• प्रश्न :

    प्रश्न. भारत की विदेश नीति संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ रणनीतिक सहयोग और रूस व चीन के साथ स्वायत्त संबंधों की नीति के मध्य एक सूक्ष्म संतुलन को प्रतिबिंबित करती है। टिप्पणी कीजिये।

    21 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत की विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता की अवधारणा का परिचय दीजिये।
    • परीक्षण कीजिये कि भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के साथ अपने संबंधों को किस प्रकार संतुलित करता है।
    • संतुलन के औचित्य पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत की विदेश नीति शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्षता से विकसित होकर समकालीन बहुध्रुवीय व्यवस्था में रणनीतिक स्वायत्तता और बहु-संरेखण की ओर अग्रसर हुई है। यह सिद्धांत भारत को राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिये प्रमुख शक्तियों के साथ सहयोग करते हुए स्वतंत्र विदेश नीति विकल्पों को अपनाने में सहायक है। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक साथ सहयोग और रूस के साथ साझेदारी के साथ-साथ चीन के साथ जटिल संबंधों का प्रबंधन इस संतुलित संतुलन को दर्शाता है।

    मुख्य भाग:

    • संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ रणनीतिक सहयोग:
      • रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारत-अमेरिका संबंध प्रगाढ़ हुए हैं।
        • LEMOA (2016), COMCASA (2018) और BECA (2020) जैसे आधारभूत समझौते रक्षा सहयोग को संस्थागत बनाते हैं।
      • QUAD और इंडो-पसिफिक फ्रेमवर्क में भागीदारी भारत के समुद्री एवं सुरक्षा हितों के अनुरूप है।
      • महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (iCET, 2023) AI, क्वांटम कंप्यूटिंग, अर्द्धचालकों और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सहयोग को सुदृढ़ करती है।
      • अमेरिका अब भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार 190 अरब अमेरिकी डॉलर (2023-24) को पार कर गया है; इस सहयोग का विस्तार स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु पहलों तक भी है।
      • अमेरिका में 48 लाख प्रवासी भारतीय सामाजिक-आर्थिक और रणनीतिक संवाद को बढ़ाने वाले एक सेतु का काम करते हैं।
    • रूस के साथ साझेदारी कायम रखना:
      • रूस एक प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्त्ता (S-400 प्रणाली, ब्रह्मोस, परमाणु सहयोग) के साथ-साथ ऊर्जा एवं अंतरिक्ष क्षेत्रों में एक विश्वसनीय साझेदार बना हुआ है।
      • अमेरिकी प्रतिबंधों के दबाव के बावजूद, भारत BRICS, SCO और यूरेशियन मंचों के माध्यम से संवाद जारी रखे हुए है।
      • यूक्रेन संकट के बाद भारत ने रूस से तेल आयात बढ़ाया है, जिससे सस्ती ऊर्जा सुनिश्चित हुई है और आपूर्ति स्रोतों में विविधता आई है।
      • वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन और 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता उच्च-स्तरीय जुड़ाव को बनाए रखते हैं तथा आपसी विश्वास की पुष्टि करते हैं।
      • असैन्य परमाणु परियोजनाओं (कुडनकुलम) और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (गगनयान सहायता) में सहयोग स्थायी रणनीतिक संरेखण को दर्शाता है।
    • चीन के साथ संबंधों का प्रबंधन:
      • भारत SCO और BRICS के माध्यम से चीन के साथ संवाद बनाए रखता है, साथ ही वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी आक्रामकता का मुकाबला करता है।
        • यह दृष्टिकोण प्रतिरोध और कूटनीति, दोनों का संयोजन है, जो किसी भी गुटीय संरेखण से दूर रहता है।
      • राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मतभेदों के बावजूद,

        मतभेदों को प्रबंधित करने की आवश्यकता से निर्देशित होती है, जो व्यावहारिक संवाद और संतुलित साझेदारी के माध्यम से अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाती है।”

        हुआ है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार 118 अरब अमेरिकी डॉलर (2023-24) से अधिक है।
        • हालाँकि, भारत को 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जिसका मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और मशीनरी में चीनी आयात पर निर्भरता है; यह एक प्रमुख रणनीतिक कमज़ोरी बनी हुई है।

    संतुलन का तर्क:

    • रणनीतिक नम्यता को बनाए रखना: वैश्विक मामलों में विकल्पों का विस्तार करते हुए किसी भी गुट पर निर्भरता को रोकता है।
    • संधि से ऊपर स्वायत्तता: भारत ‘कैंप राजनीति’ के बजाय राष्ट्रीय हितों के आधार पर सहयोग का चयन करते हुए स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता प्रदर्शित करता है।
    • समदूरस्थ कूटनीति: रणनीतिक स्थान को अधिकतम करने के लिये प्रतिस्पर्द्धी शक्तियों के साथ संतुलित संवाद बनाए रखना।
    • सिद्धांत-आधारित व्यावहारिकता: नैतिक प्रतिबद्धताओं (नियम-आधारित व्यवस्था) को सुरक्षा और विकास आवश्यकताओं में निहित व्यावहारिक विकल्पों के साथ संतुलित करना।

    निष्कर्ष:

    भारत की विदेश नीति बहु-संरेखण का उदाहरण है जो किसी एक गुट पर निर्भरता से बचते हुए विविध शक्तियों के साथ सहयोग करती है। जैसा कि डॉ. एस. जयशंकर ने ‘The India Way’ में उल्लेख किया है, “भारत की कूटनीति पक्ष चुनने के बजाय  मतभेदों को प्रबंधित करने की आवश्यकता से निर्देशित होती है, जो व्यावहारिक संवाद और संतुलित साझेदारी के माध्यम से अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाती है।”