• प्रश्न :

    प्रश्न. ‘‘भारत का उत्थान केवल शक्ति-प्रदर्शन पर निर्भर नहीं करता बल्कि वैश्विक व्यवस्था के लिये मानक और नियम तय करने की उसकी क्षमता पर भी आधारित है। प्रौद्योगिकी, व्यापार तथा जलवायु से जुड़े अंतरराष्ट्रीय नियम-निर्माण को आकार देने में भारत की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    02 Dec, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत की विदेश नीति सिद्धांत के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये। 
    • प्रमुख उदाहरणों के साथ प्रौद्योगिकी, व्यापार और जलवायु पर वैश्विक नियमों को आकार देने की भारत की क्षमता का विश्लेषण कीजिये। 
    • मानदंड-निर्धारण की सीमाओं पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय

    उपरोक्त कथन भारत की विदेश नीति में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाता है जिसके अंतर्गत भारत नियम-पालक राष्ट्र से नियम-निर्माता राष्ट्र की दिशा में अग्रसर है। जहाँ शक्ति प्रक्षेपण (हार्ड पावर: सैन्य, अर्थव्यवस्था) किसी राष्ट्र के महत्त्व को निर्धारित करता है, वहीं मानक-निर्धारण (सॉफ्ट/स्मार्ट पावर) उसके प्रभाव को निर्धारित करता है। 

    • चूँकि भारत स्वयं को विश्व बंधु (विश्व का मित्र) की भूमिका में स्थापित करता है, इसलिये प्रौद्योगिकी व्यापार तथा जलवायु-शासन से संबद्ध नियमों को संस्थागत रूप देना बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था के लिये निर्णायक हो जाता है।

    मुख्य भाग:

    प्रौद्योगिकी: 'इंडिया स्टैक' मॉडल का निर्यात

    • वैश्विक मानदंड के रूप में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI):
      • मानक: भारत बंद स्वामित्ववादी प्रणालियों के बजाय ओपन-सोर्स, इंटरऑपरेबल और स्केलेबल सार्वजनिक वस्तुओं (आधार, यूपीआई, कोविन) को बढ़ावा देता है।
      • सफलता: नई दिल्ली में हुए G20 के तहत औपचारिक रूप से DPI को वित्तीय समावेशन के एक साधन के रूप में मान्यता दी गई। 
        • सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात और फ्राँस जैसे देशों ने भारत के UPI को अपनाया है या उसके साथ एकीकृत किया है, जिससे वैश्विक डिजिटल भुगतान के लिये एक मानक स्थापित हुआ है।
      • डेटा गवर्नेंस: अपने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 के माध्यम से भारत डेटा सॉवरेनिटी की अनुशंसा कर रहा है, जिसमें डिजिटल डेटा का वास्तविक स्वामित्व और नियंत्रण उन नागरिकों के पास रहे जो उसे उत्पन्न करते हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि डेटा से संबद्ध निर्णय केवल विदेशी निगमों के हितों द्वारा संचालित न हों बल्कि नागरिकों की गरिमा, अधिकारों और स्वायत्तता का संरक्षण तथा सशक्तीकरण हो।  
      • AI विनियमन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी (GPAI) के प्रमुख अध्यक्ष के रूप में, भारत जिम्मेदार AI की अनुशंसा करता है जो नवाचार एवं सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करता है तथा पश्चिमी AI एकाधिकार के विरुद्ध ग्लोबल साउथ की चिंताओं का प्रतिनिधित्व करता है।

    व्यापार: ग्लोबल साउथ की आवाज़

    • विश्व व्यापार संगठन में सुधार: भारत खाद्य सुरक्षा के लिये सार्वजनिक भंडारण पर स्थायी शांति खण्ड के लिये सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है तथा पश्चिमी कृषि सब्सिडी को चुनौती दे रहा है।
      • भारत ने यह मानक स्थापित किया है कि गरीबों के लिये खाद्य-सुरक्षा किसी कठोर व्यापार-सिद्धांत से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
    • गैर-टैरिफ बाधाओं का मुकाबला: भारत हरित संरक्षणवाद (जैसे: यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र या CBAM) के खिलाफ विरोध का नेतृत्व कर रहा है।
      • इन उपायों को भेदभावपूर्ण बताकर भारत यह सिद्ध कर रहा है कि जलवायु लक्ष्य विकासशील देशों के लिये व्यापार-अवरोध नहीं बनने चाहिये।
    • अफ्रीकी संघ का समूह में प्रवेश: अफ्रीकी संघ को G20 में शामिल करने के लिये प्रयासरत रहकर, भारत ने वैश्विक आर्थिक शासन को संरचनात्मक रूप से परिवर्तित कर इसे अधिक समावेशी बनाया है तथा मानदंड को G7-नेतृत्व वाले एजेंडे से बदलकर ग्लोबल साउथ-नेतृत्व वाले एजेंडे में परिवर्तित कर दिया है।

    जलवायु:  पीड़ित की भूमिका से समाधान-प्रदाता तक

    • संस्थागत नेतृत्व:
      • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): भारत ने पहला संधि-आधारित अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की, जिसका मुख्यालय भारत (गुरुग्राम) में है। 
        • इस पहल ने यह वैश्विक मानक स्थापित किया कि सौर ऊर्जा उष्णकटिबंधीय विश्व के लिये एक साझा वैश्विक संपदा है।
      • आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI): आपदा-सहिष्णु अवसंरचना के वैश्विक मानक स्थापित कर भारत छोटे द्वीपीय तथा संवेदनशील देशों के लिये निर्णायक समर्थन उपलब्ध करा रहा है।
    • जीवनशैली आधारित जलवायु रणनीति: मिशन LiFE (पर्यावरण हेतु जीवनशैली) के माध्यम से भारत ने संयुक्त राष्ट्र में एक व्यवहार-आधारित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जो सरकारी नीतियों के साथ-साथ नागरिकों के पर्यावरण-अनुकूल आचरण पर बल देता है।
    • सामान्य किंतु विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR): भारत लगातार सफलतापूर्वक इस मानदंड को सुदृढ़ करता रहा है कि विकसित देशों को अपने ऐतिहासिक उत्सर्जन के लिये भुगतान करना होगा, जिससे COP शिखर सम्मेलनों में इस सिद्धांत को कमज़ोर होने से रोका जा सके।

    समालोचनात्मक विश्लेषण: मानदंड-निर्धारण की सीमाएँ

    बाधा

    विश्लेषण

    कठोर शक्ति अंतर

    मानदंड-निर्धारण प्रायः विनिर्माण क्षमता के आधार पर होता है। सौर ऊर्जा उपकरणों और एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इंग्रीडिएंट्स (API) के लिये चीन पर भारत की निर्भरता व्यापार एवं जलवायु वार्ताओं में उसकी सौदाकारी शक्ति को कमज़ोर करती है।

    घरेलू विरोधाभास

    वैश्विक स्तर पर खुली डिजिटल सीमाओं की अनुशंसा करने के बावजूद, भारत में बार-बार इंटरनेट प्रतिबंध किये जाते हैं, जिसके बारे में आलोचकों का तर्क है कि इससे डिजिटल-लोकतंत्र में भारत की नेतृत्व-भूमिका पर प्रश्न खड़े होते हैं।

    संरक्षणवादी छवि

    भारत द्वारा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर निकलने का निर्णय तथा बार-बार टैरिफ वृद्धि के कारण इसे संरक्षणवादी करार दिया गया है, जिससे वियतनाम जैसे देशों की तुलना में मुक्त व्यापार नियमों के निर्माण में इसकी विश्वसनीयता कम हो गई है।

    संसाधनों की कमी

    ISA जैसी पहलों के लिये अफ्रीका/एशिया में परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की तुलना में भारत की वित्तीय क्षमता सीमित है, जिससे इसके मानदंडों का दायरा सीमित हो जाता है।

    निष्कर्ष

    भारत सफलतापूर्वक एक संतुलनकर्त्ता से आगे बढ़कर वैश्विक व्यवस्था में एक सेतु-निर्माता के रूप में उभर रहा है। DPI और सौर गठबंधन में इसकी सफलता यह सिद्ध करती है कि यह वैश्विक सार्वजनिक लाभ उत्पन्न कर सकता है। वैश्विक नियम-निर्माता बनने का मार्ग इस बात पर निर्भर करता है कि भारत ऐसे मानक प्रस्तुत करे जो पश्चिमी अथवा चीनी विकल्पों की तुलना में अधिक शीघ्र एवं अधिक न्यायपूर्ण समृद्धि प्रदान कर सकें।