प्रश्न. खनन आर्थिक संवृद्धि और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है, साथ ही यह पारिस्थितिक संतुलन के लिये खतरा भी उत्पन्न करता है। खनन गतिविधियाँ किस प्रकार पर्यावरणीय क्षरण में योगदान करती हैं, इसका परीक्षण कीजिये तथा इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने हेतु स्थायी रणनीतियाँ प्रस्तावित कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- खनन क्षेत्र के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- खनन गतिविधियाँ पर्यावरणीय क्षरण में किस प्रकार योगदान करती हैं, इसका परीक्षण कीजिये।
- उनके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने हेतु स्थायी रणनीतियों को प्रस्तावित कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
खनन भारत के औद्योगिकीकरण का एक महत्त्वपूर्ण प्रेरक तत्त्व है, जो ऊर्जा, अवसंरचना तथा विनिर्माण जैसे क्षेत्रों के लिये आवश्यक कच्चा माल प्रदान करता है। किंतु अस्थिर और अव्यवस्थित खनन प्रथाओं ने गंभीर पारिस्थितिक ह्रास को जन्म दिया है। विश्व के दूसरे सबसे बड़े कोयला उत्पादक और शीर्ष दस खनिज संपन्न देशों में से एक होने के बावजूद, भारत पर्यावरण की सुरक्षा करते हुए आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की द्वैध चुनौती का सामना कर रहा है।
मुख्य भाग:
खनन के पर्यावरणीय प्रभाव
- वनों की कटाई और जैवविविधता का ह्रास: ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे वन-समृद्ध क्षेत्रों में खनन के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई होती है।
- सत्र 2014-15 और 2023-24 के दौरान, वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980 के अंतर्गत लगभग 1.74 लाख हेक्टेयर वन भूमि को गैर-वानिकी कार्यों के लिये परिवर्तित किया गया, जिसमें खनन एवं उत्खनन क्षेत्र का योगदान अकेले कुल परिवर्तन का लगभग 23% (40,096 हेक्टेयर) था।
- आवास विखंडन मध्य भारत में हाथियों और तेंदुओं जैसी प्रजातियों के लिये खतरा है।
- मृदा और भूमि क्षरण: मुक्त खनन से उपजाऊ ऊपरी मृदा नष्ट हो जाती है, जिससे भूमि बंजर हो जाती है।
- रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि कोयला खनन के कारण भारत के मध्य कोयला क्षेत्र में लगभग 35% मूल भूमि का क्षरण हुआ है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है।
- जल प्रदूषण और जल की कमी: अम्लीय खदान जल निष्कर्षण से नदियाँ आर्सेनिक और पारा जैसी भारी धातुओं से संदूषित होती हैं।
- झरिया और सिंगरौली में कोयला खनन ने भूजल को प्रदूषित किया है, जिससे स्थानीय समुदाय प्रभावित हुए हैं।
- अत्यधिक खनन से भूजल स्तर कम होता है, जिससे जल संकट और गंभीर हो जाता है।
- वायु और ध्वनि प्रदूषण: ब्लास्टिंग और परिवहन से उत्सर्जित होने वाले धूल के कण से कणिका पदार्थ (PM2.5 और PM10) स्तर में वृद्धि होती है।
- CPCB के आँकड़ों के अनुसार, धनबाद और कोरबा जैसे खनन क्षेत्र प्रायः सुरक्षित वायु गुणवत्ता सीमा से अधिक हो जाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन में योगदान: खनन, प्रसंस्करण और परिवहन सामूहिक रूप से बड़ी मात्रा में CO₂ एवं मीथेन उत्सर्जित करते हैं, जिससे भारत का कार्बन फुटप्रिंट बढ़ता है।
शमन हेतु स्थायी रणनीतियाँ
- पर्यावरण-अनुकूल खनन पद्धतियों का अंगीकरण: भूमि के असंतुलन को कम करने के लिये रिमोट सेंसिंग, ड्रोन सर्वेक्षण और ग्रीन एक्सप्लोसिव का उपयोग।
- MMDR अधिनियम, 2015 के अंतर्गत खदान बंद करने और पुनर्ग्रहण योजनाओं (MCRP) का कार्यान्वयन।
- पर्यावरणीय शासन को सुदृढ़ बनाना: कठोर पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) और निष्कर्षण के बाद की निगरानी लागू करना।
- खान मंत्रालय द्वारा STAR रेटिंग प्रणाली के माध्यम से खदान संचालन की पारदर्शी डिजिटल ट्रैकिंग।
- पुनर्वास और वनरोपण: प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) के अंतर्गत खनन-उपरांत क्षेत्रों में वृक्षारोपण को अनिवार्य करना।
- ओडिशा जैसे राज्यों में समुदाय-आधारित पुनर्वनीकरण के उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था और संसाधन दक्षता को बढ़ावा: धातुओं के पुनर्चक्रण तथा खनन अपशिष्ट के निर्माण-सामग्री में उपयोग से नए खनिज निष्कर्षण की आवश्यकता घटती है।
- ई-वेस्ट (e-waste) की पुनर्प्राप्ति के लिये शहरी खनन को प्रोत्साहित करना स्थायी खनिज स्रोतों का समर्थन करता है।
- सामुदायिक भागीदारी और कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR): खनन की योजना, निगरानी एवं पुनर्वास में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी पारदर्शिता एवं साझा स्वामित्व को सुनिश्चित करती है।
- स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और वैकल्पिक आजीविका सृजन पर केंद्रित कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) पहल आय के स्रोतों में विविधता लाने, खनन पर निर्भरता कम करने तथा दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक समुत्थानशीलता को बढ़ावा देने में सहायक होती हैं।
निष्कर्ष:
वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में भारत के लिये खनन गतिविधियों को पर्यावरणीय नैतिकता एवं सतत् विकास के साथ संरेखित करना अब विकल्प नहीं, आवश्यकता है। ग्रीन माइनिंग की नीति जो प्रौद्योगिकी, नियमन तथा सामुदायिक सहभागिता का संयोजन है, यह सुनिश्चित कर सकती है कि भारत की खनिज-संपदा पारिस्थितिक विनाश नहीं, बल्कि सतत् विकास का साधन बने।