प्रश्न. नैतिक अंतःप्रज्ञा (Moral Intuition) और नैतिक तर्क (Moral Reasoning) मिलकर नैतिक निर्णय (Ethical Judgment) को किस प्रकार प्रभावित करते हैं, व्याख्या कीजिये। अपने उत्तर को सिविल सेवा के उदाहरणों से स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- नैतिक अंतःप्रज्ञा और नैतिक तर्क का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- नैतिक अंतःप्रज्ञा और नैतिक तर्क मिलकर नैतिक निर्णय को किस प्रकार प्रभावित करते हैं, विवेचना कीजिये।
- सिविल सेवाओं के उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
सार्वजनिक जीवन में नैतिक निर्णय नैतिक अंतर्ज्ञान/अंतःप्रज्ञा और नैतिक तर्क की गतिशील अंतःक्रिया से विकसित होता है। जहाँ नैतिक अंतःप्रज्ञा किसी नैतिक परिस्थिति के प्रति सहज, भावनात्मक रूप से प्रेरित प्रतिक्रियाओं का प्रतिनिधित्व करती है, वहीं नैतिक तर्क नियमों, सिद्धांतों एवं परिणामों द्वारा निर्देशित सजग और विवेकी मूल्यांकन को अभिव्यक्त करता है।
साथ में, दोनों मिलकर यह निर्धारित करते हैं कि जटिल प्रशासनिक स्थितियों में लोक सेवक ‘सही’ और ‘गलत’ का आकलन किस प्रकार करते हैं।
मुख्य भाग:
नैतिक अंतःप्रज्ञा की भूमिका
- त्वरित, मूल्य-आधारित प्रतिक्रियाएँ: नैतिक अंतःप्रज्ञा लोक सेवकों को उन परिस्थितियों में तत्काल नैतिक निर्णय लेने में सक्षम बनाता है जिनमें तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता होती है, विशेषकर जब समय की कमी विस्तृत विचार-विमर्श की अनुमति नहीं देती है।
- व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों में निहित: यह व्यक्ति के पालन-पोषण, नैतिक अभिविन्यास, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सहानुभूति को दर्शाता है। इससे अधिकारियों को स्वाभाविक रूप से अपने कार्यों को सामाजिक मानदंडों एवं नैतिक अपेक्षाओं के अनुरूप ढ़ालने में सहायता मिलती है।
- लोक प्रशासन में, नैतिक अंतःप्रज्ञा नैतिक निर्णय की मूल प्रेरणा के रूप में कार्य करता है, जो तर्क प्रक्रिया के प्रारंभ होने से पहले ही लोक सेवक को संभावित क्षति, अन्याय या नैतिक त्रुटि के प्रति सजग कर देता है।
- उदाहरण: यदि कोई लोक सेवक, तत्काल चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता वाले किसी नागरिक को अत्यधिक संकट की अवस्था में पाता है, तो वह सहज रूप से तत्काल सहायता को प्राथमिकता दे सकता है, जिससे जीवन रक्षक हस्तक्षेप में कोई विलंब न हो। इस प्रकार की सहज प्रतिक्रिया मानवीय-केंद्रित शासन को प्रतिपादित करती है तथा अधिकारी की नैतिक संवेदनशीलता को दर्शाती है।
नैतिक तर्क की भूमिका
- विचार-विमर्श और निष्पक्षता: नैतिक तर्क यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय न्यायसंगत, निष्पक्ष और विधि-अनुरूप हो जिससे केवल भावनाओं या पूर्वाग्रहों से प्रेरित आचरण को रोका जा सके।
- नियमों और परिणामों द्वारा निर्देशित: इसमें संवैधानिक प्रावधानों, सेवा नियमों, विधिक रूपरेखाओं और दीर्घकालिक प्रभावों के आलोक में विकल्पों का विश्लेषण करना शामिल है।
- तर्कसंगत विचार प्रशासनिक अधिकारियों को मनमानी से बचाता है तथा प्रणालीगत निष्पक्षता सुनिश्चित करता है, जिससे व्यक्तिगत आचरण संस्थागत नैतिकता और विधि के शासन के साथ संगत रहता है।
- उदाहरण: नागरिक की सहायता करते समय अधिकारी नैतिक तर्क का प्रयोग करते हुए यह सुनिश्चित करता है कि राहत सरकारी निधियों या अनुमोदित योजनाओं जैसे विधिक तथा औपचारिक माध्यमों से प्रदान की जाये जिससे पारदर्शिता तथा जवाबदेही बनी रहे।
अंतःप्रज्ञा और तर्क के बीच अंतःक्रिया
- पूरक भूमिकाएँ: अंतःप्रज्ञा प्रारंभिक नैतिक प्रेरणा प्रदान करती है, जो यह संकेत देती है कि क्या सही या क्या गलत प्रतीत होता है जबकि तर्क उस अंतःप्रेरणात्मक प्रतिक्रिया की पुष्टि करता है उसे परिष्कृत करता है या आवश्यकता अनुसार संशोधित करता है।
- संतुलन आवश्यक है: अंतःप्रज्ञा पर अत्यधिक निर्भरता भावनात्मक पूर्वाग्रह या पक्षपात का कारण बन सकती है, जबकि तर्क पर अत्यधिक निर्भरता प्रशासनिक विलंब या नैतिक उदासीनता का कारण बन सकती है।
- नैतिक निर्णय सबसे मज़बूत तब होता है, जब अंतःप्रेरणा और तर्क साथ कार्य करते हैं। अंतःप्रेरणा संवेदनशीलता सुनिश्चित करती है और तर्क उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है जिसके परिणामस्वरूप समग्र और संतुलित निर्णय संभव होते हैं।
सिविल सेवाओं के उदाहरण
- भ्रष्टाचार परिदृश्य:
- अंतःप्रज्ञा: यह संकेत देती है कि रिश्वत स्वीकार करना नैतिक रूप से गलत है।
- नैतिक तर्क: अधिकारी को साक्ष्य दर्ज करने, उचित माध्यमों से रिपोर्ट करने और व्हिसलब्लोअर प्रोटोकॉल का पालन करने हेतु मार्गदर्शन देता है ताकि विधिक पालन के साथ उसकी ईमानदारी सुरक्षित रहे।
- आपदा प्रबंधन:
- अंतःप्रज्ञा: बाढ़, आग या महामारी जैसी परिस्थितियों में तुरंत जान बचाने हेतु कार्रवाई को प्रेरित करती है।
- नैतिक तर्क: दुर्लभ संसाधनों के समतामूलक वितरण, बचाव कार्यों के प्राथमिकता निर्धारण और मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) के अनुपालन को सुनिश्चित करता है।
- जन शिकायत निवारण:
- अंतःप्रज्ञा: बेरोज़गारी या स्वास्थ्य आपात स्थितियों से प्रभावित नागरिकों के प्रति सहानुभूति जागृत करती है।
- नैतिक तर्क: यह सुनिश्चित करता है कि राहत विधिक रूप से स्वीकृत, पारदर्शी, संवहनीय हो और किसी भी नियम या निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन न करे।
निष्कर्ष:
सिविल सेवाओं में नैतिक निर्णय सबसे प्रभावी तब होता है जब नैतिक अंतःप्रज्ञा और नैतिक तर्क एक दूसरे के पूरक होते हैं। साथ में, ये लोक सेवकों को ऐसे निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं जो दयालु होते हुए भी वैध, त्वरित होते हुए भी विवेकपूर्ण हों, जिससे ईमानदारी, जवाबदेही और लोक-विश्वास की उस भावना को सुदृढ़ किया जा सके जो नैतिक तथा प्रभावी शासन की आधारशिला मानी जाती है।