• प्रश्न :

    प्रश्न 2. “भारत का सड़क परिवहन क्षेत्र आर्थिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, किंतु यह अब भी कमज़ोर अवसंरचना और बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं से ग्रस्त है।” सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा एक अधिक सुरक्षित एवं सतत् परिवहन तंत्र के निर्माण हेतु उपाय प्रस्तावित कीजिये। (250 शब्द)

    12 Nov, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत के सड़क परिवहन क्षेत्र के महत्त्व तथा आर्थिक विकास से इसके संबंध को रेखांकित करते हुये विषय की भूमिका प्रस्तुत कीजिये।
    • सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।
    • एक सुरक्षित एवं संधारणीय (सस्टेनेबल) परिवहन तंत्र निर्माण हेतु उपाय प्रस्तुत कीजिये। 
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    सड़क परिवहन क्षेत्र भारत के आर्थिक विकास की रीढ़ के रूप में कार्य करता है, जो लगभग 60% वस्तु-परिवहन और 87% यात्री यातायात का वहन करता है। हालाँकि, यह क्षेत्र पुराने बुनियादी अवसंरचना की कमी और सड़क दुर्घटनाओं में खतरनाक वृद्धि से ग्रस्त है— वर्ष 2023 में 1.72 लाख से अधिक मृत्यु की घटनाएँ हुईं, जिसका आँकड़ा वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक है। इस क्षेत्र के आर्थिक महत्त्व और इसकी प्रणालीगत कमियों के बीच इस विरोधाभास के लिये एक सुरक्षित एवं संधारणीय परिवहन पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण हेतु गहन विश्लेषण की आवश्यकता है।

    मुख्य भाग: 

    भारत में सड़क सुरक्षा में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ

    • ओवरस्पीडिंग: भारत में लगभग 70% यातायात मौतें ओवरस्पीडिंग के कारण होती हैं, जो प्रायः राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर होती हैं।
      • शराब एवं मादक पदार्थों का सेवन: मोटर यान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत सख्त विधिक प्रतिबंधों के बावजूद, नशे में गाड़ी चलाना भारत में घातक सड़क दुर्घटनाओं का एक व्यापक कारण बना हुआ है।
        • उदाहरण के लिये, दिल्ली से प्राप्त हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि नशे में गाड़ी चलाने के मामलों में तीव्र वृद्धि हुई है, वर्ष 2024 में उल्लंघन के 22,703 मामले दर्ज किये गए— जो वर्ष 2023 की तुलना में 40% की वृद्धि है।
      • लापरवाह ड्राइविंग (मोबाइल फोन का उपयोग): लगभग 8% दुर्घटनाएँ लापरवाह ड्राइविंग, विशेष रूप से मोबाइल फोन के उपयोग जैसे ड्राइविंग करते समय टेक्स्टिंग के कारण होती हैं।
        • मोबाइल फोन के उपयोग से ध्यान और प्रतिक्रिया समय में कमी आती है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक गंभीर दुर्घटनाएँ होती हैं।
      • अकुशल सड़क अवसंरचना और अनुरक्षण: उचित अवसंरचना और विनियामक उन्नयन के बिना तीव्र मोटरीकरण से दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है।
        • वर्ष 2020 में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या 3.7 लाख से बढ़कर वर्ष 2023 में 4.8 लाख हो गई, जो वाहन वृद्धि दर के समानांतर है।
      • हेलमेट और सीटबेल्ट का उपयोग न करना: सड़क सुरक्षा जागरूकता और यातायात अनुशासनहीनता सामान्य बनी हुई है, विशेष रूप से हेलमेट के उपयोग, सीट प्रतिधारण और गति सीमा के पालन के संबंध में।
        • MoRTH रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में केवल हेलमेट न पहनने के कारण 54,568 दोपहिया वाहन चालकों एवं सवारों की मृत्यु हुई, जो उस वर्ष सभी सड़क मृत्यु का 31.6 प्रतिशत था।
      • अपर्याप्त चालक प्रशिक्षण और लाइसेंस: कई चालक (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) वैध लाइसेंस या औपचारिक प्रशिक्षण के बिना वाहन चलाते हैं, जिससे लापरवाह ड्राइविंग व्यवहार को बढ़ावा मिलता है।
      • प्रवर्तन में कमी और खंडित संस्थागत शासन: कई एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी के कारण यातायात कानूनों का प्रवर्तन अनियमित है।
        • AI-संचालित स्पीड कैमरे और CCTV जैसे इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्तन का परीक्षण किया जा रहा है, लेकिन अभी तक यह व्यापक नहीं हुआ है।
        • कई दुर्घटना पीड़ितों की मृत्यु इसलिये हो जाती है क्योंकि दुर्घटना के बाद महत्त्वपूर्ण 'गोल्डन ऑवर' के दौरान उन्हें समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाती।

    भारत में सड़क सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के उपाय

    • कठोर सड़क सुरक्षा ऑडिट के साथ सुरक्षित प्रणाली दृष्टिकोण को लागू करना: भारत को सुरक्षित प्रणाली दृष्टिकोण को संस्थागत बनाना चाहिये, जो मानवीय त्रुटि को ध्यान में रखते हुए घातक परिणामों को न्यूनतम करने के लिये सड़कों एवं नीतियों को डिज़ाइन करता हो। 
    • प्रौद्योगिकी का उपयोग और सख्त दंड लागू करके विधि प्रवर्तन का सुदृढ़ीकरण: ओवरस्पीडिंग, नशे में ड्राइविंग तथा हेलमेट/सीटबेल्ट कानूनों का पालन न करने पर अंकुश लगाने के लिये, भारत को AI-सक्षम कैमरों, गति पहचान प्रणालियों और ई-चालान एकीकरण के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्तन का विस्तार करना चाहिये, जैसा कि उत्तर प्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किया गया है।
      • मोटर यान (संशोधन) अधिनियम, 2019 को पूरे देश में पूर्ण रूप से लागू किया जाना चाहिये, जिसमें कठोर दंड का प्रावधान, बार-बार उल्लंघन करने वालों की निगरानी तथा त्वरित न्याय के लिये वर्चुअल कोर्ट्स शामिल हों।
      • सुंदर समिति ने राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा एवं यातायात प्रबंधन बोर्ड के साथ-साथ राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा कोष की स्थापना की अनुशंसा की थी, ताकि पूरे भारत में सड़क सुरक्षा पहलों के लिये समन्वित नीति कार्यान्वयन, प्रभावी विनियमन और सतत् वित्तपोषण सुनिश्चित किया जा सके।
    • समावेशी डिजाइन के साथ सड़क अवसंरचना का आधुनिकीकरण और अनुरक्षण: भारत को सड़क निर्माण एवं रख-रखाव (ब्लैक स्पॉट (दुर्घटना-बहुल स्थान) का उन्मूलन करना, सड़क संकेत, प्रकाश व्यवस्था, पैदल यात्री क्रॉसिंग और साइकिल लेन में सुधार करना) में निवेश बढ़ाना चाहिये। 
    • चालक प्रशिक्षण, लाइसेंसिंग और प्रमाणन में वृद्धि: चालक क्षमता में अंतराल को दूर करने के लिये मज़बूत सुधारों की आवश्यकता है।
      • ज़िला स्तरीय ड्राइविंग प्रशिक्षण केंद्रों का विस्तार किया जाना चाहिये तथा उनमें व्यावहारिक मूल्यांकन और मनोवैज्ञानिक फिटनेस जाँच सहित अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों पर आधारित मानकीकृत पाठ्यक्रम होने चाहिये। 
      • लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया का डिजिटलीकरण करने तथा फर्ज़ी लाइसेंसों पर सख्त नियंत्रण से ड्राइविंग लाइसेंस प्रणाली की पारदर्शिता, उत्तरदायित्व एवं निगरानी क्षमता सुदृढ़ हो सकती है जिससे सड़क अनुशासन में उल्लेखनीय सुधार सुनिश्चित किया जा सकेगा।
    • ट्रॉमा केयर और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं (EMS) में निवेश: EMS बुनियादी अवसंरचना और सुविधाओं में सुधार करके भारत में सड़क दुर्घटनाओं के बाद होने वाली उच्च मृत्यु-दर को कम किया जा सकता है।
      • राजमार्गों के किनारे ट्रॉमा सेंटरों का विस्तार, टोल प्लाज़ा पर प्रशिक्षित पैरामेडिक्स के साथ एम्बुलेंस (NHARSS के तहत) तथा कैशलेस उपचार योजनाओं को देश भर में तीव्रता से लागू किया जाना चाहिये। 
      • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों और विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों के अनुसार, दुर्घटना के बाद 'गोल्डन आवर' के लिये बेहतर एम्बुलेंस सेवा समय और अस्पताल समन्वय की आवश्यकता होती है।
    • सार्वजनिक जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन अभियान को बढ़ावा: राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा माह में शामिल ‘सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा’ जैसे सतत् सार्वजनिक अभियानों के तहत हेलमेट के उपयोग, गति नियमों के पालन और संयमित ड्राइविंग पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • एक मज़बूत राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा डेटा पारिस्थितिकी तंत्र का विकास: e-DAR प्रणालियों के माध्यम से रियल टाइम रिपोर्टिंग के साथ एक व्यापक राष्ट्रीय दुर्घटना डेटाबेस को लागू करना साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सक्षम बनाता है। 
      • ब्रिटेन की STATS19 प्रणाली द्वारा क्रियान्वित सड़क दुर्घटना डेटाबेस तक सार्वजनिक अभिगम्यता पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और डेटा-आधारित नीति-निर्माण को बढ़ावा देती है, जिससे नागरिकों एवं शोधकर्त्ताओं को रुझानों की निगरानी करने तथा नीति परिणामों का आकलन करने में सहायता मिलती है।

    निष्कर्ष: 

    चूँकि सड़क दुर्घटनाएँ अपरिहार्य नहीं, बल्कि कारणवश होती हैं, इसलिये एक क्षण की भी लापरवाही जीवन को तबाह कर सकती है। केरल उच्च न्यायालय ने उचित ही इस बात पर ज़ोर दिया कि सड़क सुरक्षा केवल एक नियम नहीं, बल्कि एक सामूहिक ज़िम्मेदारी भी है। सतत् विकास लक्ष्य 3.6 को प्राप्त करने के साथ ही वर्ष 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को न्यूनतम करने के लिये, भारत को सुरक्षित प्रणाली दृष्टिकोण अपनाने, प्रौद्योगिकी-आधारित प्रवर्तन को सुदृढ़ करने, बुनियादी अवसंरचना का आधुनिकीकरण करने, चालक प्रशिक्षण व आघात देखभाल में सुधार करने तथा जवाबदेही एवं सुरक्षित सड़कों के लिये निरंतर जन जागरूकता और न्यायिक निगरानी के माध्यम से डेटा-आधारित निगरानी को बढ़ाने की आवश्यकता है।