• प्रश्न :

    प्रश्न. भारत की विकसित होती वन संरक्षण रणनीति का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये तथा पारिस्थितिक एवं विकासात्मक चुनौतियों के संदर्भ में इसे सशक्त बनाने के उपाय प्रस्तावित कीजिये। (150 शब्द)

    12 Nov, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत के वन संरक्षण कार्यढाँचे का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत की वन संरक्षण रणनीति के विकास की व्याख्या कीजिये।
    • वन संरक्षण प्रयासों की प्रमुख चिंताओं का उल्लेख किया जाये।
    • संरक्षण प्रयासों को सुदृढ़ करने हेतु उपाय प्रस्तावित कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    भारत का वन संरक्षण कार्यढाँचा एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है क्योंकि देश अपनी विकासात्मक प्राथमिकताओं को पारिस्थितिक संधारणीयता के साथ संतुलित करने का प्रयास कर रहा है। भारत की रणनीति अब केवल वनरोपण के संकुचित दृष्टिकोण से आगे बढ़ते हुए पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन, जलवायु लक्ष्यों, जन भागीदारी तथा प्रौद्योगिकी आधारित निगरानी की व्यापक दिशा में विकसित हुई है। इसके बावजूद कुछ स्थायी कमियाँ दीर्घकालिक संधारणीयता में बाधा उत्पन्न करती हैं।

    मुख्य भाग: 

    भारत की विकसित होती वन संरक्षण रणनीति

    • वन एवं वृक्ष आवरण बढ़ाने पर अधिक ध्यान: भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR), 2023 के अनुसार, भारत का कुल वन एवं वृक्ष आवरण 827,357 वर्ग किमी. है, जो भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% है। 
      • उल्लेखनीय रूप से, वर्ष 2021 से 2023 तक वन आवरण में 156 वर्ग किमी और वृक्ष आवरण में 1,289 वर्ग किमी की वृद्धि हुई। 
    • कार्बन अवशोषण और जलवायु लक्ष्य: भारत के वन महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं और वर्तमान में लगभग 30.43 बिलियन टन CO₂ समतुल्य अवशोषित करते हैं, जो वर्ष 2005 से 2.29 बिलियन टन की वृद्धि को दर्शाता है। 
      • यह बढ़ती कार्बन अवशोषण क्षमता पेरिस समझौते के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • सरकार समर्थित वनरोपण और पुनर्स्थापन: 
      • ग्रीन इंडिया मिशन (GIM) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 25 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पुनर्स्थापित करना है।
      • राष्ट्रीय वन नीति में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम एक तिहाई भूमि को वन/वृक्ष आच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया है।
      • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP) और “एक पेड़ माँ के नाम” जैसे जन अभियानों ने 1.4 अरब से अधिक पौधे रोपकर नागरिक भागीदारी को बढ़ावा दिया है।
      • मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट्स एंड टैंजिबल इनकम (MISHTI) योजना के अंतर्गत मैंग्रोव पुनर्स्थापन और वन्यजीव गलियारा पुनर्वनीकरण (काज़ीरंगा-कार्बी आंगलोंग, राजाजी-कॉर्बेट) पारिस्थितिक पुनर्स्थापन को रेखांकित करते हैं।
      • मध्य प्रदेश में वन सीमाओं का डिजिटलीकरण, उपग्रह आधारित वनाग्नि चेतावनी और AI आधारित वनाग्नि पायलट तकनीक-सक्षम शासन की ओर बदलाव को दर्शाते हैं।
      • संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) और प्रधानमंत्री वन धन योजना (PMVDY) जैसे समुदाय-केंद्रित कार्यक्रम लघु वन उपज (MFP) मूल्य शृंखलाओं के माध्यम से जनजातीय आजीविका को सुदृढ़ करते हैं।

    गंभीर चिंताएँ:

    • वन भूमि परिवर्तन: सत्र 2014-15 से सत्र 2023-24 तक 1,73,984 हेक्टेयर वन भूमि के हस्तांतरण को स्वीकृति दी गई। अकेले वर्ष 2021 और 2025 के दौरान 78,135 हेक्टेयर वन भूमि का सफाया किया गया। 
      • यह विशाल स्थानांतरण पारिस्थितिकीय अखंडता, आवासिक संपर्कता तथा जलवायु अनुकूलन को कमज़ोर करता है। 
    • वन अधिकार अधिनियम (FRA) का अपर्याप्त क्रियान्वयन: वन अधिकार अधिनियम (FRA) का क्रियान्वयन संतोषजनक नहीं है; केवल कुछ राज्यों ने सामुदायिक वन संसाधन (CFR) अधिकारों को मान्यता देने में पर्याप्त प्रगति की है। 
      • ओडिशा के बुडागुड़ा ग्राम पंचायत जैसे मामलों में संघर्ष स्थिति स्पष्ट करते हैं कि सामुदायिक प्रबंधन को अपेक्षित सुदृढ़ता नहीं मिल सकी है।
    • एकल-कृषि वृक्षारोपण: वन आवरण में हुई वृद्धि का अधिकांश हिस्सा वृक्षारोपण से आया है, न कि प्राकृतिक वनों से।
      • यूकेलिप्टस और सागौन जैसी एकल-फसलें जैवविविधता को कम करती हैं, मृदा की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं तथा कीटों एवं अग्नि के प्रति सुभेद्यता को बढ़ाती हैं।
    • आक्रामक प्रजातियों का बढ़ता प्रसार: लैंटाना कैमरा (जो कुछ व्याघ्र अभयारण्यों के लगभग 40% क्षेत्र में फैली हुई हैं) और प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा जैसी बाह्य प्रजातियों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है, जिससे पुनर्जनन में बाधा आ रही है तथा पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना में भी परिवर्तन हो रहा है।
    • वनाग्नि और जलवायु परिवर्तन: बढ़ते भूमंडलीय ताप, अनियमित मानसून और वनाग्नि के कारण के कारण 44% वृक्ष-आवरण का ह्रास हुआ है। हालाँकि वनाग्नि की घटनाएँ 223,000 (वर्ष 2021-22) से घटकर 203,500 (वर्ष 2023-24) हो गई हैं, लेकिन अपर्याप्त धन और सामुदायिक भागीदारी प्रभावी अग्नि प्रबंधन को सीमित करती है।
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष: प्राकृतिक आवासों के विखंडन और ह्रास के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है और वर्ष 2019–24 के दौरान केवल हाथियों के हमलों में 2,800 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। यद्यपि AI आधारित चेतावनी प्रणालियाँ सहायक हैं किंतु भू-दृश्य-स्तरीय की समन्वित योजना अभी भी अपर्याप्त है।

    भारत की वन संरक्षण रणनीति को सुदृढ़ करने के उपाय

    • वन भूमि स्थानांतरण की सख्त जाँच की जानी चाहिये तथा वन संरक्षण नियमों में पारिस्थितिक गलियारों एवं संवेदनशील आवासों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • वन अधिकार अधिनियम का पूर्ण कार्यान्वयन, CFR अधिकारों की मान्यता और ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • मूल प्रजातियों द्वारा पुनर्वनीकरण की ओर संक्रमण, एकल-कृषि पद्धति को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना तथा आक्रामक प्रजातियों का वैज्ञानिक रूप प्रबंधन करना चाहिये।
    • कृषि वानिकी का विस्तार करना चाहिये तथा इसे जलवायु-अनुकूलन, कार्बन बाज़ार और ग्रामीण आजीविका से जोड़ना चाहिये।
    • सामुदायिक दलों, जलवायु-जोखिम मानचित्रण और उन्नत उपग्रह खुफिया जानकारी के माध्यम से वनाग्नि प्रबंधन को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
    • वन संरक्षण को ज़िला नियोजन में एकीकृत किया जाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि विकास परियोजनाओं में वन्यजीव मार्ग, सुरंगें एवं पारिस्थितिक बफर शामिल हों।
    • सामुदायिक अभियानों और पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से नागरिक नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष 

    ‘द रिलिजन ऑफ द फॉरेस्ट’ में रवींद्रनाथ टैगोर ने बहुत ही सुंदर ढ़ंग से लिखा है कि “वन हमें संतुलन का सिद्धांत सिखाते हैं— ऐसा जीवन जहाँ बिना दोहन या संचय के प्रकृति के उपहारों का आनंद लिया जाये।”

    इस आदर्श को मूर्त रूप देने के लिये भारत को पारिस्थितिक पुनर्स्थापन, स्थानीय एवं जनजातीय समुदायों का सशक्तीकरण, उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग तथा वन संरक्षण हेतु विधिक कार्यढाँचे को और सुदृढ़ करना आवश्यक है।