• प्रश्न :

    प्रश्न. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), बिग डेटा और डिजिटल गवर्नेंस जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पन्न नैतिक चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। लोक प्रशासन में नैतिक ढाँचों को इनकी स्वीकृति के लिये किस प्रकार मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिये? (150 शब्द)

    16 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • उभरती प्रौद्योगिकियों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पन्न नैतिक चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये।
    • लोक प्रशासन में उभरती प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये आवश्यक नैतिक कार्यढाँचों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), बिग डेटा और डिजिटल गवर्नेंस जैसी उभरती प्रौद्योगिकियाँ दक्षता, निर्णय-निर्माण एवं सेवा वितरण में सुधार करके लोक प्रशासन में क्रांति ला रही हैं। ये प्रौद्योगिकियाँ पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण, नागरिक-केंद्रित सेवाएँ तथा त्वरित शासन को संभव बनाती हैं। तथापि, इनके प्रयोग से अनेक नैतिक चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं— जैसे पूर्वाग्रह, बहिष्करण, निजता का उल्लंघन तथा उत्तरदायित्व में कमी। 

    मुख्य भाग: 

    उभरती प्रौद्योगिकियों की नैतिक चुनौतियाँ

    • पूर्वाग्रह और भेदभाव: AI प्रणालियाँ और एल्गोरिदम आधारित निर्णय अनजाने में सामाजिक पूर्वाग्रहों को प्रतिबिंबित कर सकती हैं, जिससे भेदभावपूर्ण परिणाम सामने आ सकते हैं। 
      • उदाहरण के लिये, कुछ देशों में भविष्यसूचक पुलिसिंग एल्गोरिदम ने उपेक्षित समुदायों को असमान रूप से लक्षित किया है, जिससे संरचनात्मक असमानताएँ और सुदृढ़ हुई हैं।
      • इसी प्रकार, पक्षपातपूर्ण आँकड़ों का उपयोग करके कल्याणकारी योजनाओं का आवंटन कुछ सामाजिक समूहों के लिये नुकसानदेह हो सकता है।
    • निजता और डेटा सुरक्षा: शासन में बिग डेटा का व्यापक उपयोग व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग और निगरानी को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करता है। 
      • उदाहरण के लिये, पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना बड़े पैमाने पर डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड या वित्तीय डेटा संग्रहीत करने से उल्लंघन या शोषण का खतरा रहता है।
      • नैतिक उपयोग के लिये सहमति, निजता और सख्त डेटा सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है।
    • पारदर्शिता और उत्तरदायित्व: स्वचालित निर्णय लेने से प्रक्रियाएँ अस्पष्ट हो सकती हैं, जिससे नागरिकों या अधिकारियों के लिये यह समझना मुश्किल हो जाता है कि कोई विशेष निर्णय क्यों लिया गया।
      • उदाहरण के लिये, AI-संचालित लाभ वितरण प्रणालियाँ स्पष्टीकरण दिये बिना सेवाओं से इनकार कर सकती हैं, जिससे शासन में उत्तरदायित्व और विश्वास कमज़ोर होता है।
    • डिजिटल डिवाइड और अभिगम्यता में विषमता: हालाँकि डिजिटल गवर्नेंस दक्षता तो बढ़ाता है, परंतु इसके लाभ प्रायः शहरी और तकनीकी रूप से सक्षम वर्गों तक ही सीमित रह जाते हैं, जिससे ग्रामीण और सीमांत समूह पीछे छूट जाते हैं।
      • मोबाइल और इंटरनेट की अभिगम्यता में अंतर असमानताओं को बढ़ाता है, जिससे सेवा वितरण में अपवर्जन का एक नया आयाम उत्पन्न हो सकता है।
    • सुरक्षा और साइबर जोखिम: डिजिटल प्रणालियों पर निर्भरता शासन को साइबर हमलों, डेटा हेर-फेर और प्रणालीगत विफलताओं के प्रति सुभेद्य बनाती है, जिससे नागरिकों का संवेदनशील डेटा प्रभावित हो सकता है या महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाएँ बाधित हो सकती हैं।

    नैतिक स्वीकृति के मार्गदर्शक कार्यढाँचे

    • सिद्धांत-आधारित दृष्टिकोण (Principles-Based Approach): न्याय, उत्तरदायित्व, पारदर्शिता तथा समावेशिता जैसे सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिये।
      • भारत की NITI आयोग की AI नैतिकता संबंधी दिशा-निर्देश इन्हीं मूल्यों पर आधारित उत्तरदायी AI प्रयोग को बल देते हैं।
    • उत्तरदायी नवाचार (Responsible Innovation): प्रौद्योगिकी के विस्तार से पूर्व हितधारकों की सहभागिता, जोखिम मूल्यांकन तथा पायलट परीक्षण आवश्यक है।
      • उदाहरणतः, कृषि क्षेत्र में AI अनुप्रयोगों को स्थानीय किसानों के साथ परीक्षण कर उनकी संदर्भिक प्रासंगिकता तथा समान लाभ सुनिश्चित किये जा सकते हैं।
    • डिज़ाइन द्वारा निजता और सुरक्षा उपाय: प्रौद्योगिकी के प्रत्येक चरण में डेटा संरक्षण, नागरिक की सहमति तथा साइबर सुरक्षा के तत्त्वों को समाहित किया जाना चाहिये।
      • भारत का डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 नागरिक डेटा के नैतिक उपयोग हेतु विधिक कार्यढाँचा प्रदान करता है।
    • नियमित अंकेक्षण और उत्तरदायित्व तंत्र: AI एल्गोरिदम, डेटा उपयोग तथा डिजिटल गवर्नेंस प्लेटफॉर्म्स का स्वतंत्र अंकेक्षण नैतिक अनुपालन एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है।
    • क्षमता निर्माण और जागरूकता: प्रशासकों तथा नागरिकों को डिजिटल लिटरेसी, AI के नैतिक प्रयोग तथा डेटा अधिकारों के विषय में प्रशिक्षित करना उत्तरदायी तकनीकी शासन की नींव रखता है।

    निष्कर्ष:

    जॉन रॉल्स के शब्दों में,  “न्याय सामाजिक संस्थाओं का पहला गुण है !” — अर्थात् न्याय किसी भी सामाजिक संस्था का प्रथम गुण है।

    इस विचार के आलोक में, तकनीकी अंगीकरण की प्रक्रिया न्याय, पारदर्शिता तथा समावेशिता से निर्देशित होनी चाहिये। नैतिक मानकों को संस्थागत बनाकर, प्रशिक्षण और सतत् पर्यवेक्षण के माध्यम से भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उभरती प्रौद्योगिकियाँ समाज के सभी वर्गों को समान रूप से लाभान्वित करें तथा लोकतांत्रिक शासन को सुदृढ़ बनायें।