प्रश्न. भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम वैज्ञानिक अन्वेषण के एक साधन से सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के एक साधन के रूप में विकसित हुआ है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत की अंतरिक्ष यात्रा पर प्रकाश डालते हुए उत्तर-लेखन आरंभ कीजिये।
- भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के सामाजिक-आर्थिक योगदान पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत की अंतरिक्ष यात्रा वर्ष 1975 में आर्यभट्ट के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुई, जिसने देश के उपग्रह प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक अनुसंधान में प्रवेश को चिह्नित किया। प्रारंभ में वैज्ञानिक प्रगति एवं तकनीकी आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से, ISRO के नेतृत्व में भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम धीरे-धीरे सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में विकसित हुआ है, जिसने कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आपदा प्रबंधन और शासन को समर्थन प्रदान किया है। यह विकास इस बात पर प्रकाश डालता है कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी किस-प्रकार अनुसंधान प्रयोगशालाओं से आगे बढ़कर लाखों भारतीयों के जीवन को सीधे प्रभावित करने लगी है।
मुख्य भाग:
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का सामाजिक-आर्थिक योगदान
- वैज्ञानिक अन्वेषण और तकनीकी आधार:
- SLV, ASLV, PSLV और GSLV के विकास ने स्वदेशी प्रक्षेपण क्षमताओं को स्थापित किया।
- चंद्रयान-1, मंगलयान और एस्ट्रोसैट जैसे मिशनों ने भारत की वैश्विक वैज्ञानिक विश्वसनीयता को बढ़ाया है।
- कृषि और खाद्य सुरक्षा:
- IRS उपग्रह फसल निगरानी, उपज अनुमान, सूखे का पूर्वानुमान और मृदा स्वास्थ्य मानचित्रण प्रदान करते हैं।
- ये उपकरण किसानों को निर्णय लेने में सहायता करते हैं तथा खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करते हैं।
- आपदा प्रबंधन:
- INSAT और RISAT जैसे उपग्रह चक्रवातों, बाढ़ एवं वनाग्नि के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली को सक्षम बनाते हैं।
- ओडिशा चक्रवात वर्ष 2021 के दौरान, उपग्रह डेटा ने समय पर निकासी और राहत योजना बनाने में सहायता की।
- दूरसंचार, शिक्षा और डिजिटल इन्क्लूज़न:
- GSAT उपग्रह ग्रामीण संपर्क, दूरस्थ-शिक्षा और ई-गवर्नेंस में सुधार करते हैं।
- EDUSAT जैसे कार्यक्रम दुर्गम क्षेत्रों में दूरस्थ शिक्षा को सक्षम बनाते हैं।
- स्वास्थ्य सेवा और पर्यावरण निगरानी:
- सैटेलाइट इमेजरी (उपग्रह चित्रण) महामारी-वैज्ञानिक मानचित्रण, प्रदूषण निगरानी तथा जलवायु अवलोकन में सहायता प्रदान करता है, जिससे जनस्वास्थ्य और पर्यावरणीय नीतियों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
- नौवहन और परिवहन:
- NavIC (भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली) समुद्री सुरक्षा, शहरी परिवहन योजना और लॉजिस्टिक्स दक्षता को बढ़ाता है।
- आर्थिक विकास और निजी क्षेत्र की भागीदारी
- वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण राजस्व सृजन करते हैं तथा स्टार्ट-अप एवं प्रौद्योगिकी नवाचार को बढ़ावा देते हैं।
- एंट्रिक्स और NSIL जैसी पहल उपग्रह निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी का समर्थन करती हैं।
- रणनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव:
- भारत, अमेरिका, फ्राँस और जापान जैसे देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी के लिये अंतरिक्ष का लाभ उठाता है, जिससे भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ता है।
निष्कर्ष:
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक वैज्ञानिक अन्वेषण उपकरण से सामाजिक-आर्थिक विकास के उत्प्रेरक में परिवर्तित हो गया है, जिसका प्रभाव कृषि, आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, शासन एवं आर्थिक विकास पर पड़ रहा है। जैसा कि डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था, “अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी किसी राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के लिये एक केंद्रीय उपकरण है।”
विज्ञान और समाज दोनों के लिये अंतरिक्ष नवाचारों का लाभ उठाने से दीर्घकालिक विकासात्मक लाभ और राष्ट्रीय प्रगति सुनिश्चित होती है।