• प्रश्न :

    भू-तापीय ऊर्जा क्या है ? भारत में भू-तापीय ऊर्जा की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर प्रकाश डालें।

    11 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    भू-तापीय ऊर्जा की उत्पत्ति मुख्यतः पृथ्वी में सर्वत्र समाए यूरेनियम, थोरियम और पोटेशियम आइसोटोप के विकिरण और पृथ्वी की कोर में भरे तरल पदार्थ मेग्मा की उपस्थिति से होती है। यह भू-गर्भीय ऊष्मा पृथ्वी के भीतर गतिशील जल द्वारा भू-सतह तक पहुँचती है। जिस स्थान पर ताप स्रोत भू-सतह के निकट होता है, वहां का भू-जल गर्म होकर “तप्त जल भंडार” का रूप ले लेता है। इनसे प्राप्त गर्म जल और भाप का उपयोग, ऊर्जा उत्पादन में किया जा सकता है। 

    जापान, इंडोनेशिया, न्यूज़ीलैण्ड, इटली, मैक्सिको, फिलीपींस, चीन, रूस, टर्की बड़ी कुशलता से भू-तापीय ऊर्जा का उपयोग बिजली बनाने के लिये कर रहे हैं। कई दशकों से भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग भू-तापीय ऊर्जा के अध्ययन तथा विकास कार्य में लगा हुआ है। अब तक लगभग 340 तापीय कुंडों अथवा झरनों की पहचान की जा चुकी है। लद्दाख में पुगा व छुमथंग, छत्तीसगढ़ में तातापानी, हिमाचल में मणिकर्ण, सोन-नर्मदा-तापी क्षेत्र में सालबरदी, पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र में कैम्बे द्रोणी, अंडमान-निकोबार में बैरन व नारकोंडम द्वीप आदि भारत के प्रमुख भू-तापीय ऊर्जा के स्रोत हैं। 

    भू-तापीय ऊर्जा-उत्पादन, परंपरागत ऊर्जा तकनीकों की तुलना में निम्नलिखित आधारों पर भिन्नता प्रदर्शित करता है:-

    • भू-तापीय ऊर्जा संयंत्र, प्रदूषक गैस या द्रव का उत्सर्जन बिल्कुल नगण्य मात्रा में करते हैं। 
    • ऐसे संयंत्र जहाँ अम्ल और वाष्पशील रसायनों का उच्च स्तर अनुभव किया जाता है, वे आमतौर पर निकास को कम करने के लिये उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली से सुसज्जित होते हैं। भू-तापीय संयंत्र इन गैसों को कार्बन सिक्वेस्ट्रेशन अथवा भंडारण के रूप में वापस पृथ्वी में डाल सकते हैं। 
    • भू-तापीय कुंडों से निकले द्रवों में घुले हुए लवणों तथा खनिजों को भू-जल के जलभृतों (groundwater aquifers) तक पुनः गहराई में पहुँचाया जा सकता है। इससे दीर्घकाल तक उन कुंडों का उपयोग किया जा सकता है क्योंकि इन कुंडों में अपशिष्ट जल को पुनः शुद्ध करने की प्रवृत्ति होती है।  
    • भू-तापीय संयंत्रों के संचालन में अपेक्षाकृत कम भूमि व जल दोहन की आवश्यकता होती है। अतः यह तकनीक भू तथा जल संरक्षण दोनों में सहायता करती है।  

    भू-तापीय ऊर्जा एक स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा का रूप है।  हालाँकि भारत में स्थित भूतापीय स्रोत कम एंथल्पी ऊर्जा वाले स्रोत हैं, परंतु इस क्षेत्र में अभी और अधिक तकनीकी अनुसंधान की आवश्यकता है।