• प्रश्न :

    भारत में वायु प्रदूषण से निपटने के प्रचलित सभी तरीके निष्प्रभावी हो चुके हैं। इस संबंध में कुछ और नवाचारी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। इस कथन का विश्लेषण कीजिये।

    06 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    प्रश्न-विच्छेद

    • भारत में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये प्रचलित सभी तरीकों को बताना है तथा उनके निष्प्रभावी होने के कारण को बताना है।
    • इस संबंध में नवाचारी कदमों को बताना है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्रभावी भूमिका के साथ उत्तर-लेखन की शुरुआत करें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु प्रस्तुत करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    वायु प्रदूषण की समस्या भारत में गंभीरता के उच्चतम स्तर को प्राप्त कर चुकी है। राजधानी दिल्ली समेत देश के कई शहरों की हवा में निलंबित कणों की अत्यधिक मात्रा स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरे की घंटी बजा चुकी है। विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 14 भारतीय शहरों का होना भारत में प्रदूषण की समस्या के गंभीर स्तर को बताता है।

    वायु प्रदूषण के मुख्य तत्त्वों में कार्बन-मोनोऑक्साइड, कार्बन-डाइऑक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, सीसा, ओजोन, निलंबित अभिकणीय पदार्थ तथा सल्फर-डाइऑक्साइड आदि हैं जो कि औद्योगिक ईकाइयों, घरेलू उपयोग के उपकरणों तथा वाहनों से उत्सर्जित होकर वायु में मिल जाते हैं।

    इस समस्या से निपटने के लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 1981 में वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 लाया गया जिसके तहत केंद्र एवं राज्य सरकारों को वायु प्रदूषण को रोकने के लिये निम्नलिखित शक्तियाँ दी गई हैं—

    • राज्य के किसी क्षेत्र को वायु प्रदूषित क्षेत्र घोषित करना और प्रदूषण नियंत्रित क्षेत्रों में औद्योगिक क्रियाओं को रोकना।
    • औद्योगिक इकाइयों को स्थापना से पहले अनापत्ति प्रमाण-पत्र देना।
    • वायु प्रदूषकों के सैंपल इकट्ठा करना।
    • अधिनियम में दिये गए प्रावधानों के अनुपालन की जाँच के लिये किसी भी औद्योगिक इकाई में प्रवेश का अधिकार।
    • अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले के विरुद्ध मुकदमा चलाने का अधिकार।
    • प्रदूषित इकाइयों को बंद करने का अधिकार।

    इसके साथ ही वाहनों से उत्सर्जित वायु प्रदूषण को रोकने के लिये भारत सरकार द्वारा वाहनों में प्रयुक्त इंजन की गुणवत्ता के स्तर को बढ़ाकर BS-III से BS-IV कर दिया गया है तथा राजधानी समेत एनसीआर में फसलों के अवशेषों (पराली) को जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। परंतु उद्योगों एवं वाहनों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी एवं घरेलू उपकरणों के आवश्यकता से अधिक उपयोग ने इन सब उपायों को असफल कर दिया है।

    इस समस्या से निजात पाने का अब केवल एक ही उपाय बचा है और वह है प्रकृति की सहायता लेना। चीन, जर्मनी, जापान, यूएस और फ्राँस जैसे देशों में ऊर्ध्वाधर उद्यानों जैसी नवीन तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। भारत में भी कुछ ऐसे निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं—

    • राजमार्गों एवं सड़कों के किनारे तथा विभाजकों के सहारे छोटे पौधों एवं लताओं को उगाया जा सकता है।
    • सड़कों पर फ्लाईओवरों को सहारा देने वाले स्तंभों के सहारे पौधों और लताओं का विकास किया जा सकता है।
    • मैक्सिको के वाया वर्दे मॉडल की तरह भारत में भी हरित खंभों की तकनीक विकसित कर उर्ध्वाधर बागानों का निर्माण किया जा सकता है।

    वायुमंडलीय कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता चूँकि पेड़-पौधों में सर्वाधिक होती है। अतः उपरोक्त उपायों को अपनाते हुए हरियाली विकसित करने की इस तकनीक से निश्चित ही वायु प्रदूषण पर कुछ हद तक नियंत्रण पाना संभव हो सकेगा।