• प्रश्न :

    भारत की अधिकांश सड़क परियोजनाओं के निर्माण की गति अत्यंत सुस्त है। इन परियोजनाओं में देरी के लिये उत्तरदायी कारक कौन-कौन से हैं। सड़क परियोजनाओं को गति देने की दिशा में सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाए हैं?

    11 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा कार्यान्वित की जाने वाली अनेक सड़क परियोजनाएँ सुस्त पड़ी हैं जिनसे भारत के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।

    परियोजनाओं में देरी के लिये उत्तरदायी कारक

    • परियोजनाओं में देरी का प्रमुख कारण पर्यावरण एवं वन मंजूरी में होने वाली देरी है।
    • सामान्यतः ऐसी परियोजनाओं से राजस्व वसूली में 20 से 30 वर्षों का समय लग जाता है, लेकिन परियोजना ऋण की अवधि 10-15 वर्षों की होती है।
    • अवरूद्ध परियोजनाओं के लिये अतिरिक्त ऋण प्राप्त करने में कठिनाई।
    • विभिन्न प्राधिकरणों एवं रियायतग्राहियों के कारण होने वाली देरी के चलते निर्माण की लागत में वृद्धि आ जाती है। इससे कर्ज की लागत में वृद्धि होती है और अंततः परियोजना अलाभकारी बन जाती है। 

    सरकार द्वारा उठाए गए कदम

    • इस क्षेत्र को प्रभावित करने वाले अनसुलझे मुद्दों पर अध्ययन करने के लिये कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने सिफारिश की है कि रैखीय परियोजनाओं (linear projects) के लिये वन विभाग की मंजूरी को पर्यावरणीय मंजूरी से पृथक किया जाए ताकि परियोजनाओं को जल्द मंजूरी मिल सके।
    • सरकार ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को पुनर्जीवित करने के लिये हाइब्रिड एन्यूटी मॉडल (Hybrid Annuity Model) प्रारंभ किया है।
    • अनुबंध (Contract) प्राप्त करने वाली कंपनी द्वारा निर्माण कार्य पूरा होने के 20 वर्षों के पश्चात 100 प्रतिशत विनिवेश की अनुमति दिये जाने के संबंध में नीति बनाई है। यह नीति BOT (Build-operate-Transfer) मॉडल के तहत आने वाली सभी परियोजनाओं के लिये लागू है।
    • सरकार सभी हितधारकों के साथ नियमित रूप से विचार-विमर्श कर रही है कि वे किन चुनौतियाँ का सामना कर रहे हैं। इस विचार-विमर्श के आधार पर आगे का रास्ता निकालने पर ध्यान दिया जा रहा है।

    इन कदमों के माध्यम से सरकार सड़क परियोजनाओं को समय पर पूरा करने का प्रयास कर रही है। इससे एक तरफ देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी तो दूसरी तरफ गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की समस्या से निपटने में भी आसानी होगी।