• प्रश्न :

    भारत की पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकें एक स्थायी जल प्रबंधन का विकल्प प्रदान करती हैं। विश्लेषण करें।

    18 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    भारत में पारंपरिक जल संरक्षण की तकनीकों का एक लंबा इतिहास रहा है। टांका, बावड़ी, कुंड, जोहड़, चंदेल टैंक, बुंदेला टैंक, पाटा,झालरा इत्यादि कई सदियों से जल को संरक्षित कर रखने के तरीके हैं। आज विभिन्न कारणों से शुद्ध जल की उपलब्धता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। ऐसे में जल संरक्षण की इन तकनीकों को पुनः प्रचलन में लाने और इनको प्रोत्साहित करने से कई लाभ अर्जित किये जा सकते हैं।

    पारंपरिक तरीकों से जल संरक्षण के लाभ –

    • ये तकनीकें पर्यावरण हितैषी हैं। इनके निर्माण से लेकर इनके संचालन तक में पर्यावरण का न्यूनतम ह्रास होता है।  
    • इनके निर्माण में समय और धन का व्यय भी कम होता है। 
    • खेत के तालाबों में बारिश का पानी जमा हो जाता है जो खेतों के नज़दीक लगे ट्यूबवेल और कुओं का जलस्तर बढ़ा देता है।
    • इन तकनीकों से जल संग्रहण हेतु निर्माण कार्य मनरेगा के माध्यम से संपन्न कराया जा सकता है क्योंकि इसके लिये किसी विशेष कुशलता की आवश्यकता नहीं होती।
    • ऐसे तालाबों, टैंकों पर सोलर सेल स्थापित कर दोहरा लाभ लिया जा सकता है, बिजली उत्पादन के साथ-साथ जल के वाष्पीकरण को कम किया जा सकता है।

    कुछ ऐसे पक्ष भी हैं जो इन्हें कम कारगर साबित करते हैं –

    • इनमें से ज़्यादातर तकनीकें वर्षा-जल संरक्षण की हैं। मानसून की अनियमितता, इनके माध्यम से जलापूर्ति को भी अनियमित कर देगी।
    • तालों, तालाबों इत्यादि के रख-रखाव और समय से साफ-सफाई पर ध्यान न दिया जाए तो ये मलेरिया, डेंगु आदि के पनपने का कारण बन सकते हैं।
    • नगरीकरण और औद्योगीकरण के कारण देश में भूमि की कमी के चलते ऐसे निर्माण कार्य गाँवों में खेतों के नज़दीक ही संभव हैं, जहाँ खेती स्वयं ही भूमि-अनुपलब्धता से जूझ रही है।
    • ये ज़्यादातर खुले जल के स्रोत हैं। बढ़ते तापमान से वाष्पीकरण की दर भी ऊँची रहेगी।

    अतः हमें क्षेत्र विशेष की ज़रूरतों के आधार पर आधुनिक अथवा पारंपरिक जल संरक्षण के तरीके अपनाने पर ध्यान देना होगा। कुछ कमियों के बावज़ूद जल संग्रहण की पारंपरिक तकनीकें अधिक कारगर सिद्ध हो सकती हैं। शायद यही कारण है कि जल की भीषण कमी से जूझने वाले बुंदेलखंड के लिये मध्य प्रदेश सरकार “खेत-तालाब योजना”  और तेलंगाना सरकार, तालाबों और नहरों को जोड़कर बाढ़ के पानी को इनकी और मोड़ने के उद्देश्य वाले “काकतीय मिशन” जैसे पारंपरिक तरीकों पर ही ध्यान दे रही है।