प्रश्न :
केस स्टडी
किसी नदी तटीय ज़िले में ज़िला मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात एक IAS अधिकारी अशोक को नदी के किनारे बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध रेत खनन के कारण बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मानसून के मौसम में प्रतिबंध और सख्त पर्यावरणीय नियमों के बावजूद, स्थानीय ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों और प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों के बीच साझेदारी के कारण अवैध रेत निष्कर्षण जारी है।
अवैध खनन के कारण गंभीर पर्यावरणीय क्षति हुई है, जिसमें नदी तट का क्षरण, भूजल स्तर में गिरावट और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान शामिल है। इसके अलावा, ओवरलोडेड ट्रकों के कारण बार-बार सड़क दुर्घटनाएँ हो रही हैं और सरकारी राजस्व में कमी आ रही है।
अशोक के प्रशासन ने कई छापेमारी की हैं, वाहन जब्त किये हैं और प्राथमिकी दर्ज की हैं, लेकिन राजनीतिक संरक्षकों के समर्थन से स्थानीय खनिकों ने प्रशासन पर ‘विकास-विरोधी’ कार्रवाई का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किये हैं। कुछ अधिकारियों को धमकियाँ मिली हैं और कुछ ने यह भी संकेत दिया है कि रेत माफिया का सामना करना उनकी सुरक्षा या पोस्टिंग पर असर डाल सकता है। इस बावजूद, ईमानदार कनिष्ठ अधिकारी, अशोक से नैतिक नेतृत्व की अपेक्षा रखते हैं, जबकि स्थानीय मीडिया और पर्यावरण कार्यकर्त्ता कड़ी कार्रवाई और पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं।
राज्य सरकार ने बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये निर्माण सामग्री की आवश्यकता को देखते हुए अशोक से “संघर्ष से बचने” और कानून-व्यवस्था बनाए रखने का अनुरोध किया है। हालाँकि, पर्यावरणीय क्षति जारी है और न्यायपालिका ने हाल ही में खनन नियमों के अनुपालन पर एक रिपोर्ट भी माँगी है।
प्रश्न:
A. इस स्थिति में अशोक के समक्ष कौन-सी नैतिक दुविधाएँ हैं?
B. अशोक के समक्ष उपलब्ध विकल्पों और उनके संभावित परिणामों का मूल्यांकन कीजिये।
C. पर्यावरणीय नैतिकता और प्रशासनिक उत्तरदायित्व के आधार पर अशोक के लिये सबसे उपयुक्त कार्यवाही को प्रस्तावित कीजिये।
D. विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाते हुए अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाने के लिये दीर्घकालिक प्रणालीगत सुधारों का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)
10 Oct, 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संदर्भ स्थापित करने के लिये स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- इस मामले में अशोक के समक्ष आने वाली नैतिक दुविधाओं का अभिनिर्धारण कर उनकी विवेचना कीजिये।
- उसके लिये उपलब्ध विकल्पों और प्रत्येक विकल्प के संभावित परिणामों का मूल्यांकन कीजिये।
- अशोक के लिये सर्वोत्तम कार्रवाई को प्रस्तावित कीजिये।
- विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन बनाते हुए अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाने के लिये दीर्घकालिक प्रणालीगत सुधारों का प्रस्ताव कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
एक नदी तटीय ज़िले में IAS अधिकारी अशोक, स्थानीय ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों और राजनीतिक संरक्षकों द्वारा संचालित बड़े पैमाने पर अवैध रेत खनन का सामना कर रहे हैं। मानसून प्रतिबंधों और सख्त पर्यावरणीय नियमों के बावजूद, खनन से नदी तट का कटाव, भूजल का ह्रास, पारिस्थितिक क्षति, सड़क दुर्घटनाएँ और राजस्व हानि होती है। प्रवर्तन प्रयासों को प्रतिरोध, धमकियों तथा राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है, जबकि न्यायपालिका, मीडिया व नागरिक समाज अनुपालन, पारदर्शिता एवं स्थायी समाधानों की माँग करते हैं, जिससे एक जटिल नैतिक और प्रशासनिक दुविधा उत्पन्न होती है।
मुख्य भाग:
A. अशोक के समक्ष नैतिक दुविधाएँ
- विधि प्रवर्तन और राजनीतिक दबाव के बीच संघर्ष:
- अशोक को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों के प्रतिरोध का सामना करते हुए पर्यावरण कानूनों को लागू करने की आवश्यकता है।
- दबाव के आगे झुकने से प्रशासनिक निष्ठा से समझौता करने का जोखिम है, जबकि सख्त प्रवर्तन राजनीतिक प्रतिशोध को आकर्षित कर सकता है।
- सुरक्षा बनाम कर्त्तव्य:
- अशोक की टीम के अधिकारियों को व्यक्तिगत सुरक्षा के लिये खतरों का सामना करना पड़ता है।
- नैतिक नेतृत्व के लिये न्याय सुनिश्चित करते हुए अपनी टीम की सुरक्षा करना आवश्यक है, जो नैतिक उत्तरदायित्व और व्यावहारिक सुरक्षा चिंताओं के बीच एक दुविधा प्रस्तुत करता है।
- विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण:
- राज्य सरकार बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों पर बल देती है, जिससे अशोक पर संघर्ष से बचने का दबाव पड़ता है।
- पर्यावरणीय संधारणीयता की तुलना में अल्पकालिक विकास को प्राथमिकता देने से अंतर-पीढ़ीगत न्याय के प्रश्न उठते हैं।
- पारदर्शिता बनाम प्रशासनिक व्यावहारिकता:
- मीडिया और नागरिक समाज पारदर्शिता की माँग करते हैं, लेकिन प्रवर्तन की पूरी कार्रवाई का खुलासा करने से तनाव बढ़ सकता है।
- अशोक को विधि एवं व्यवस्था बनाए रखने के साथ उत्तरदायित्व में संतुलन बनाना होगा।
B. उपलब्ध विकल्प और उनके परिणाम
- सख्त प्रवर्तन
- कार्रवाई: छापेमारी, FIR और वाहन ज़ब्ती जारी रखें।
- परिणाम: विधि के शासन और पर्यावरण संरक्षण को बनाए रखें; राजनीतिक प्रतिक्रिया भड़का सकते हैं, अधिकारियों की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न कर सकते हैं तथा अल्पकालिक अशांति उत्पन्न कर सकते हैं।
- राजनीतिक अनुपालन
- कार्रवाई: सरकार और स्थानीय हितधारकों को खुश करने के लिये प्रवर्तन को सरल करना चाहिये।
- परिणाम: तत्काल संघर्ष को कम करता है और ‘सद्भाव’ बनाए रखता है, लेकिन कानूनी कर्तव्य, पारिस्थितिक संधारणीयता एवं दीर्घकालिक शासन की विश्वसनीयता को कमज़ोर करता है।
- मध्यस्थता और हितधारक जुड़ाव
- कार्रवाई: विनियमित रेत खनन समाधान ढूंढने के लिये स्थानीय समुदायों, ठेकेदारों एवं पर्यावरण विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिये।
- परिणाम: प्रत्यक्ष टकराव को कम कर सकते हैं और आम सहमति बना सकते हैं; हालाँकि, आंशिक अनुपालन एवं धीमी पारिस्थितिक पुनर्प्राप्ति का जोखिम है।
C. अनुशंसित कार्रवाई
- रणनीतिक गठबंधनों के साथ संतुलित प्रवर्तन: अशोक को एक सैद्धांतिक लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये, अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए कानूनों को सख्ती से लागू करना चाहिये, सभी कार्यों का दस्तावेजीकरण करना चाहिये तथा संचालन को वैध बनाने के लिये न्यायिक समर्थन का उपयोग करना चाहिये।
- जन सहभागिता: सार्वजनिक परामर्श जारी करना चाहिये, पर्यावरणीय परिणामों के बारे में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिये और गलत सूचना के प्रसार को कम करने तथा वैधता स्थापित करने के लिये नागरिक समाज को निगरानी में शामिल किया जाना चाहिये।
- न्यायिक समर्थन: प्रवर्तन को मज़बूत करने के लिये न्यायालय के निर्देशों का उपयोग करना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि राजनीतिक प्रतिरोध कानूनी दायित्वों में आसानी से बाधा न डाल सके।
D. दीर्घकालिक प्रणालीगत सुधार
- डिजिटल निगरानी और विनियमन: अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिये रेत परिवहन, डिजिटल परमिट और ई-नीलामी प्रणालियों के लिये जीपीएस ट्रैकिंग लागू किया जाना चाहिये।
- समुदाय-आधारित संसाधन प्रबंधन: स्थानीय ग्राम सभाओं और नदी समुदायों को खनन की निगरानी करने तथा संधारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के लिये सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- वैकल्पिक सामग्री और निर्माण प्रथाएँ: प्राकृतिक नदियों पर मांग के दबाव को कम करने के लिये निर्मित रेत, पुनर्चक्रित समुच्चय और पर्यावरण-अनुकूल निर्माण के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- कड़े दंड और भ्रष्टाचार-विरोधी उपाय: अधिकारियों के लिये व्हिसलब्लोअर सुरक्षा के साथ-साथ, उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये कड़े जुर्माने, लाइसेंस रद्दीकरण और अभियोजन की व्यवस्था की जानी चाहिये।
- क्षमता निर्माण: प्रशासनिक समुत्थानशीलता को सुदृढ़ करने के लिये प्रवर्तन अधिकारियों को पर्यावरण कानून, जोखिम प्रबंधन एवं हितधारक वार्ता में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
अशोक की चुनौती नैतिकता, प्रशासन तथा पर्यावरणीय संरक्षण — इन तीनों के संगम पर स्थित है। पारदर्शिता के साथ विधि-प्रवर्तन, अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से वे तात्कालिक संकटों का समाधान कर सकते हैं और साथ ही दीर्घकालिक रूप से सतत् शासन का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। महात्मा गांधी के शब्दों में, “भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आप आज क्या करते हैं।” अशोक का सिद्धांतनिष्ठ आचरण न केवल न्यायसंगत बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिये सतत् पर्यावरण की नींव रखेगा।