प्रश्न. “पंथनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल धर्म और राज्य के पृथक्करण के संदर्भ में नहीं है, बल्कि राज्य का सभी धर्मों के साथ न्यायपूर्ण और संतुलित रूप से सैद्धांतिक जुड़ाव है।” हाल के नीति-विवादों के आलोक में इस कथन पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय पंथनिरपेक्षता के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- 'संलग्नता बनाम पृथक्करण' (Engagement vs Separation) के रूप में भारतीय पंथनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताओं पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- इससे संबंधित समकालीन नीतिगत विवादों को रेखांकित कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
यह कथन भारतीय पंथनिरपेक्षता की उस विशिष्ट प्रकृति को रेखांकित करता है जिसे राजनीतिक सिद्धांतकार राजीव भार्गव ‘प्रिंसिपल्ड डिस्टेन्स अर्थात् सैद्धांतिक पृथक्करण’ कहते हैं। पंथनिरपेक्षता का पश्चिमी मॉडल (उदाहरण: अमेरिका) जहाँ ‘चर्च और स्टेट (राज्य) के बीच पृथक्करण’ की कठोर दीवार की परिकल्पना करता है, वहीं भारतीय संविधान एक सक्रिय संलग्नता को अनिवार्य बनाता है।
राज्य धार्मिक बहुलता का सम्मान करते हुये समानता, न्याय और गरिमा जैसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक मूल्यों को प्रोत्साहित करने के लिये हस्तक्षेप करता है न कि निष्क्रिय दूरी बनाए रखता है।
मुख्य भाग:
भारतीय पंथनिरपेक्षता: संलग्नता बनाम पृथक्करण
पश्चिमी मॉडल में राज्य और धर्म परस्पर पृथक क्षेत्रों में कार्य करते हैं। भारत में राज्य धर्म के साथ निम्न रूपों में संलग्न होता है:
- सामाजिक कुरीतियों का सुधार: अस्पृश्यता (अनुच्छेद 17) या धार्मिक व्यक्तिगत विधियों के भीतर लैंगिक भेदभाव जैसी प्रथाओं का उन्मूलन करना।
- संस्थागत प्रबंधन: धार्मिक संस्थाओं के पंथनिरपेक्ष पहलुओं (वित्तीय/प्रशासनिक) का नियमन (अनुच्छेद 25(2)(a)) करना।
- समानता सुनिश्चित करना: अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थाओं को भेदभाव रहित सहायता प्रदान करना (अनुच्छेद 30)।
प्रमुख हालिया नीतिगत विवाद
- समान नागरिक संहिता (UCC) पर विवाद
- प्रसंग: अनुच्छेद 44 राज्य को समान नागरिक संहिता (UCC) सुनिश्चित करने का निर्देश देता है। हाल ही में, उत्तराखंड जैसे राज्यों ने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
- सिद्धांत आधारित संलग्नता: समर्थकों का तर्क है कि लैंगिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिये राज्य को धार्मिक आस्था को सामाजिक प्रथाओं (विवाह, उत्तराधिकार) से अलग करने के लिये हस्तक्षेप (अनुच्छेद 14) करना चाहिये।
- आलोचना: विरोधियों का तर्क है कि यह संलग्नता अंतरात्मा की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन करता है तथा राज्य विविध सांस्कृतिक प्रथाओं में आँतरिक सुधार के स्थान पर समानता थोपने का प्रयास कर रहा है।
- मंदिरों का राज्य प्रबंधन (HR और CE अधिनियम)
- प्रसंग: विभिन्न राज्य सरकारें (जैसे: तमिलनाडु, कर्नाटक) हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR & CE) अधिनियमों के माध्यम से हिंदू मंदिरों के वित्तीय एवं प्रशासनिक मामलों को नियंत्रित करती हैं।
- सिद्धांत आधारित संलग्नता: इसका औचित्य सार्वजनिक धन के कुप्रबंधन को रोकना तथा सभी जातियों के लिये समान प्रवेश (सामाजिक सुधार) उपलब्ध कराना है।
- आलोचना: आलोचकों का तर्क है कि यह कार्य चयनात्मक है, क्योंकि मस्जिदों या चर्चों पर इसी प्रकार का नियंत्रण शायद ही कभी किया जाता है, जिससे समदूरी के सिद्धांत पर प्रश्न उठता है।
- आवश्यक धार्मिक प्रथाएँ (हिजाब और तीन तलाक)
- तीन तलाक (शायरा बानो मामला): सर्वोच्च न्यायालय ने तत्काल तीन तलाक को अमान्य घोषित कर दिया।
- यह राज्य द्वारा (न्यायपालिका के माध्यम से) धार्मिक हठधर्मिता के ऊपर व्यक्तिगत गरिमा को प्राथमिकता देने का स्पष्ट उदाहरण था।
- हिजाब विवाद: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि हिजाब पहनना इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रथा (ERP) नहीं है।
- निहितार्थ: यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर राज्य को शैक्षणिक संस्थानों जैसे (स्कूलों) पंथनिरपेक्ष क्षेत्रों में धार्मिक पोशाक को विनियमित करने की राज्य की शक्ति को बरकरार रखता है तथा इस बात को पुष्ट करता है कि धार्मिक स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है।
- नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)
- प्रसंग: CAA पड़ोसी देशों से आये उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता का मार्ग प्रदान करता है परंतु मुसलमानों को इससे बाहर रखता है।
- विवाद:
- सरकार का रुख: यह उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिये एक सकारात्मक प्रयास (सकारात्मक कार्रवाई) है।
- आलोचना: आलोचकों का तर्क है कि यह नागरिकता के लिये धर्म को एक मानदंड के रूप में प्रस्तुत करके पंथनिरपेक्षता की मूल संरचना का उल्लंघन करता है तथा राज्य को सिद्धांतबद्ध संलग्नता से धार्मिक बहिष्कार की ओर स्थानांतरित करता है।
- वक्फ (संशोधन) विवाद
- प्रसंग: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के लागू होने से धार्मिक न्यासों पर राज्य के नियंत्रण की सीमा पर विवाद छिड़ गया है।
- सैद्धांतिक संलग्नता: सरकार का तर्क है कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने, भूमि कुप्रबंधन को रोकने और महिलाओं (लैंगिक न्याय) को शामिल करने के लिये वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना आवश्यक है।
- आलोचना: आलोचकों का तर्क है कि संलग्नता के बजाय यह नियंत्रण अत्यधिक हस्तक्षेप है।
- उनका तर्क है कि इस्लामी संस्थाओं के प्रशासन में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है और आंतरिक धार्मिक प्रशासन पर राज्य की इच्छा को थोपते हुए सिद्धांतबद्ध दूरी का उल्लंघन करता है।
निष्कर्ष:
पंथनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल ‘लाइव एंड लेट लाइव’ अर्थात् एक निष्क्रिय “जियो और जीने दो” रणनीति नहीं है, बल्कि यह एक गतिशील, हस्तक्षेपकारी परियोजना है जिसका उद्देश्य एक पारंपरिक समाज को एक आधुनिक, समतावादी समाज में बदलना है। हालाँकि, इस मॉडल की सफलता के लिये, यह संलग्नता पूरी तरह से सिद्धांत-आधारित होना चाहिये, जो राजनीतिक स्वार्थ के बजाय संवैधानिक नैतिकता द्वारा निर्देशित हो।