प्रश्न. भारत में आतंकवाद पारंपरिक सीमा-पार घुसपैठ से विकसित होकर शहरी प्रतीकात्मक हमलों, साइबर आतंकवाद तथा सफेदपोश (White Collar) आतंकवाद का रूप ले रहा है। इन उभरते रुझानों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा भारत के लिये बहुआयामी आतंकवाद-रोधी रणनीति का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में आतंकवाद के बदलते स्वरूप का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- इन उभरते रुझानों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
- भारत के लिये एक बहुआयामी आतंकवाद-विरोधी रणनीति प्रस्तावित कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत में आतंकवाद, जो ऐतिहासिक रूप से सीमा पार विद्रोह और परोक्ष युद्धों से प्रभुत्व में रहा है, अब एक नए रूप में सामने आ रहा है। हाल की घटनाओं से पता चलता है कि दी गतिविधियाँ अब शहरी प्रतीकात्मक हमलों, साइबर आतंकवाद और सफेदपोश/वित्तीय नेटवर्क आधारित आतंकवाद की ओर बढ़ रही हैं। इस बदलते खतरे के परिदृश्य के लिये एक बहुआयामी आतंकवाद-विरोधी रणनीति की आवश्यकता है, जो पारंपरिक प्रत्यक्ष कार्रवाई और सीमा सुरक्षा उपायों से कहीं आगे जाती हो।
मुख्य भाग:
आतंकवाद के पारंपरिक और उभरते रुझान
- सीमा पार आतंकवाद और उग्रवाद: पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाला सीमा-पार आतंकवाद भारत की एक दीर्घकालिक चुनौती बना हुआ है।
- लश्कर-ए-तैबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे समूह जम्मू-कश्मीर और उससे बाहर भी हमले करते रहते हैं।
- अप्रैल 2025 में पहलगाम पर हुए हमले सहित हाल की घटनाओं से सीमा सुरक्षा में वृद्धि के बावजूद घुसपैठ के लगातार खतरे का पता चलता है।
- शहरी आतंकवाद और प्रतीकात्मक हमले: वर्ष 2025 में लाल किले में हुआ कार विस्फोट, मनोवैज्ञानिक प्रभाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से प्रतीकात्मक राष्ट्रीय स्थलों को निशाना बनाने वाले शहरी आतंकवाद की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- उमर नबी जैसे शिक्षित पेशेवरों से जुड़े पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों से संबंधित सफेदपोश आतंकवाद जैसे उभरते रूप इस बात को उजागर करते हैं कि तकनीकी विशेषज्ञता, वित्तीय अभिगम्यता और डिजिटल नेटवर्क का किस प्रकार दुरुपयोग किया जाता है।
- घरेलू कट्टरपंथ और वैचारिक ध्रुवीकरण: स्थानीय शिकायतों और ऑनलाइन प्रचार के माध्यम से पनपने वाले स्वदेशी आतंकवादियों का उदय एक कम दिखाई देने वाला, किंतु उतने ही घातक खतरे प्रस्तुत करते हैं।
- हालिया आकलन से पता चला है कि केरल, महाराष्ट्र और झारखंड सहित कई भारतीय राज्यों में घरेलू कट्टरपंथ से जुड़े मामलों में गिरफ्तारियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो स्वदेशी उग्रवाद के बढ़ते खतरे को दर्शाती है।
- समुद्री सुरक्षा खतरे: भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा और रणनीतिक बंदरगाह बढ़ते समुद्री आतंकवाद के खतरों का सामना कर रहे हैं। गैर-सरकारी संगठन हथियारों, विस्फोटकों और आतंकवादियों की तस्करी के लिये इन कमज़ोरियों का फायदा उठाते हैं।
- भारतीय नौसेना की खुफिया जानकारी (वर्ष 2024) से पता चला है कि आतंकवादी संगठन अरब सागर में अवैध शिपमेंट के माध्यम से समुद्री अभिगम्यता प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे।
- साइबर आतंकवाद और उभरती प्रौद्योगिकियाँ: आतंकवादी समूह तेज़ी से साइबर टूल्स का उपयोग कर रहे हैं - जिनमें एन्क्रिप्टेड संचार, डेटा चोरी और सोशल मीडिया प्रचार शामिल हैं, जिससे साइबर आतंकवाद का खतरा बढ़ रहा है।
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक की वर्ष 2025 की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि आतंकी समूह बुनियादी अवसंरचना को बाधित करने और ऑनलाइन भर्ती करने के लिये रैंसमवेयर एवं फिशिंग अभियान चला रहे हैं।
- हाइब्रिड युद्ध और प्रॉक्सी कॉन्फ्लिक्ट्स: भारत को हाइब्रिड युद्ध का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें राज्य और गैर-राज्य तत्त्व गुप्त, प्रॉक्सी और साइबर रणनीतियों के माध्यम से अराजकता फैलाते हैं।
- विद्रोहों को प्रोत्साहित करने में चीन–पाकिस्तान गठजोड़ इस नई पीढ़ी के हाइब्रिड खतरे का उदाहरण है।
- सीमावर्ती क्षेत्रों में भारतीय सेना के अभियान अनुकूलन, खुफिया आधुनिकीकरण और रणनीतिक तत्परता की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
भारत में बहुआयामी आतंकवाद-रोधी नीति सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक उपाय
- अंतर-एजेंसी समन्वय और खुफिया जानकारी साझाकरण को सुदृढ़ करना: भारत को विस्तारित संलयन केंद्रों और रियल टाइम डेटा एकीकरण के माध्यम से एक सुदृढ़, केंद्रीकृत खुफिया जानकारी साझाकरण पारिस्थितिकी तंत्र को संस्थागत रूप देना चाहिये।
- मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) भारत की आतंकवाद-रोधी संरचना का एक प्रमुख स्तंभ बन चुका है, जो वास्तविक समय में खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान और समन्वित बहु-एजेंसी अभियानों को सुगम बनाता है।
- इस आधार को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय फ्यूज़न केंद्रों की स्थापना और राज्य-स्तरीय इकाइयों को सशक्त करना प्रशासनिक विलंब को कम करेगा तथा त्वरित, एकीकृत प्रतिक्रिया को संभव बनाएगा।
- उन्नत प्रौद्योगिकी और साइबर सुरक्षा का उपयोग: आतंकी रणनीतियों के विकास के अनुरूप भारत को निगरानी और खतरा-आकलन हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स के उपयोग का विस्तार करना चाहिये।
- वर्ष 2025 में राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) के नेतृत्व में आयोजित भारत–यूरोपीय संघ काउंटर-ड्रोन प्रशिक्षण उन्नत प्रौद्योगिकी के सफल उपयोग का उदाहरण है।
- CERT-In की सक्रिय साइबर-रक्षा को सुदृढ़ करते हुए महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की सुरक्षा करनी चाहिये, साथ ही ऑनलाइन कट्टरपंथीकरण और भर्ती को भी प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना चाहिये।
- कानूनी ढाँचे को सुदृढ़ करना और त्वरित न्यायिक प्रक्रियाएँ: विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 जैसे कानूनों में संशोधन करना उभरते खतरों और आधुनिक आतंकवाद की जटिलताओं से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण है, साथ ही दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।
- विशेष आतंकवाद-रोधी न्यायालयों की स्थापना से मुकदमों का शीघ्र निपटारा संभव होगा, जिससे दोषसिद्धि दर एवं निवारक प्रभाव में वृद्धि होगी, जैसा कि पुलवामा और पठानकोट हमलों के बाद त्वरित सुनवाइयों में देखा गया।
- सीमा और समुद्री सुरक्षा का उन्नयन: भारत की सुरक्षा संरचना में स्मार्ट फेंसिंग, थर्मल इमेजिंग और तटीय रडार प्रणालियों जैसी बहु-स्तरीय अवसंरचना को शामिल किया जाना चाहिये, जिसे उन्नत नौसेना और अर्धसैनिक गश्ती दल द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये।
- समुद्री निगरानी, तस्करी विरोधी उपायों और व्यापार मार्गों की सुरक्षा के लिये BIMSTEC और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग को गहन बनाना: दक्षिण अफ्रीका परिषद, G20 और संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद-रोधी मंच में सक्रिय भागीदारी खुफिया जानकारी साझा करने, संयुक्त अभियानों एवं नीति सामंजस्य को सुगम बनाती है।
- भारत-मिस्र संयुक्त कार्य समूह जैसी द्विपक्षीय पहलें अंतर्राष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क और आतंकी वित्तपोषण से निपटने में रणनीतिक साझेदारी के महत्त्व को दर्शाती हैं।
- सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना और कट्टरपंथ का मुकाबला करना: सिंगापुर और नॉर्वे के मॉडलों से प्रेरणा लेते हुए, भारत को सामाजिक-आर्थिक शिकायतों एवं वैचारिक कमज़ोरियों को दूर करने के लिये समुदाय-केंद्रित कार्यक्रमों का विस्तार करना चाहिये।
- जोखिमग्रस्त आबादी के लिये शैक्षणिक अभिगम्यता, व्यावसायिक प्रशिक्षण और पुनर्वास पहल से सामाजिक समुत्थानशीलता सुदृढ़ होगी तथा चरमपंथी भर्ती पर अंकुश लगेगा।
निष्कर्ष:
जैसा कि विद्वान ब्रूस हॉफमैन कहते हैं, “आतंकवाद राजनीतिक परिवर्तन की प्राप्ति के लिये हिंसा या हिंसा की धमकी के माध्यम से भय का जानबूझकर सृजन और शोषण है।”
ऐसे खतरों का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिये भारत को अंतर-एजेंसी समन्वय को सुदृढ़ करना, तकनीकी क्षमताओं का विस्तार करना और न्यायिक प्रक्रियाओं को त्वरित बनाना चाहिये, साथ ही समावेशी कट्टरपंथ-रोधी कार्यक्रमों के माध्यम से सामुदायिक समुत्थानशीलता भी विकसित करनी चाहिये।