• प्रश्न :

    निबंध विषय:

    प्रश्न 1. कार्य में बाधाएँ कार्य को आगे बढ़ाती हैं। जो मार्ग में बाधा बनती है, वही मार्ग बन जाती है। (1200 शब्द)
    प्रश्न 2. इतिहास तब आरंभ हुआ जब मनुष्यों ने देवताओं की कल्पना की और तब समाप्त होगा जब मनुष्य स्वयं देवत्व को प्राप्त कर लेंगे। (1200 शब्द)

    11 Oct, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. कार्य में बाधाएँ कार्य को आगे बढ़ाती हैं। जो मार्ग में बाधा बनती है, वही मार्ग बन जाती है। (1200 शब्द)

    परिचय:

    • जीवन में प्रायः ऐसी चुनौतियाँ आती हैं जिनका सामना करना असंभव लगता है, फिर भी इतिहास बार-बार दर्शाता है कि यही बाधाएँ प्रगति के उत्प्रेरक बन सकती हैं। प्रसिद्ध आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन ने कहा था, “मैं असफल नहीं हुआ हूँ। मैंने बस 10,000 ऐसे तरीके खोजे हैं जो सफल नहीं हुए।” विद्युत बल्ब का आविष्कार करते समय उनकी बार-बार की असफलताओं ने उन्हें विचलित नहीं किया; बल्कि, उन्होंने उनके दृष्टिकोण को परिष्कृत किया और अंततः मानव इतिहास के सबसे परिवर्तनकारी नवाचारों में से एक का मार्ग प्रशस्त किया। इसी प्रकार, शासन, सामाजिक आंदोलनों और व्यक्तिगत जीवन में, बाधाएँ प्रायः सृजनशीलता, धैर्य एवं रणनीतिक क्रियाशीलता को प्रेरित करती हैं, जिससे राह में आने वाली बाधाएँ ही आगे बढ़ने का मार्ग भी बन जाती हैं।

    मुख्य भाग :

    • अवधारणा का अध्ययन:
      • बाधा की परिभाषा: 'अवरोध' या 'बाधा' वह तत्त्व है जो किसी लक्ष्य की प्राप्ति में रुकावट उत्पन्न करता है। यह व्यक्तिगत, सामाजिक, संरचनात्मक या तकनीकी स्वरूप का हो सकता है।
      • बाधाएँ हमें सबक सिखाती हैं: बाधाएँ हमें अनेक शिक्षाएँ भी देती हैं, जो धैर्य की परीक्षा लेती हैं, रचनात्मक चिंतन के लिये प्रेरित करती हैं तथा रणनीतिक योजना बनाने की क्षमता को विकसित करती हैं।
    • दार्शनिक मूल:
      • स्टोइकिज़्म: मार्कस ऑरेलियस ने विपत्तियों का उपयोग आंतरिक शक्ति के निर्माण के साधन के रूप में करने पर बल दिया।
      • भारतीय दर्शन: भगवद्गीता में कर्मयोग का महत्त्व बताया गया है, जिसमें व्यक्ति बाधाओं के बावजूद निष्ठापूर्वक अपना कर्त्तव्य निभाता है।
      • विकास की मानसिकता/ग्रोथ माइंडसेट (कैरल ड्वेक): असफलता और प्रतिरोध को अधिगम के अवसर के रूप में देखा जाता है।
    • ऐतिहासिक नेता और राजनेतृत्व:
      • महात्मा गांधी: ब्रिटिश दमन और कारावास ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को और अधिक मज़बूती प्रदान की।
      • अब्राहम लिंकन: राजनीतिक असफलताओं ने दासप्रथा को समाप्त करने के उनके संकल्प को और दृढ़ किया।
    • विज्ञान और नवाचार:
      • थॉमस एडिसन: विद्युत बल्ब का सफल आविष्कार करने से पहले हज़ारों असफलताओं का सामना करना पड़ा।
      • NASA: अंतरिक्ष अभियानों की असफलताओं ने सीख, नवाचार तथा अंततः अंतरिक्ष अन्वेषण में सफलता का मार्ग प्रशस्त किया।
    • सामाजिक आंदोलन:
      • नागरिक अधिकार आंदोलन (अमेरिका): विधिक बाधाओं ने रणनीतिक संगठन और अनुशंसाओं को दृढ़ किया।
      • भारत की हरित क्रांति: उच्च उपज वाली फसल तकनीक के शुरुआती प्रतिरोध ने सावधानीपूर्वक योजना बनाने को विवश किया, जिससे कृषि क्षेत्र का रूपांतरण हुआ।
    • उद्यमिता और व्यक्तिगत विकास:
      • संसाधन या नियामक चुनौतियों पर विजय पाने वाले स्टार्टअप प्रायः अधिक कुशलता से नवाचार करते हैं।
      • व्यक्तिगत जीवन में व्यक्तिगत सहनशीलता बाधाओं को विकास के अवसरों में बदलने का उदाहरण है।
    • तंत्र: बाधाएँ कार्य को किस प्रकार आगे बढ़ाती हैं
      • रचनात्मक समस्या-समाधान को प्रोत्साहित करना: अभाव या प्रतिरोध नवाचार को प्रेरित करता है।
      • समुत्थानशीलता का निर्माण: चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने से चरित्र और दृढ़ संकल्प मज़बूत होता है।
      • रणनीतिक सोच को बढ़ावा: बाधाएँ सावधानीपूर्वक योजना बनाने और अनुकूलन के लिये बाध्य करती हैं।
      • छिपे हुए अवसरों को उजागर करना: जो बाधा प्रतीत होती है, वह वैकल्पिक मार्ग खोल सकती है।
      • सहयोग को प्रोत्साहित करना: कई बाधाओं को पार करने के लिये टीम वर्क और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
      • उदाहरण:
        • कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर डिजिटल इन्क्लुज़न और स्वास्थ्य सेवा सुधारों को गति दी।
        • नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को आपूर्ति शृंखला संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन सौर और हरित हाइड्रोजन में नवाचार को उत्प्रेरित किया।
    • समकालीन प्रासंगिकता
      • शासन और नीति: संसाधन या नियामक बाधाओं का सामना करने वाले नौकरशाह और नीति निर्माता नवीन रणनीतियाँ विकसित करते हैं।
      • शिक्षा और कौशल विकास: अभिगम्यता या बुनियादी अवसंरचना में बाधाओं ने मापनीय डिजिटल शिक्षण समाधानों को जन्म दिया।
      • पर्यावरण और संधारणीयता: जलवायु नीति में चुनौतियाँ तकनीकी और सामाजिक नवाचार के अवसर उत्पन्न करती हैं।
    • प्रति-दृष्टिकोण
      • सीमाओं को स्वीकार करना: सभी बाधाएँ स्वाभाविक रूप से अवसर उत्पन्न नहीं करतीं। कुछ दुर्गम या विनाशकारी हो सकती हैं।
      • बाधाओं को प्रगति में बदलने के लिये एक सक्रिय मानसिकता, रणनीति और दृढ़ता की आवश्यकता होती है।

    निष्कर्ष:

    • जैसा कि दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे ने ठीक ही कहा था, “जो हमें नहीं मारता, वह हमें और मज़बूत बनाता है,” यह हमें स्मरण कराता है कि प्रत्येक बाधा अपने भीतर विजय की संभावना समेटे होती है, जिससे जो प्रारंभ में हमारे मार्ग में अवरोध प्रतीत
    • होता है, वही अंततः आगे बढ़ने का मार्ग बन जाता है। अतः व्यक्तियों, समुदायों तथा राष्ट्रों को चाहिये कि वे समुत्थानशीलता, अनुकूलनशीलता और रणनीतिक सोच का विकास करें, ताकि वे बाधाओं को नवोन्मेष एवं प्रगति के उत्प्रेरक के रूप में देख सकें।

    2. इतिहास तब आरंभ हुआ जब मनुष्यों ने देवताओं की कल्पना की और तब समाप्त होगा जब मनुष्य स्वयं देवत्व को प्राप्त कर लेंगे। (1200 शब्द)

    परिचय:

    • जब आग की पहली चिंगारी ने आदिमानव की अंधेरी गुफा को रोशन किया, तो यह अस्तित्व की विजय से कहीं बढ़कर— विश्वास और जिज्ञासा का जन्म था। आकाशीय बिजली की गड़गड़ाहट और मृत्यु के रहस्य से भयभीत मनुष्य ने उन शक्तियों को समझाने के लिये देवताओं की कल्पना की, जिन्हें वह नियंत्रित नहीं कर सकता था। सहस्राब्दियों बाद, वही जिज्ञासा वैज्ञानिकों को परमाणु विखंडित करने, जीन एडिट करने और कृत्रिम बुद्धिमत्ता बनाने की प्रेरणा देती है, ये ऐसी शक्तियाँ हैं जिन्हें कभी दिव्यता से जोड़ा जाता था। इस प्रकार मानव की यात्रा—देवताओं की कल्पना से लेकर उनकी शक्तियों की आकांक्षा तक विस्मय एवं श्रद्धा से ज्ञान और निपुणता तक विस्तृत इतिहास के चक्र को दर्शाती है।

    मुख्य भाग:

    मनुष्यों ने देवताओं की कल्पना की

    • इतिहास का आरंभिक चरण इस तथ्य से परिभाषित होता है कि मनुष्य ने देवताओं की कल्पना की, जो भय और कल्पना दोनों का प्रतिबिंब था।
    • मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: प्रारंभिक मानव ने प्राकृतिक घटनाओं, मृत्यु और रोग के कारणों को समझने के लिये व्याख्या की खोज की। मिथकों और देवताओं ने अज्ञात को आकार दिया।
    • समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण: साझा आस्थाओं ने सामाजिक एकता और नैतिक अनुशासन को जन्म दिया, जिसने कानूनों, प्रथाओं एवं सामुदायिक जीवन की नींव रखी।
    • राजनीतिक आयाम: मिस्र के फराओ से लेकर भारत और यूरोप के मध्ययुगीन राजाओं तक, शासक प्रायः सत्ता को वैध ठहराने के लिये दिव्य अधिकार का दावा करते थे।
    • सांस्कृतिक प्रभाव: धार्मिक आख्यानों ने कला, साहित्य और स्मारकीय स्थापत्य कला को प्रेरित किया और जिससे आध्यात्मिकता तथा नैतिकता दैनिक जीवन में समाहित हो गई।
      • उदाहरण: भारत में भक्ति और सूफी आंदोलन इस बात का उदाहरण हैं कि किस प्रकार आस्था और भक्ति ने नैतिक आचरण एवं सामाजिक सौहार्द का मार्ग प्रशस्त किया, जहाँ प्रेम, करुणा तथा सदाचार को जीवन का केंद्र माना गया।

    मनुष्य का देवतुल्य बनना

    • इतिहास के साथ मानव की जिज्ञासा और बुद्धि वैज्ञानिक कौशल में परिवर्तित हुई, जिसने उसे देवतुल्य शक्तियों का धारक बना दिया।
    • तकनीकी प्रगति: मनुष्य अब परमाणुओं को विखंडित कर सकते हैं, आनुवंशिक संरचनाओं को परिवर्तित कर सकते हैं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता निर्मित कर सकते हैं, जिससे जीवन, पदार्थ एवं ऊर्जा पर नियंत्रण हो सकता है।
    • दार्शनिक परिवर्तन: जहाँ कभी मनुष्य दिव्य अधिकार पर निर्भर था, अब वह तर्क और ज्ञान को ही वास्तविकता को समझने तथा उसे आकार देने का साधन मानता है।
    • नैतिक दुविधाएँ: शक्ति जितनी अधिक होती गई, उत्तरदायित्व भी उतना ही बढ़ा। नैतिक ढाँचे वैज्ञानिक नवाचारों की गति के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं, जिससे सुरक्षा, नैतिकता और जीवन के भविष्य से जुड़ी नई शंकाएँ उत्पन्न हो रही हैं।
    • उदाहरण:
      • CRISPR तकनीक मनुष्य को जीन एडिट करने की शक्ति देती है, जिससे ‘ईश्वर की भूमिका निभाने’ को लेकर नैतिक प्रश्न उठते हैं।
      • कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब संज्ञानात्मक कार्यों की नकल करने लगी है, जिससे चेतना, नैतिकता और निर्णय-प्रक्रिया की परिभाषा पर पुनर्विचार आवश्यक हो गया है।
      • परमाणु ऊर्जा सृजन और विनाश— दोनों की क्षमता का प्रतीक है, जो मानव द्वारा अर्जित देवतुल्य शक्ति का स्मरण कराती है।

    नैतिक और अस्तित्वगत चिंतन

    • देवताओं की कल्पना से देवतुल्य बनने तक की यात्रा केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि नैतिक और अस्तित्वगत भी है।
    • शक्ति बनाम प्रज्ञा: तकनीक ने अभूतपूर्व नियंत्रण तो दिया है, परंतु यदि यह नैतिक विवेक से रहित रहा तो विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।
    • मानवीय अस्मिता: जब मनुष्य देवता बनने की आकांक्षा करता है, तब प्रश्न उठता है— क्या वह मानवीय रह सकता है? क्या करुणा, सहानुभूति और न्याय इस निपुणता के युग में भी जीवित रहेंगे?
    • भविष्य का प्रक्षेपवक्र: संभव है कि इतिहास मानव की सर्वशक्तिमत्ता पर समाप्त न हो, बल्कि एक नये युग की शुरुआत करे— जहाँ उत्तरदायित्व, संधारणीयता और नैतिक विवेक मानव सभ्यता के नये स्तंभ बनेंगे।

    विपरीत-दृष्टिकोण:

    • ‘देवतुल्य बनना’ इतिहास का अंत नहीं, बल्कि नैतिकता और प्रज्ञा द्वारा निर्देशित नये विकास की शुरुआत भी हो सकता है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जीन प्रौद्योगिकी जैसी शक्तियों का उपयोग प्रभुत्व के लिये नहीं, बल्कि मानव कल्याण के लिये किया जा सकता है।
    • संधारणीयता पर ध्यान केंद्रित कर हम संसाधनों पर नियंत्रण रखते हुए भी पर्यावरण को संरक्षित रख सकते हैं।
    • करुणा और नैतिक तर्कबुद्धि वैज्ञानिक नवाचारों को ऐसी दिशा दे सकती है जो असमानता, गरीबी एवं पीड़ा को कम करे।

    निष्कर्ष:

    • अंततः मानवता की कहानी — देवताओं की कल्पना से लेकर देवतुल्य शक्तियों की खोज तक हमारी अर्थ, ज्ञान और निपुणता की सतत् खोज का प्रतीक है। जैसा कि युवाल नोआ हरारी ने Homo Deus में कहा है, “जब तकनीक हमें मानव मस्तिष्क को पुनः संयोजित करने की अनुमति देगी, तब होमो सेपियन्स लुप्त हो जाएगा, मानव इतिहास का अंत होगा और एक नयी प्रक्रिया प्रारंभ होगी, जिसे आप और हम समझ भी नहीं सकेंगे।”
      यह कथन इंगित करता है कि जब मनुष्य असीम शक्ति अर्जित करता है, तब सबसे बड़ी चुनौती होती है— उसका विवेकपूर्ण और नैतिक उपयोग। वास्तविक प्रगति उसी में निहित है कि हम तकनीकी कौशल और नैतिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन स्थापित करें, ताकि हमारी देवतुल्य क्षमताएँ जीवन, समाज एवं पृथ्वी की सेवा में प्रयुक्त हों।