एवं दिल के अंदर संगीत भोजन के समान होता है।

भारत की विविधता प्रत्येक प्रकार के पर्यटन को प्रसिद्ध बनाती है। इसी विविधता की चर्चा रस्किन बॉॅण्ड ने भी की है। रस्किन बॉण्ड के शब्दों में, "मैं यूरोप, एशिया और मध्य-पूर्व के अन्य देशों में भी गया हूँ, लेकिन भारत के अलावा मुझे, इससे आधी भी विविधता, अनुभव और स्मरणीय चीजें नहीं मिली हैं। आप ऑस्ट्रेलिया जैसे विशाल महाद्वीप के एक कोने से दूसरे कोने तक की यात्रा भी कर लें तो पायेंगे कि सभी ने एक ही तरह के कपड़े पहन रखे हैं एवं एक जैसा खाते हैं, एक जैसा ही संगीत सुनते हैं। यह रंगविहीन एकरसता विश्व के अन्य देशों में भी देखने को मिलती है, भले ही वे पूर्व में हों या पश्चिम में, लेकिन भारतवर्ष अपने आप में पूरा विश्व है"।

भारत में पर्यटन की संभावनाओं के क्रम में भारत के विविधतापूर्ण इतिहास की भी चर्चा आवश्यक है। अपने अभ्युदय के समय से ही अनेक साम्राज्य, वंश, शासकों का राज्य भारतवर्ष में रहा, जिसके दौरान समकालीन शासकों ने अपनी एक विशेष संस्कृति, कला, भाषा आदि का विकास किया। अत: भारत में ऐतिहासिक पर्यटन की भी अनेक संभावनाएँ विद्यमान हैं। 

विदेशों से आने वाली जातियों ने अपनी संस्कृति, कला, दर्शन का प्रचार-प्रसार किया जो कि आज भी न्यूनाधिक रूप में विद्यमान है। कुषाण शासकों के सिक्के, गुप्तों के मंदिर एवं कला, राजपूत कालीन मंदिर, मुगल काल की चित्रकला, मकबरे, किले तथा अंग्रेज़ी भवन, स्मारकें आज भी विद्यमान हैं तथा ऐतिहासिक पर्यटन का माध्यम बन रही हैं। आगरा का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला व कुतुबमीनार,हुँमायूं का मकबरा, हैदराबाद का चारमीनार,ओडिशा का सूर्यमंदिर, महाबलीपुरम के मंदिर, मुंबई का गेटवे ऑफ इंडिया, कोलकाता का विक्टोरिया मैमोरियल, हावड़ा ब्रिज आदि आज भी ऐतिहासिक पर्यटन को समृद्ध बना रहे हैं। वास्तव में पर्यटन एकांकी नहीं है। यातायात, होटल उद्योग, चिकित्सा उद्योग, स्थानीय पाक कला, भाषा, पहनावा संस्कृति इसके उपांग हैं। ये सभी पर्यटन के दौरान लाभान्वित होने वाले अवयव हैं।

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भूमंडलीकरण के बढ़ते प्रभाव ने पर्यटन को एक विस्तृत, प्रभावी एवं सफल उद्योग के रूप में प्रस्तुत किया है। आज वैश्वीकरण के समय में जब दुनिया बहुत छोटी हो गई है, पर्यटन उद्योग बहुमुखी आयामों के साथ प्रस्फुटित हुआ है। सरल शब्दों में, पर्यटन का अर्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर घूमने-फिरने से लिया जाता है। इसलिये इसके अन्य विभिन्न स्वरूप भी आज हमारे सामने चिकित्सा पर्यटन, पर्यावरण, पर्यटन तीर्थस्थल पर्यटन, व्यावसायिक पर्यटन, ऐतिहासिक पर्यटन आदि के रूप में दृष्टिगत हुए हैं।

वर्तमान में पर्यटन ने एक उद्योग का रूप ले लिया है। पयर्टन वास्तव में स्वयं साध्य है। उद्योग का अर्थ, किसी प्रकार के लाभ की प्राप्ति के लिये किया गया परिश्रम से, लिया जाता है। यह लाभ आर्थिक, वैश्विक, आत्मिक, आध्यात्मिक हो सकता है। जब पर्यटन को एक उद्योग के रूप में देखा जाता है तो इसके विभिन्न आयामों की चर्चा करना आवश्यक प्रतीत होता है। इसी क्रम में चिकित्सा पर्यटन की चर्चा करने से ऐसे स्थान का बोध होता है, जहाँ चिकित्सा सुविधा पर्याप्त रूप में विद्यमान हो

भारत देश चिकित्सा के क्षेत्र में निरंतर नए चिकित्सा व्यवस्था तथा प्रयोगों के कारण विश्व पटल पर अपना स्थान बना चुका है। वास्तव में विकासशील देशों के लिये भारत एक चिकित्सा पर्यटन हेतु उपयुक्त स्थान बना हुआ है, जहाँ चिकित्सा सुविधा अपर्याप्त तथा महँगी है। अफ्रीकी देशों, यथा- सोमालिया, सूडान, नाइजीरिया, अल्जीरिया आदि के लिये तथा पश्चिमी एशिया तथा पूर्वी एशिया देशों के लिये भारत एक सुलभ चिकित्सा स्थल है। यूरोपीय एवं उत्तरी अमेरिकी देशों में चिकित्सा व्यवस्था उत्तम तो है, पंरतु भारत के अपेक्षाकृत वहाँ चिकित्सा सुविधाएँ महँगी हैं। इसी कारण अफ्रीकी देशों के लिये भारत चिकित्सा पर्यटन का सर्वोत्तम स्थान सिद्ध हुआ है। इसके साथ ही आयुर्वेद तथा होम्योपैथी जैसे चिकित्सा प्रयोगों ने भी पर्यटन को समृद्ध बनाया है।

पर्यावरण संबंधी पर्यटन शुरुआत से ही मनपसंद पर्यटनों में से एक रहा है। पर्यावरण पर्यटन प्रकृति से संबद्ध है। मैंग्रोव, मरूस्थल, झील, नदियाँ, समुद्रतट, वन अभयारण्य, राष्ट्रीय पार्क, फूलों की घाटी, पश्चिमी घाट, हिमालय दर्शन आदि पर्यावरण से संबंधित हैं। इस प्रकार के पर्यटन से जहाँ एक ओर पर्यटक को आत्मिक लाभार्जन होता है। वहीं, दूसरी ओर स्थानीय व्यवस्थापकों को आर्थिक लाभ भी मिलता है।

तीर्थस्थल पर्यटन को भी इसी क्रम में समझना आवश्यक है। विभिन्न धर्मावलंबियों की विद्यमानता भारत को इसप्रकार के पर्यटन में समृद्ध बनाती है। जहाँ एक तरफ हिंदू धर्म में शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धाम परंपरा, द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा, कुंभ यात्रा, गंगा स्नान आदि हैं, वहीं दूसरी तरफ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये बौद्ध परिपथ विकसित हुआ है। इस्लाम धर्मावलंबियों के लिये अजमेर शरीफ, देवा शरीफ, हाज़ी अली, जामा मस्ज़िद, मोती मस्ज़िद, विभिन्न मकबरे तथा दरगाहें विशेष रूप से दर्शनीय हैं। सिख धर्मावलंबियों के लिये अमृतसर, पटना साहिब, दिल्ली, जम्मू, महाराष्ट्र आदि स्थल विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। तीर्थस्थल पयर्टन शिक्षा के भी स्थान होते हैं।बनारस के कुछ मंदिरों एवं मठों में आश्रम आधारित शिक्षा दी जाती है। उसी प्रकार सहारनपुर एवं लखनऊ उर्दू एवं फारसी तथा इस्लाम की शिक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।

पर्यटन वास्तव में उद्देश्यपूर्ण होता है। व्यावसायिक पर्यटन इसी का प्रतिफल है। विभिन्न व्यवसायों की स्थानीय विविधता व्यावसायिक पर्यटन को बढ़ावा देती है, जैसे- भदोही का कालीन उद्योग, फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग, कांचीपुरम् व चंदेरी का साड़ी उद्योग, उत्तर प्रदेश का काष्ठ कला, जयपुर का संगमरमर उद्योग आदि अपनी स्थानीय विशेषताओं के साथ अपनी गरिमा बनाये हुए हैं। अत: व्यावसायिक पर्यटन में असीम संभावनाओं की तलाश के क्रम में स्थानीय उद्योगों की वैश्विक स्तर पर ब्रॉण्डिंग आवश्यक है।

वैश्वीकरण के इस दौर में जबकि संपूर्ण विश्व की भौगोलिक दूरी कम प्रतीत होने लगी है, पर्यटन के विभिन्न आयामों में प्रगति की संभावनाएँ पर्याप्त रूप से विद्यमान हुई हैं। आज आवश्यकता है कि स्थानीयता को वैश्विक परिदृश्य दिया जाए तथा विविधता का लाभ उठाते हुए पर्यटन की असीम संभावनाओं को समृद्ध बनाया जाए।