प्रश्न :
केस स्टडी
उप पुलिस आयुक्त (साइबर एवं आंतरिक सुरक्षा) के पद पर कार्यरत IPS अधिकारी अनन्या राव अत्यधिक शिक्षित युवाओं के कट्टरपंथीकरण से प्रेरित 'व्हाइट-कॉलर टेररिज़्म (सफेदपोश आतंकवाद)' में तीव्र वृद्धि के संकेत देने वाली खुफिया सूचनाओं से बेहद चिंतित हैं। हाल की कई घटनाएँ इस प्रवृत्ति को उजागर करती हैं— इंजीनियरिंग स्नातकों द्वारा प्रतिबंधित उग्रवादी नेटवर्क के लिये एन्क्रिप्टेड संचार उपकरण विकसित करना, एक वित्त-विशेषज्ञ द्वारा क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से विदेशी आतंकी संगठनों को धन उपलब्ध कराना तथा विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा बौद्धिक बहस के नाम पर उग्रवादी साहित्य का प्रसार करना।
हालाँकि ठोस डिजिटल प्रमाण कुछ तकनीकी उद्यमियों, शिक्षाविदों एवं ऑनलाइन इन्फ्लुएंसर्स को इन गतिविधियों में संलिप्तता का दोषी ठहराते हैं, परंतु लक्षित निगरानी, भर्ती करने वालों को प्लेटफॉर्म से हटाने और UAPA-आधारित कार्रवाई शुरू करने के अनन्या के प्रस्ताव की कड़ी आलोचना हो रही है। नागरिक समाज समूह उन पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करने और निजता मानकों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हैं। प्रभावशाली शैक्षणिक संस्थान राजनीतिक नेतृत्व पर ‘अनावश्यक विवाद’ से बचने हेतु दबाव डालते हैं। मीडिया विमर्श इस कार्रवाई को राष्ट्रीय सुरक्षा की अनिवार्यता के बजाय ‘विचारधारा-आधारित पुलिसिंग’ के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। आरोपी युवाओं के माता-पिता इसे अपरिपक्वता का परिणाम मानते हुए नरमी बरतने की माँग करते हैं।
इसी दौरान, केंद्रीय खुफिया एजेंसियाँ चेतावनी देती हैं कि निष्क्रियता एक गुप्त आतंकवादी तंत्र के विकास को बढ़ावा दे सकती है, जो साइबर अटैक, वित्तीय अपराध तथा परिसरों में विचारधारात्मक पैठ जैसे खतरों को जन्म दे सकता है। अनन्या नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा और एक तात्कालिक सुरक्षा संकट के समाधान के बीच उलझी हुई हैं। उसके निर्णय से सार्वजनिक विवाद, राजनीतिक प्रतिघात एवं संभावित विधिक चुनौतियों का खतरा है, किंतु कार्रवाई में विलंब से जन- सुरक्षा से समझौता हो सकता है और उग्रवादी नेटवर्कों का मनोबल बढ़ सकता है।
प्रश्न:
1. इस परिस्थिति में अनन्या राव के समक्ष कौन-कौन से प्रमुख नैतिक दुविधाएँ उपस्थित हैं ?
2. इस केस में अंतर्निहित परस्पर-विरोधी मूल्यों एवं नैतिक सिद्धांतों का अभिनिर्धारण कर उनका विश्लेषण कीजिये।
3. अनन्या के लिये उपलब्ध संभावित कार्रवाई का मूल्यांकन कीजिये तथा उनके संभावित परिणामों का आकलन कीजिये।
4. सबसे नैतिक और प्रशासनिक रूप से विवेकपूर्ण कार्रवाई का सुझाव दीजिये जो नागरिक स्वतंत्रता तथा बढ़ते कट्टरपंथ एवं सफेदपोश आतंकवाद का मुकाबला करने की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाए रखे।
14 Nov, 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
उत्तर :
परिचय:
उच्च शिक्षित युवाओं के कट्टरपंथीकरण के परिणामस्वरूप सफेदपोश आतंकवाद का उदय, पुलिस व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा के लिये नई चुनौतियाँ खड़ी करता है। साइबर एवं आंतरिक सुरक्षा की उप पुलिस आयुक्त अनन्या राव एक जटिल नैतिक दुविधा का सामना करती हैं जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा की अनिवार्यताओं का नागरिक स्वतंत्रताओं, निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ अंतर्विरोध होता है। उनके निर्णय वैधता, नीतिशास्त्र और सार्वजनिक जवाबदेही, इन तीनों के बीच संतुलन पर निर्भर करते हैं।
मुख्य भाग:
A. अनन्या के समक्ष आने वाली प्रमुख नैतिक दुविधाएँ
- निजता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा: तकनीकी पेशेवरों और छात्रों पर लक्षित निगरानी से निजता के अधिकार का उल्लंघन होने का खतरा है, फिर भी कार्रवाई करने में विफलता से सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम उग्रवाद की रोकथाम: हालाँकि अकादमिक बहस वैध है, लेकिन इसकी आड़ में उग्रवादी विचारधाराओं का प्रसार असहमति और कट्टरपंथी प्रचार के बीच अंतर करने की दुविधा को जन्म देता है।
- विधि का शासन बनाम सार्वजनिक व राजनीतिक दबाव: नागरिक समाज समूह कड़ी कार्रवाई का विरोध करते हैं, और शैक्षणिक संस्थान घोटाले के खिलाफ लॉबी करते हैं तथा अनन्या पर कानूनी एवं नैतिक कर्त्तव्यों से समझौता करने का दबाव डालते हैं।
- निवारक पुलिसिंग बनाम निर्दोषता की धारणा: उभरते प्रमाणों के आधार पर UAPA जैसी कार्रवाई समाज की रक्षा कर सकती है, लेकिन इसे अतिशय या जल्दबाज़ी माना जा सकता है।
- व्यावसायिक निष्ठा बनाम प्रशासनिक विवेक: सख्त प्रवर्तन से राजनीतिक प्रतिक्रिया हो सकती है, जबकि निष्क्रियता नुकसान को रोकने के उसके नैतिक कर्त्तव्य का उल्लंघन करती है।
B. परस्पर विरोधी मूल्य और नैतिक तत्त्व
- उपयोगितावादी नैतिकता बनाम अधिकार-आधारित नैतिकता: एक ओर ऐसा दृष्टिकोण है जो व्यापक जन-सुरक्षा और बड़े नुकसान की रोकथाम को प्राथमिकता देता है, वहीं दूसरी ओर वह दृष्टिकोण है जो संदेह के घेरे में आये लोगों की नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा को भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण मानता है।
- जवाबदेही बनाम विवेक: अनन्या को कानूनी सीमाओं के भीतर जिम्मेदारीपूर्वक विवेक का प्रयोग करते हुए कार्रवाई और निष्क्रियता दोनों के लिये जवाबदेह होना चाहिये।
- दृढ़ विश्वास का साहस बनाम भावनात्मक बुद्धिमत्ता: उनकी निष्ठा उनसे स्पष्ट दृढ़ कार्रवाई की अपेक्षा करती है, जबकि सामाजिक आशंकाओं को समझने, हितधारकों से संवाद बनाने के लिये भावनात्मक बुद्धिमत्ता भी उतनी ही आवश्यक है, ताकि युवा उन्हें कठोर, असंवेदनशील या दमनकारी समझकर उनसे दूरी न बना लें।
- न्याय बनाम करुणा: कठोर दण्डात्मक उपाय अपराध को रोक सकते हैं, परंतु ऐसे प्रसंगों में करुणा भी आवश्यक हो सकती है जहाँ युवा गुमराह या किसी के द्वारा प्रभावित किये गये हों।
C. संभावित कार्य-प्रविधियों का मूल्यांकन
- विकल्प 1: त्वरित सख्त कार्रवाई (निगरानी + UAPA प्रवर्तन)
- लाभ: आतंक नेटवर्क को प्रारंभिक चरण में बाधित करती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा की अनिवार्यता के अनुरूप है।
- हानि: व्यापक सार्वजनिक विरोध, संभावित विधिक चुनौतियाँ और अधिकार-उल्लंघन का जोखिम।
- विकल्प 2: संतुलित, साक्ष्य-आधारित कार्रवाई
- लाभ: स्वतंत्रता और सुरक्षा का संतुलन; विधिक रूप से सुदृढ़; केवल उच्च-जोखिम व्यक्तियों को लक्षित करती है।
- हानि: धीमी तथा संसाधन-गहन; खतरे विकसित हो सकते हैं।
- विकल्प 3: सार्वजनिक दबाव के कारण कार्रवाई से बचना
- लाभ: अस्थायी रूप से विवाद से बचाव।
- हानि: नैतिक रूप से दुर्बल; खतरे को बढ़ाता है; नागरिकों की सुरक्षा के कर्त्तव्य का उल्लंघन होता है।
- विकल्प 4: निवारक + सहयोगात्मक दृष्टिकोण
- शैक्षणिक संस्थानों, अभिभावकों, मनोवैज्ञानिकों तथा साइबर विशेषज्ञों को शामिल करना; पुनर्प्रशिक्षण एवं डी-रैडिकलाइज़ेशन कार्यक्रम; लक्षित प्रवर्तन के साथ नरम हस्तक्षेप।
- लाभ: वैधता निर्मित करता है, उग्रपंथीकरण को घटाता है, दीर्घकालीन सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
- हानि: निरंतर समन्वय तथा समय की आवश्यकता।
D. सबसे नैतिक तथा प्रशासनिक रूप से विवेकपूर्ण कार्य-मार्ग
- सबसे संतुलित दृष्टिकोण एक विधिक, प्रमाण-आधारित और पारदर्शी रणनीति है जिसमें शामिल है—
- केवल उच्च-जोखिम व्यक्तियों पर न्यायिक अनुमति प्राप्त लक्षित निगरानी।
- मज़बूत डिजिटल तथा वित्तीय साक्ष्य होने पर ही UAPA की कठोर कार्रवाई।
- सीमावर्ती/संभावित युवाओं के लिये डी-रैडिकलाइज़ेशन तथा परामर्श कार्यक्रम।
- शैक्षणिक स्वतंत्रता को सुरक्षित रखते हुए विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग कर वैचारिक घुसपैठ को रोकना।
- उग्रवादी आख्यानों का प्रतिकार करने हेतु सार्वजनिक जागरूकता कार्यक्रम।
- दस्तावेज़ीकरण, विधिक पारदर्शिता और संवैधानिक सुरक्षा-उपबंधों का पालन ताकि किसी भी स्तर पर जाँच-परख का सामना किया जा सके।
- यह दृष्टिकोण अनुपातिकता, विधि-शासन, निष्पक्षता तथा सार्वजनिक हित के मानकों का पालन करता है, साथ ही लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं की रक्षा भी करता है।
निष्कर्ष:
अनन्या की दुविधा यह रेखांकित करती है कि उन्नत, विचारधारा-आधारित साइबर आतंकवाद के युग में नागरिक अधिकारों एवं सामूहिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना कितना अनिवार्य है। प्रमाण-आधारित तथा नैतिक रूप से दृढ़ निर्णय-प्रक्रिया के माध्यम से वह राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करते हुए संवैधानिक मूल्यों को सुरक्षित रख सकती हैं। यही दृष्टि जिम्मेदार पुलिसिंग, मानवीय गरिमा और नैतिक शासन के मूल तत्त्वों के अनुरूप है।