• प्रश्न :

    प्रश्न: “‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’’ होने के बावजूद, भारत में बाल-औषधियों के लिये एक सशक्त औषधि नियामक ढाँचा नहीं है।” भारत में बच्चों के लिये बनाई जाने वाली औषधियों की सुरक्षा, गुणवत्ता और नैतिक मानकों को सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    28 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में बाल चिकित्सा औषधि नियामक ढाँचे का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत में बाल चिकित्सा औषधि विनियमन की चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    भारत को विश्व स्तर पर ‘विश्व की फार्मेसी’ के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो वैश्विक जेनेरिक दवाओं का 20% से अधिक और टीकों का 60% आपूर्ति करता है। हालाँकि, यह औषधीय शक्ति बाल चिकित्सा औषधियों के लिये इसके कमज़ोर नियामक ढाँचे के विपरीत है। भारत की कुल जनसंख्या का 40% से अधिक भाग बच्चों का होने के बावजूद, बाल-औषधि विकास, नैदानिक पर्यवेक्षण तथा उनके उपयोग से संबद्ध नैतिक मानदंड अभी भी बिखरे हुए, अपर्याप्त रूप से विनियमित तथा अस्पष्ट रूप में परिभाषित हैं।

    मुख्य भाग:

    भारत में बाल चिकित्सा औषधियों के विनियमन में चुनौतियाँ

    • असंगत और कमज़ोर नियामक निगरानी: केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) और विभिन्न राज्य औषधि नियंत्रकों के बीच भारत का नियामक विखंडन प्रवर्तन अंतराल का कारण बन रहा है।
      • वर्ष 2025 के मध्य प्रदेश कफ सिरप संकट के दौरान, नियामकों ने कोल्ड्रिफ बनाने वाली कंपनी श्रीसन फार्मास्युटिकल्स में 364 उल्लंघन पाए, जिसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) शामिल था, जो औद्योगिक सॉल्वैंट्स में पाया जाने वाला एक विषैला पदार्थ है।
    • बाल-विशिष्ट औषधि सतर्कता का अभाव: वर्तमान विधियों, जैसे गर्भाधान पूर्व और प्रसवपूर्व नैदानिक तकनीक (PCPNDT) अधिनियम तथा राष्ट्रीय बाल नीति, 2013 में बच्चों के लिये औषधियों की सुरक्षा का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 39(f) के अंतर्गत राज्य को बच्चों के स्वास्थ्य एवं विकास की रक्षा करने का निर्देश दिया गया है, परंतु औषधि सतर्कता के क्षेत्र में इस प्रावधान का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन नहीं किया गया है।
      • दवाओं का परीक्षण प्रायः केवल वयस्कों में उपयोग के लिये किया जाता है, जिसमें बाल चिकित्सा खुराक वयस्कों के आँकड़ों से निकाली जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों के लिये असुरक्षित और गैर-अनुकूलित उपचार होते हैं।
    • भ्रष्टाचार, लापरवाही और अकुशल गुणवत्ता नियंत्रण: विषाक्त संदूषण का एक आवर्ती पैटर्न दर्शाता है कि समस्या प्रणालीगत है, आकस्मिक नहीं।
      • सत्र 2022-2023 में, गाम्बिया में लगभग 70 और उज़्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मृत्यु का कारण भारत में निर्मित सिरप पाए गए।
    • ओवर-द-काउंटर (OTC) दुरुपयोग और माता-पिता की अनभिज्ञता: अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में अधिकांश बाल चिकित्सा दवाओं की खरीद बिना डॉक्टर के पर्चे के होती है, विशेषकर शहरी झुग्गी-झोंपड़ियों और टियर-2 शहरों में।
    • व्यापक बाल चिकित्सा दवा नीति का अभाव: विश्व स्वास्थ्य संगठन और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की बार-बार की गई सिफारिशों के बावजूद, भारत में अभी भी बाल चिकित्सा दवा विनियमन प्राधिकरण या समर्पित बाल-विशिष्ट औषधि संहिता का अभाव है।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी के बाद वर्ष 2023 में DEG और EG जैसे विषाक्त पदार्थों का परीक्षण केवल निर्यात सिरप के लिये अनिवार्य हो गया, घरेलू बिक्री के लिये नहीं।

    भारत में बाल चिकित्सा दवाओं के नियामक कार्यढाँचे को सुदृढ़ करने के उपाय

    • राष्ट्रीय बाल चिकित्सा औषधि सुरक्षा एवं नैतिकता प्राधिकरण (NPSEA) की स्थापना: भारत को बाल चिकित्सा दवाओं के लाइसेंसिंग, निर्माण अनुमोदन और नैतिक परीक्षणों की निगरानी के लिये केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के अंतर्गत NPSEA का गठन करना चाहिये।
      • माशेलकर समिति की रिपोर्ट (2003) ने भारत के औषधि नियामक कार्यढाँचे की अपर्याप्तता को उजागर किया और एक सुदृढ़, ‘विश्व स्तरीय’ औषधि नियंत्रण प्राधिकरण की स्थापना के लिये अधिक बजटीय आवंटन का आह्वान किया।
    • शून्य सहिष्णुता व्यवस्था और आपराधिक जवाबदेही: निम्नस्तरीय बाल चिकित्सा दवाओं से होने वाली मौतों के लिये गैर-जमानती अपराधों को शामिल करने हेतु औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम (1940) में संशोधन किया जाना चाहिये।
      • सार्वजनिक स्वास्थ्य पोर्टलों पर रीयल-टाइम अपडेट के साथ अनिवार्य रिकॉल और प्रकटीकरण नीति लागू की जानी चाहिये।
    • राष्ट्रीय बाल चिकित्सा नैदानिक ​​अनुसंधान और डेटा इको-सिस्टम का निर्माण: फार्माकोडायनामिक और सुरक्षा डेटा एकत्र करने के लिये बाल चिकित्सा नैदानिक ​​परीक्षणों (PCT-इंडिया) के लिये एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री स्थापित की जानी चाहिये।
      • नैतिक, भारत-विशिष्ट बाल चिकित्सा अनुसंधान एवं विकास (R&D) करने वाली फार्मा कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
    • फार्मासिस्ट और देखभालकर्त्ता प्रशिक्षण तंत्र का सुदृढ़ीकरण: भारतीय फार्मेसी परिषद के तहत फार्मासिस्टों के लिये बाल चिकित्सा वितरण प्रोटोकॉल में अनिवार्य प्रमाणन लागू किया जाना चाहिये।
      • स्कूलों और आँगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से खुराक तथा लेबल रीडिंग पर देशव्यापी देखभालकर्त्ता जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिये।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन के ‘मेक मेडिसिन चाइल्ड साइज़’ अभियान (2007) ने 40 से अधिक विकासशील देशों में दवा साक्षरता और फार्मासिस्ट प्रशिक्षण में सुधार किया।
    • अनिवार्य बैच परीक्षण और आपूर्ति शृंखला अनुरेखण: अनुमोदन एजेंसियों को रिलीज़ से पहले सभी बाल चिकित्सा फॉर्मूलेशन के लिये अनिवार्य बहु-प्रयोगशाला विष विज्ञान परीक्षण (CDSCO + NABL-मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएँ) सुनिश्चित करना चाहिये।
      • सरकार को उत्पाद की उत्पत्ति का पता कच्चे रासायनिक चरण तक लगाने के लिये QRआधारित बैच ट्रैकिंग लागू करनी चाहिये।
        अतर्राष्ट्रीय बेंचमार्किंग और नैतिक पारदर्शिता: भारत की वैश्विक फार्मास्युटिकल भूमिका विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों और UNCRC (अनुच्छेद 24) के अनुरूप पारदर्शिता की मांग करती है।
      • भारत को बाल चिकित्सा दवाओं के विकास के लिये OECD फार्माकोविजिलेंस मानकों और ICH E11(R1) दिशानिर्देशों जैसे अंतर्राष्ट्रीय औषधि सुरक्षा ढाँचों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बल दिया है, "हर बच्चे को जन्म से ही सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिलनी चाहिये।"इस दृष्टि को साकार करने के लिये भारत की औषधि प्रशासन-व्यवस्था को नैतिक नियमन, कठोर परीक्षण, प्रभावी संघीय समन्वय तथा पारदर्शी जवाबदेही को प्राथमिकता देनी होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुरूप गुणवत्ता मानकों को अपनाकर, औषधि सतर्कता प्रणालियों को सुदृढ़ करके और बाल चिकित्सा-केंद्रित औषधि नीतियों को तैयार करके, भारत एक प्रतिक्रियात्मक कार्यढाँचे से आगे बढ़कर बाल स्वास्थ्य अधिकारों के एक सक्रिय संरक्षक के रूप में विकसित हो सकता है