प्रश्न 2. स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक वर्षों में राज्य-प्रेरित औद्योगीकरण और केंद्रीकृत नियोजन पर विशेष बल दिया गया। आर्थिक विकास और राज्य के हस्तक्षेप के प्रति भारत के दृष्टिकोण पर लेनिन की नई आर्थिक नीति (1921) के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
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हल करने का दृष्टिकोण :
- स्वतंत्रता के बाद भारत के आर्थिक विकल्पों को संदर्भगत रखकर शुरुआत कीजिये।
- लेनिन की नई आर्थिक नीति (एन.ई.पी.) का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत कीजिये।
- भारत के आर्थिक विकास और राज्य के हस्तक्षेप पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।
- निष्कर्ष में इसकी विरासत और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव की चर्चा कीजिये।
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परिचय:
जब भारत ने वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की, तब उसे एक गहन रूप से गरीब, कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था विरासत में मिली, जिसमें औद्योगिक क्षमता कम और सामाजिक असमानता प्रबल थी। इन संरचनात्मक कमज़ोरियों को दूर करने के लिये भारत ने राज्य-प्रेरित औद्योगीकरण और केंद्रीकृत आर्थिक नियोजन का मॉडल अपनाया, जिसमें वैश्विक समाजवादी प्रयोगों, विशेषतः वर्ष 1921 की लेनिन की नई आर्थिक नीति (एन.ई.पी.) से बौद्धिक प्रेरणा ली गई।
मुख्य भाग:
लेनिन की नई आर्थिक नीति (1921)
- 1921 में, लेनिन ने सोवियत अर्थव्यवस्था को क्रांति के बाद के पतन से बचाने के लिये नई आर्थिक नीति (एनईपी) पेश की। यह नीति युद्ध साम्यवाद से रणनीतिक वापसी का प्रतिनिधित्व करती थी, जिसमें समाजवादी नियंत्रण को सीमित पूंजीवादी प्रथाओं के साथ मिलाया गया था।
- इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- भारी उद्योग, बैंकिंग और विदेशी व्यापार जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर राज्य का नियंत्रण।
- लघु-स्तरीय कृषि, व्यापार और हस्तशिल्प में निजी उद्यम एवं बाज़ारों को अनुमति दी गई।
- दीर्घकालिक औद्योगीकरण का मार्गदर्शन करने के लिये केंद्रीकृत नियोजन तंत्रों की स्थापना।
- राज्य के निर्देशन के माध्यम से आधुनिकीकरण पर ज़ोर, न कि दबाव के माध्यम से।
- इस प्रकार, नई आर्थिक नीति (एन.ई.पी.) ने विचारधारा और व्यावहारिकता के बीच संतुलन स्थापित किया, जिसका उद्देश्य क्रमानुसार आर्थिक परिवर्तन लाना था — यह दार्शनिक दृष्टिकोण उपनिवेशोत्तर भारत के योजनाकारों के लिये भी अनुकूल रहा।
भारत के आर्थिक विकास और राज्य हस्तक्षेप पर प्रभाव
- राज्य के नेतृत्व वाला औद्योगीकरण: स्वतंत्र भारत के औद्योगिक नीति प्रस्तावों (1948, 1956) ने NEP के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित किया, जिसके तहत भारी उद्योग, बुनियादी ढाँचा और रक्षा उत्पादन को राज्य के नियंत्रण में रखा गया।
- ‘commanding heights of the economy’, वाक्यांश, जो मार्क्सवादी-लेनिनवादी संदर्भ से लिया गया था, भारत के विकास दृष्टिकोण का केंद्र बन गया।
- भिलाई और बोकारो स्टील प्लांट जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम औद्योगिक क्षमता निर्माण में राज्य के नेतृत्व का प्रतीक हैं।
- केंद्रीकृत नियोजन: भारत का योजना आयोग (1950) सोवियत गोसप्लान (Gosplan) के काफी समान था, जिसने राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को निर्देशित करने के लिये पंचवर्षीय योजनाओं के ढाँचे को संस्थागत रूप दिया।
- पी.सी. महालनोबिस द्वारा निर्देशित द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956–61) ने भारी औद्योगीकरण और पूंजीगत वस्तुओं पर बल दिया, जो आत्मनिर्भर आर्थिक क्षमता के निर्माण के लिये राज्य-निर्देशित औद्योगिक विकास पर लेनिन के ज़ोर को प्रतिबिंबित करती थी।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था और व्यावहारिकता: लेनिन की NEP की तरह, भारत के योजनाकारों ने शुद्ध समाजवाद की सीमाओं को पहचाना। इसलिये, उन्होंने एक मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया, जिसने राज्य के विनियमन (regulation) के तहत निजी क्षेत्र की भागीदारी को अनुमति दी।
- सार्वजनिक और निजी उद्यम का सह-अस्तित्व तथा विदेशी पूंजी की सावधानीपूर्वक स्वीकृति, भारतीय वास्तविकताओं के अनुकूल लेनिनवादी व्यावहारिकता को प्रतिबिंबित करती है।
- कृषि और सहकारिता: भारत की ग्रामीण रणनीति ने भी NEP की लोचशीलता (flexibility) से प्रेरणा ली। बलपूर्वक सामूहिकीकरण (forced collectivisation) की बजाय, भारत ने निजी संपत्ति को संरक्षित रखते हुए, सहकारिता आधारित खेती, भूमि सुधार और सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया, जिससे राज्य-समर्थित कृषि को मज़बूती मिली।
आलोचनात्मक मूल्यांकन
- यद्यपि भारत ने NEP की राज्य हस्तक्षेप की भावना को लचीलेपन के साथ अपनाया, फिर भी यह लोकतांत्रिक और गैर-सत्तावादी बना रहा।
- हालाँकि, समय के साथ अत्यधिक केंद्रीकरण ने नौकरशाही अक्षमताएँ, लाइसेंस-परमिट-कोटा राज और कम उत्पादकता को जन्म दिया।
- वर्ष 1980 के दशक तक इस मॉडल की सीमाएँ स्पष्ट हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण हुआ, जिससे NEP-प्रेरित राज्य प्रभुत्व में धीरे-धीरे कमी आई।
निष्कर्ष
लेनिन की नई आर्थिक नीति (NEP) ने एक नियोजित, राज्य के नेतृत्व वाले और मिश्रित आर्थिक मॉडल को प्रेरित करके भारत के शुरुआती आर्थिक दर्शन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। फिर भी, भारत ने इन सिद्धांतों को अपने लोकतांत्रिक, बहुलवादी (pluralistic) और कल्याणकारी संदर्भ में ढाला। हालाँकि, इस दृष्टिकोण ने औद्योगिक आत्मनिर्भरता और आर्थिक संप्रभुता की नींव रखी, लेकिन इसकी कठोरताओं (rigidities) के कारण अंततः सुधारों की आवश्यकता पड़ी — यह इस बात की पुन: पुष्टि करता है कि वैचारिक कठोरता की बजाय व्यावहारिक अनुकूलन (pragmatic adaptation) ही लेनिन की NEP और भारत के शुरुआती नियोजन अनुभव दोनों की सच्ची विरासत है।