प्रश्न. विश्व के अपतटीय पेट्रोलियम बेसिनों के स्थानिक वितरण का अभिनिर्धारण कीजिये तथा उनके निर्माण को प्रभावित करने वाले भू-वैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारकों की व्याख्या कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपतटीय पेट्रोलियम बेसिनों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- विश्व के अपतटीय पेट्रोलियम बेसिनों के स्थानिक वितरण का पता लगाइये।
- उनके निर्माण को प्रभावित करने वाले भू-वैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारकों की व्याख्या कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
अपतटीय पेट्रोलियम बेसिन जलमग्न अवसादी क्षेत्र हैं जहाँ हाइड्रोकार्बन समुद्र तल के नीचे संरंध्र शैल के भीतर जमा होते हैं। ये वैश्विक कच्चे तेल का लगभग 30% और प्राकृतिक गैस उत्पादन का 27% हिस्सा हैं। इनकी संरचना महाद्वीपीय सीमांतों, विभक्त शैलों और अवसादी गर्तों से निकटता से जुड़ी हुई है, जो लाखों वर्षों से भू-वैज्ञानिक एवं पर्यावरणीय प्रक्रियाओं द्वारा आकार लेते रहे हैं।
मुख्य भाग:
वैश्विक स्थानिक वितरण:
अपतटीय पेट्रोलियम बेसिन विश्व भर में असमान रूप से वितरित हैं, मुख्यतः निष्क्रिय महाद्वीपीय सीमांतों और उथले महाद्वीपीय शैलों पर जहाँ सघन अवसादी शृंखलाएँ विद्यमान हैं।
- अटलांटिक महासागरीय सीमांत:
- उत्तरी सागर बेसिन (यूके-नॉर्वे) — सबसे प्राचीन और सबसे अधिक उत्पादक अपतटीय क्षेत्रों में से एक।
- पश्चिमी अफ्रीकी शेल्फ (नाइजीरिया, अंगोला) और ब्राज़ीलियाई बेसिन (कैंपोस, सैंटोस) दक्षिण अटलांटिक के विभक्त किनारों पर गहन जल वाले तेल क्षेत्र हैं।
- मेक्सिको की खाड़ी बेसिन:
- संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको द्वारा साझा, इसमें प्रचुर मात्रा में गहन जल के क्षेत्र हैं जो वैश्विक उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- मध्य पूर्व और हिंद महासागर क्षेत्र:
- फारस की खाड़ी (विश्व का सबसे समृद्ध पेट्रोलियम बेसिन) और अरब सागर शेल्फ (मुंबई हाई, केजी बेसिन) एशिया की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र:
- दक्षिण चीन सागर, तिमोर सागर और ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी शेल्फ में विशाल गैस भंडार हैं।
- ध्रुवीय और आर्कटिक बेसिन:
- बैरेंट्स सागर और ब्यूफोर्ट सागर अप्रयुक्त हाइड्रोकार्बन क्षमता वाले उभरते हुए क्षेत्र हैं।

निर्माण को प्रभावित करने वाले भू-वैज्ञानिक कारक
- विवर्तनिक विन्यास: अधिकांश बेसिन रिफ्ट-प्रेरित अवतलन द्वारा निर्मित निष्क्रिय महाद्वीपीय किनारों पर पाए जाते हैं, जैसे कि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के अटलांटिक तट।
- अवसादन: निरंतर समुद्री अपरदनात्मक निक्षेपण (5-10 किमी मोटा) ने उपयुक्त स्रोत शैल और भंडार शैल के निर्माण को संभव बनाया है।
- स्रोत और भंडार शैलें: कार्बनिक पदार्थों से भरपूर समुद्री शेल (shale) हाइड्रोकार्बन उत्पन्न करती हैं, जबकि बलुआ पत्थर (Sandstone) या चूना पत्थर (Limestone) की परतें भंडार के रूप में कार्य करती हैं।
- संरचनात्मक जाल: अभिनति, भ्रंश जाल और लवणीय डोम (जैसे: मेक्सिको की खाड़ी) हाइड्रोकार्बन को संचित करने में सहायक होते हैं।
- तापीय परिपक्वता: उपयुक्त ताप और दाब की स्थितियों में, गहराई में दबी हुई कार्बनिक वस्तु तेल एवं गैस में रूपांतरित हो जाती है।
पर्यावरणीय कारक
- समुद्री उत्पादकता: गर्म, उथले तथा कम-ऑक्सीजन वाले समुद्र जैविक पदार्थ के संचयन को प्रोत्साहित करते हैं।
- समुद्र-स्तर में परिवर्तन: समुद्र-स्तर के उतार-चढ़ाव अवसादन की दर तथा भंडार (reservoir) के निर्माण को प्रभावित करते हैं।
- तटीय भू-आकृति विज्ञान: यह बेसिन की संरचना और अवसाद (sediment) की आवक को निर्धारित करता है।
- जलवायु परिस्थितियाँ: ये अपरदन तथा जैविक निक्षेपण के स्वरूप को प्रभावित करती हैं।
निष्कर्ष:
समुद्री तटों के किनारों पर स्थित ‘ऑफशोर पेट्रोलियम बेसिन’ जटिल भूवैज्ञानिक विकास-क्रम और अनुकूल समुद्री परिस्थितियों के परिणाम हैं। जैसे-जैसे स्थलीय भंडार घटते जा रहे हैं, अन्वेषण अब गुयाना-सूरीनाम बेसिन तथा मोज़ाम्बिक चैनल जैसी गहन समुद्री सीमाओं तक विस्तृत हो रहा है। ऊर्जा सुरक्षा और समुद्री पर्यावरणीय संधारणीयता के मध्य संतुलन बनाना वैश्विक ऑफशोर पेट्रोलियम विकास के अगले चरण की दिशा तय करेगा।