• प्रश्न :

    “सच्ची नीति वही है जिसमें व्यक्ति ‘अच्छा’ अधिक आकर्षक प्रतीत होने पर भी ‘उचित’ का ही चयन करे।”
    इस कथन पर विचार करते हुए सार्वजनिक जीवन में दायित्व-आधारित कर्त्तव्यवाद और परिणामवाद-आधारित नैतिकता के बीच अंतर्विरोध की विवेचना कीजिये। (150 शब्द)

    20 Nov, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • 'उचित' को चुनने के बीच की दुविधा के संदर्भ में संक्षेप में बताकर उत्तर प्रस्तुत कीजिये, भले ही 'अच्छा' अधिक आकर्षक लगे।   
    • कर्त्तव्य-आधारित (Deontological) नैतिकता और परिणाम-आधारित (Consequentialist) नैतिकता पर विस्तार से चर्चा कीजिये।
    • सार्वजनिक जीवन में संघर्ष की प्रकृति के संदर्भ में संक्षिप्त परिचय दीजिये और संघर्ष के प्रमुख उदाहरण दीजिये।
    • यह तर्क दीजिये कि सार्वजनिक सेवा में ‘उचित’ को प्राथमिकता देना क्यों आवश्यक है।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    सार्वजनिक जीवन में अनेक बार ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जहाँ दिखने में लाभकारी विकल्प ‘अच्छा’ प्रतीत होता है, परंतु नैतिक रूप से सही या विधिसंगत विकल्प ‘उचित’ के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित रहता है। वास्तविक नैतिकता तभी प्रकट होती है जब कोई व्यक्ति परिणामों के आकर्षण के बावजूद सिद्धांत-आधारित दायित्वों का पालन करता है। यही तनाव कर्त्तव्य-आधारित (Deontological) नैतिकता और परिणाम-आधारित (Consequentialist) सोच के बीच के मूलभूत अंतर को दर्शाता है।

    मुख्य भाग: 

    कर्त्तव्यपरायण कर्त्तव्य और परिणामवाद: 

    • कर्त्तव्यपरायण कर्त्तव्य - ‘उचित कार्य करना’
      • इमैनुएल कांट के दर्शन में निहित 
      • नियमों, नैतिक सिद्धांतों, संवैधानिक मूल्यों के पालन पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • उद्देश्य और कर्त्तव्य परिणाम से अधिक मायने रखते हैं।
      • शासन में उदाहरण: विधि का शासन, निष्पक्षता, अखंडता।
    • परिणामवाद - ‘अच्छा कार्य करना’
      • उपयोगितावाद (बेंथम, मिल) पर आधारित।
      • नैतिकता का आकलन परिणामों, कल्याण, उपयोगिता, दक्षता से किया जाता है।
      • सार्वजनिक जीवन में यह आकर्षक है क्योंकि यह त्वरित, दृश्यमान लाभ (जैसे: परियोजना का तेज़ी से पूरा होना) का वादा करता है।
    • सार्वजनिक जीवन में संघर्ष की प्रकृति
    • लोक सेवकों को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जहाँ:
      • नियमों का पालन करने से कल्याण में विलंब हो सकता है, लेकिन
      • नियमों को तोड़ने/समझौता करने से त्वरित लाभ हो सकता है।
    • इससे एक नैतिक दुविधा उत्पन्न होती है: उचित (कर्त्तव्य) बनाम अच्छा (उपयोगिता)।

    संघर्ष के उदाहरण: 

    • विकास बनाम पर्यावरणीय मानदंड
      • रोज़गार और विकास का वादा करने वाली परियोजना किसी अधिकारी को पर्यावरणीय मंजूरी को नजरअंदाज़ करने के लिये प्रेरित कर सकती है।
      • अच्छा: रोज़गार, स्थानीय समर्थन।
      • उचित कार्य: कानूनों का पालन, स्थिरता, अंतर-पीढ़ीगत न्याय।
    • कल्याणकारी वितरण बनाम वित्तीय नियम
      • बाढ़ के दौरान तत्काल राहत की आवश्यकता होती है।
      • अच्छा: बिना दस्तावेज़ के त्वरित सेवा-प्रदाय।
      • उचित कार्य: भ्रष्टाचार को रोकने के लिये उचित प्रक्रिया का पालन करना, जवाबदेही सुनिश्चित करना।
    • प्रदर्शन लक्ष्य बनाम सत्यनिष्ठा 
      • योजना की सफलता दिखाने के लिये डेटा में हेर-फेर करना।
      • अच्छा: उच्च रेटिंग, सार्वजनिक संतुष्टि।
      • अधिकार: ईमानदारी, पारदर्शिता।

    सार्वजनिक सेवा में 'उचित कार्य करना' क्यों आवश्यक है?

    • संवैधानिक नैतिकता सुनिश्चित करना: लोक सेवक संविधान के न्यासी होते हैं; उनका कर्त्तव्य विधि के शासन को बनाए रखना है, न कि केवल परिणाम प्राप्त करना।
    • दीर्घकालिक सार्वजनिक विश्वास को बनाए रखता है: सत्यनिष्ठा-आधारित शासन विश्वसनीयता का निर्माण करता है तथा प्रणालीगत भ्रष्टाचार को कम करता है।
    • नैतिक और प्रशासनिक फिसलन को रोकता है: ‘अच्छा’ के रूप में उचित ठहराए गए छोटे उल्लंघन बड़े अनैतिक कृत्यों को सामान्य बना सकते हैं।
    • निष्पक्षता और पूर्वानुमानशीलता सुनिश्चित करना: कर्त्तव्य-आधारित प्रशासन विधि के समक्ष समता की गारंटी देता है, न कि परिणाम-आधारित मनमानी की।

    निष्कर्ष: 

    सार्वजनिक जीवन में त्वरित या लाभकारी परिणाम प्राप्त करने का आकर्षण प्रबल हो सकता है, परंतु वास्तविक नैतिक नेतृत्व तभी संभव है जब कर्त्तव्य, विधि और नैतिक सिद्धांतों पर आधारित ‘उचित’ को प्राथमिकता दी जाये। जब ‘उचित’ का मार्गदर्शन ‘अच्छे’ की प्राप्ति को दिशा देता है, तभी शासन नैतिक, धारणीय और वास्तविक जन-हितकारी बन पाता है। इसलिये, रॉय टी. बेनेट के अनुसार “हमें सही कार्य करना चाहिये, न कि वह जो आसान हो या लोकप्रिय हो।”