• प्रश्न :

    प्रश्न. “भारत की तीव्र आर्थिक प्रगति के बावजूद सामाजिक असमानता और पर्यावरणीय क्षरण जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।” समावेशी एवं सतत् विकास सुनिश्चित करने हेतु एक नैतिक कार्यढाँचे की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    09 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत के आर्थिक विकास पथ के साथ-साथ सामाजिक एवं पर्यावरणीय चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये। 
    • समावेशी और सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये एक नैतिक कार्यढाँचे की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। 
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    भारत ने तीव्र आर्थिक वृद्धि प्राप्त की है और वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। परंतु इस आर्थिक प्रगति के साथ-साथ समानांतर रूप से सामाजिक विषमताएँ (जैसे: आय असमानता, लैंगिक अंतर और क्षेत्रीय असंतुलन) तथा पर्यावरणीय चुनौतियाँ (जैसे: प्रदूषण, संसाधनों का क्षय और जलवायु-संवेदनशीलता) बनी हुई हैं। अतः न्याय, समानता और उत्तरदायित्व पर आधारित एक नैतिक कार्यढाँचा आवश्यक है, जो नीतियों को समावेशी एवं सतत् विकास की दिशा में मार्गदर्शित कर सके।

    मुख्य भाग:

    एक नैतिक कार्यढाँचे की प्रासंगिकता: 

    • न्याय और समता: नैतिक शासन के लिये उपेक्षित रहने वाली उन आबादी को प्राथमिकता देना आवश्यक है जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि के बावजूद वंचित रह जाती हैं।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2011 से अब तक 17.1 करोड़ भारतीय अत्यधिक गरीबी से बाहर निकल आए हैं, जबकि सबसे अमीर 1% लोगों के पास अब राष्ट्रीय संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा है, जबकि सबसे निचले 50% लोगों के पास केवल 3% (वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब, 2025) हिस्सा है।
      • यह गहरी विषमता इस बात की माँग करती है कि संसाधनों के समान वितरण पर आधारित वितरण न्याय (Distributive Justice) की भावना से प्रेरित पुनर्वितरणकारी नीतियाँ बनाई जायें।
    • लैंगिक और सामाजिक समानता: महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 34% कम कमाती हैं और महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी 41.7% है, जबकि पुरुषों की 78.8% है।
      • समानता के लिये सकारात्मक कार्रवाई और कार्यस्थल में निष्पक्षता जैसी सक्रिय नीतियों की आवश्यकता है ताकि इन अंतरों को नैतिक रूप से कम किया जा सके।
    • संधारणीयता और उत्तरदायित्व: नैतिक नेतृत्व में तीव्र विकास के बीच पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा शामिल है। दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक नियमित रूप से खतरनाक स्तर (AQI >700) से ऊपर चला जाता है और अनियोजित शहरीकरण के कारण शहरी जल निकायों का क्षरण हो रहा है।
      • कंचन वर्मा द्वारा ससुर खदेरी नाले के जीर्णोद्धार जैसी पहल, अंतर-पीढ़ीगत समता के प्रति नैतिक उत्तरदायित्व को दर्शाती है।
    • पारदर्शिता और उत्तरदायित्व: समतापूर्ण शासन के लिये पारदर्शी निर्णय लेने और जवाबदेही तंत्र की आवश्यकता होती है ताकि अभिजात वर्ग के अधिग्रहण, भ्रष्टाचार एवं नीतिगत विकृतियों को रोका जा सके जो असमानता को और बढ़ा देती हैं।
      • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (CPI)- 2024 के अनुसार भारत 180 देशों में 96वें स्थान पर रहा है, जो यह दर्शाता है कि पारदर्शिता, जवाबदेही और शासन-व्यवस्था की निष्ठा के क्षेत्र में अब भी अनेक चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
    • सामाजिक पुनर्निर्माणवाद: यह भारत में सीमांत समुदायों को सशक्त बनाकर और समावेशी निर्णय लेने को बढ़ावा देकर समाज के पुनर्निर्माण के साधन के रूप में शिक्षा एवं सहभागी शासन पर बल देता है।
      • यह ग्राम सभाओं जैसी ज़मीनी संस्थाओं, कुदुम्बश्री जैसे महिला-नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों एवं MyGov जैसे प्लेटफॉर्म में परिलक्षित होता है, जो सामूहिक रूप से सामाजिक समता, नैतिक शासन और समुदाय-नेतृत्व वाले विकास को बढ़ावा देते हैं तथा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को सामूहिक प्रगति के अवसरों में बदलने की नैतिक अनिवार्यता के साथ संतुलन स्थापित करते हैं।
    • विकास कार्यक्रमों में नैतिकता का समावेश: नैतिक विचार समावेशी, दीर्घकालिक और पर्यावरण के प्रति जागरूक नीतियों को प्रोत्साहित करते हैं।
      • कंपनी अधिनियम 2013 (CSR) के अंतर्गत कॉर्पोरेट पहल यह सुनिश्चित करती हैं कि व्यवसाय सामाजिक कल्याण में योगदान दें।
      • स्वच्छ गंगा मिशन और राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन जैसे सरकारी कार्यक्रम विकास योजना में संधारणीयता को शामिल करते हैं।

    निष्कर्ष:

    भारत का विकास केवल GDP वृद्धि तक सीमित नहीं होना चाहिये। महात्मा गांधी ने आगाह किया था कि “संसार में सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पर्याप्त संसाधन हैं, परंतु सभी के लोभ की पूर्ति के लिये नहीं !” — — यह कथन नैतिक और सतत् विकास की अनिवार्यता को रेखांकित करता है। जब भारत ऐसा नैतिक कार्यढाँचा अपनाता है जो आर्थिक प्रगति, सामाजिक समानता और पर्यावरणीय संधारणीयता के बीच संतुलन स्थापित करे, तब ही वह समावेशी तथा दीर्घकालिक विकास को सुनिश्चित कर सकता है।