• प्रश्न :

    हरित लेखांकन से आप क्या समझते हैं? भारत में अर्थव्यवस्था के विकास को इससे जोड़कर देखा जाना क्यों आवश्यक है?

    27 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    आर्थिक विकास की प्रक्रिया में राष्ट्रीय उत्पाद को बढ़ाने में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का निरंतर क्षय हो रहा है। वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन को तीव्र गति देने के क्रम में पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों की धारणीय क्षमता व उसको होने वाली क्षति पर ध्यान कम ही दिया गया है। हरित लेखांकन को इस समस्या के समाधान का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण माना जा सकता है।

    हरित लेखांकन राष्ट्रीय आय आकलन की एक ऐसी विधि है जिसमें राष्ट्रीय उत्पाद की अभिवृद्धि में प्रयुक्त हुए प्रकृति प्रदत्त संसाधनों की क्षय लागतों को राष्ट्रीय आय में से घटाया जाता है। इन प्राकृतिक संसाधनों की पुनः पूर्ति हेतु किये गए प्रयासों पर आई लागतों को भी सकल राष्ट्रीय उत्पाद में समायोजित किया जाता है।

    विचारणीय है कि आमतौर पर सकल घरेलू उत्पाद का आकलन करते समय मानव विनिर्मित पूंजीगत आस्तियों के उपभोग (पूंजी ह्रास) को समायोजित किया जाता है। यदि इसमें प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं उपभोग को भी शामिल कर लिया जाए तो जो नए आँकड़े प्राप्त होंगे वे पर्यावरणीय समायोजित सकल घरेलू उत्पाद या हरित जीडीपी कहलाएंगे। हरित लेखांकन की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इनके आँकड़ों की तुलना राष्ट्रीय आय के साथ करने पर यह पता लगाया जा सकता है कि किसी देश का विकास पर्यावरणीय क्षति की कीमत पर किया जा रहा है अथवा नहीं।

    उल्लेखनीय है कि वर्ष 2003 में ग्रीन इंडियन स्टेट्स ट्रस्ट (GIST) नामक संगठन ने भारतीय राज्यों की परियोजनाओं के लिये हरित लेखांकन के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए इसकी उपयोगिता पर बल दिया था। इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से माना गया था कि अधिकांश भारतीय राज्य पर्यावरण की कीमत पर आर्थिक संवृद्धि व प्रगति के प्रयासों में लगे हुए हैं। विभिन्न खनन निर्माण, विनिर्माण की गतिविधियों से जैव-विविधता खासकर मैंग्रोव, आर्द्रभूमि, जलीय स्रोतों को नुकसान पहुँचा है। इस दृष्टि से हरित लेखांकन पद्धति का इस्तेमाल करना एक बेहतर कदम होगा।