• प्रश्न :

    प्रश्न. “भारत का बहुपक्षवाद नैतिक नेतृत्व और रणनीतिक व्यावहारिकता, दोनों से प्रेरित है।” इस द्वैत को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) तथा ब्रिक्स (BRICS) में भारत की भूमिका के उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

    04 Nov, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत के बहुपक्षीय दृष्टिकोण के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
    • भारत के बहुपक्षवाद में द्वैतवाद का गहन विश्लेषण प्रस्तुत कीजिये।
    • SCO और BRICS में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत का बहुपक्षीय दृष्टिकोण दो मार्गदर्शक स्तंभों पर आधारित एक परिष्कृत संतुलनकारी कार्य को दर्शाता है: नैतिक नेतृत्व और रणनीतिक व्यावहारिकता। जहाँ नैतिक नेतृत्व भारत को एक न्यायसंगत, समतामूलक एवं बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के लिये प्रेरित करता है, वहीं रणनीतिक व्यावहारिकता सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और ऊर्जा में राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। यह द्वैतवाद शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और BRICS जैसे गैर-पश्चिमी समूहों के साथ भारत के जुड़ाव में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

    मुख्य भाग:

    भारत के बहुपक्षवाद में द्वैतवाद: नैतिक नेतृत्व और रणनीतिक व्यावहारिकता

    आयाम नैतिक नेतृत्व (मानक) रणनीतिक व्यावहारिकता (वास्तविक राजनीति)
    मुख्य लक्ष्य वैश्विक समता और न्याय की अनुशंसा राष्ट्रीय हितों और स्वायत्तता को आगे बढ़ाना
    केंद्रबिंदु ग्लोबल साउथ, जलवायु न्याय, आतंकवाद-रोधी सहयोग ऊर्जा सुरक्षा, भू-राजनीतिक संतुलन, संपर्कता
    उपकरण कूटनीति, सर्वसम्मति-निर्माण, सॉफ्ट पावर मुद्दा-आधारित सहयोग, कठोर वार्ताएँ, सामरिक संतुलनकारी नीति

    शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत की भूमिका

    A. नैतिक नेतृत्व

    • आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता: भारत SCO विचार-विमर्श में आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता के सिद्धांत का लगातार समर्थन करता है और इसकी सार्वभौमिक निंदा को कम करने के प्रयासों, विशेष रूप से पाकिस्तान या चीन द्वारा, का विरोध करता है।
    • 'सुरक्षित' कार्यढाँचा: अपनी अध्यक्षता के दौरान, भारत ने SCO के फोकस को सुरक्षा से आगे बढ़ाकर विकास, पर्यावरण संरक्षण और संप्रभुता के सम्मान को भी शामिल किया।
    • सभ्यतागत संवाद: SCO साझा बौद्ध विरासत और वाराणसी को SCO की पहली सांस्कृतिक एवं पर्यटन राजधानी के रूप में नामित करने जैसी पहल भारत की सौम्य शक्ति एवं सांस्कृतिक कूटनीति को दर्शाती हैं।

    B. रणनीतिक व्यावहारिकता

    • शक्ति गतिशीलता को संतुलित करना: भारत की भागीदारी SCO को चीन-पाकिस्तान धुरी के प्रभुत्व में आने से रोकती है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा मामलों में उसका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।
    • आतंकवाद-रोधी सहयोग: क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS) के साथ जुड़ाव भारत को रूस और मध्य एशिया के साथ खुफिया और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने में सहायता करता है।
    • कनेक्टिविटी और ऊर्जा सुरक्षा: SCO ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ नीति को आगे बढ़ाने और स्थिर ऊर्जा मार्गों को सुरक्षित करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।

    BRICS में भारत की भूमिका

    A. नैतिक नेतृत्व

    • वॉइस ग्लोबल साउथ की आवाज: भारत समावेशी विकास, समान जलवायु वित्त और निष्पक्ष प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की वकालत करता है।
    • वैश्विक शासन में सुधार: भारत उभरती हुई शक्ति वास्तविकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, IMF और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं के लोकतंत्रीकरण का समर्थन करता है।
    • विकासात्मक मॉडलों को बढ़ावा देना: भारत UPI और आधार जैसे डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाली वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं के रूप में आगे बढ़ा रहा है।

    B. रणनीतिक व्यावहारिकता

    • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): NDB की स्थापना में भारत की भूमिका अवसंरचना वित्तपोषण के अनुकूल, गैर-पश्चिमी स्रोतों को सुरक्षित करने की दिशा में एक व्यावहारिक कदम को दर्शाती है।
    • रणनीतिक स्वायत्तता: BRICS अपनी पश्चिमी साझेदारियों (जैसे क्वाड) को गैर-पश्चिमी शक्तियों के बीच सहयोग के साथ संतुलित करके भारत की बहु-संरेखण रणनीति को सुदृढ़ करता है।
    • आर्थिक लचीलापन: स्थानीय मुद्रा व्यापार और आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था जैसे वित्तीय तंत्रों की अनुशंसा डॉलर पर निर्भरता एवं प्रतिबंधों के प्रति सुभेद्यता को कम करने में सहायता करती है।

    निष्कर्ष

    SCO और BRICS जैसे मंचों में भारत की भागीदारी इसकी द्वि-आयामी कूटनीति को रेखांकित करती है जिसमें नैतिक दृढ़ता का संयोजन व्यावहारिक राजनीति से होता है। भारत अपने लोकतांत्रिक लोकाचार की वैधता और ग्लोबल साउथ नेतृत्व का उपयोग संस्थागत सुधारों के लिये आवाज़ उठाने में करता है जबकि साथ ही आर्थिक तथा सुरक्षा-संबंधी उद्देश्यों को व्यवहारिक रूप से आगे बढ़ाता है। यह द्वैत किसी प्रकार का विरोधाभास नहीं उत्पन्न करता बल्कि भारत की 'रणनीतिक स्वायत्तता' का सार प्रस्तुत करता है जो एक विखंडित तथा बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था के प्रति उसका परिपक्व और अनुकूलनीय प्रतिक्रिया है।