प्रश्न. सुशासन की मूल विशेषताएँ क्या हैं? समालोचनात्मक रूप से मूल्यांकन कीजिये कि भारत में ई-गवर्नेंस पहलों ने पारदर्शिता, दायित्व और नागरिक सहभागिता को बढ़ाने में किस प्रकार योगदान दिया है। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सुशासन को परिभाषित करते हुए उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- सुशासन की आवश्यक विशेषताओं पर चर्चा कीजिये।
- भारत में पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक सहभागिता बढ़ाने में ई-गवर्नेंस की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
सुशासन का तात्पर्य उस प्रकार की सत्ता-प्रयोग प्रणाली से है जो पारदर्शी, उत्तरदायी, सहभागितापूर्ण, समानतामूलक और नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील हो। यह प्रभावी सेवा-प्रदाय सुनिश्चित करता है, लोकतंत्र को सुदृढ़ करता है और जन-विश्वास को प्रोत्साहित करता है जिससे स्थिर तथा समावेशी समाज की बुनियाद तैयार होती है। भारत में शासन-प्रणाली में सुधार एक प्राथमिकता रही है और ई-गवर्नेंस पहल पारदर्शिता, उत्तरदायित्व एवं नागरिक सहभागिता बढ़ाने के एक प्रमुख साधन के रूप में उभरी है।
मुख्य भाग:
सुशासन की आवश्यक विशेषताएँ:
- पारदर्शिता: नीतियों, प्रक्रियाओं और निर्णयों का स्पष्ट संप्रेषण ताकि अस्पष्टता और भ्रष्टाचार कम हो सके।
- जवाबदेही: अधिकारी अपने कार्यों और निर्णयों के लिये जवाबदेह होते हैं, जिससे दायित्व सुनिश्चित होता है।
- विधि का शासन: सभी नागरिकों के लिये विधि का समान अनुप्रयोग और उनके अधिकारों का संरक्षण।
- सहभागिता: निर्णय-निर्माण और नीति-निर्माण में नागरिकों की सहभागिता जिससे समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
- प्रभावशीलता और दक्षता: संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग ताकि गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ समय पर प्रदान की जा सकें।
- न्याय तथा समावेशन: यह सुनिश्चित करता है कि लाभ उपेक्षित और वंचित वर्गों तक पहुँचे।
- उत्तरदायी शासन: शासन की कार्रवाई नागरिकों की आवश्यकताओं का त्वरित समाधान करे।
- सम्मति-उन्मुखता: निर्णय परामर्श तथा संवाद के माध्यम से लिये जाते हैं जिससे विभिन्न हितों में संतुलन बने और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा मिले।

सुशासन को बढ़ावा देने में ई-गवर्नेंस की भूमिका:
ई-गवर्नेंस, सरकारी कार्यप्रणाली, सेवा वितरण और नागरिक सहभागिता को बेहतर बनाने के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग है। इसका योगदान निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है:
- पारदर्शिता: डिजिटल प्लेटफॉर्म शासन में अस्पष्टता को कम करते हैं।
- उदाहरण के लिये सरकारी निविदाओं हेतु ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल प्रक्रियाओं को खुला बनाते हैं और भ्रष्टाचार को कम करते हैं। इसी प्रकार डिजिलॉकर प्रणाली नागरिकों को सरकारी द्वारा जारी दस्तावेज़ों तक ऑनलाइन एक्सेस उपलब्ध कराती है जिससे प्रशासनिक हस्तक्षेप कम होता है।
- जवाबदेही: ICT उपकरण ऑडिट ट्रेल्स और तथा कार्य-निष्पादन निगरानी उपलब्ध कराते हैं।
- DBT (प्रत्यक्ष लाभ अंतरण) जैसी आधार-सक्षम योजनाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि सब्सिडी नियत लाभार्थियों तक पहुँचे जिससे अधिकारियों को किसी भी अपव्यय या विलंब के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सके।
- नागरिक सहभागिता : डिजिटल प्लेटफॉर्म नागरिकों को सीधे जुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं।
- केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं निगरानी प्रणाली (CPGRAMS) नागरिकों को ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने तथा उनके समाधान पर नजर रखने में सक्षम बनाती है, जिससे सहभागी शासन को प्रोत्साहन मिलता है।
चुनौतियाँ
- डिजिटल डिवाइड: ग्रामीण तथा हाशिये पर स्थित जनसंख्या के पास प्रायः ICT उपकरणों की पहुँच नहीं होती, जिससे उनकी सहभागिता सीमित हो जाती है।
- साइबर सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताएं: बढ़ता डिजिटलीकरण संवेदनशील डेटा को जोखिम में डालता है।
- परिवर्तन का प्रतिरोध: प्रशासनिक जड़ता तथा प्रशिक्षण की कमी ई-गवर्नेंस उपकरणों के प्रभावी उपयोग में बाधा उत्पन्न करती है।
- अधूरी एकीकरण प्रक्रिया: पुरानी प्रणालियाँ तथा खंडित प्लेटफॉर्म प्रणाली की दक्षता को कम कर देते हैं।
आगे की राह:
- समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना और डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना चाहिये ताकि समावेश सुनिश्चित हो सके।
- नागरिकों की जानकारी की सुरक्षा हेतु डेटा-सुरक्षा कार्यढाँचों को सुदृढ़ करना चाहिये।
- अधिकारियों और नागरिकों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के प्रभावी उपयोग के लिये प्रशिक्षण तथा क्षमता-विकास उपलब्ध कराना चाहिये।
- पूर्वानुमानित और पूर्वानुमानित के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तथा डेटा-एनालिटिक्स का उपयोग करना चाहिये।
निष्कर्ष:
सुशासन पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक-उन्मुखता पर आधारित होता है और ई-गवर्नेंस ने भारत में इन स्तंभों को उल्लेखनीय रूप से सुदृढ़ किया है। डिजिटल इंडिया, आधार-सक्षम सेवाओं और CPGRAMS जैसी पहलों ने कार्यकुशलता, नागरिक सहभागिता एवं उत्तरदायित्व को बढ़ाया है। हालाँकि डिजिटल एक्सक्लूज़न और साइबर सुरक्षा जैसी चुनौतियों का समाधान आवश्यक है ताकि शासन व्यवस्था वास्तव में समावेशी, सहभागी एवं सुदृढ़ बन सके।