• प्रश्न :

    प्रश्न. “साउथ-साउथ एवं त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) का उद्देश्य विकासशील देशों के मध्य ज्ञान-साझाकरण और सतत् विकास को प्रोत्साहित करना है। SSTC में भारत की भूमिका का परीक्षण कीजिये तथा वैश्विक विकास साझेदारियों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    07 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • साउथ-साउथ और त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • साउथ-साउथ और त्रिकोणीय सहयोग को आगे बढ़ाने में भारत की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • वैश्विक विकास साझेदारियों पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    साउथ-साउथ और त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) एक सहयोगात्मक विकास ढाँचा है जिसके अंतर्गत दो या अधिक विकासशील (ग्लोबल साउथ) देश पारस्परिक विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये ज्ञान, कौशल, संसाधन तथा प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान करते हैं। यह सहयोग प्रायः किसी विकसित देश या बहुपक्षीय संस्था के समर्थन से संपन्न होता है। यह समानता, एकजुटता, संप्रभुता के सम्मान के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है तथा इसका उद्देश्य साझा अनुभव एवं सामूहिक आत्मनिर्भरता के माध्यम से देशों को सशक्त बनाना है, जो पारंपरिक उत्तर-दक्षिण सहायता का पूरक है।

    मुख्य भाग:

    साउथ-साउथ और त्रिकोणीय सहयोग को आगे बढ़ाने में भारत की भूमिका

    • क्षमता निर्माण और ज्ञान साझाकरण में नेतृत्व: भारत द्वारा ‘भारत–संयुक्त राष्ट्र वैश्विक क्षमता-निर्माण पहल’ की की गई है ताकि अन्य 'ग्लोबल साउथ' देशों के साथ भारतीय श्रेष्ठ कार्यप्रणालियों को साझा किया जा सके।
      • यह सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को गति देने के लिये कौशल प्रशिक्षण, ज्ञान के आदान-प्रदान, पायलट परियोजनाओं और संस्थागत सहयोग को सुगम बनाता है।
    • भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष के माध्यम से योगदान: 150 मिलियन डॉलर के योगदान के साथ वर्ष 2017 में स्थापित, यह कोष ग्लोबल-साउथ में मांग-संचालित, परिवर्तनकारी परियोजनाओं का समर्थन करता है।
    • समतामूलक विकास के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना को बढ़ावा: भारत भागीदार देशों में डिजिटल वित्त का समर्थन करने के लिये Aadhaar और UPI जैसे: स्केलेबल डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाता है।
    • क्षेत्रीय नेटवर्कों का संस्थागतकरण और सुदृढ़ीकरण: भारत वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलनों की मेज़बानी करता है, जिससे विकासशील देशों की आवाज़ के रूप में अपनी भूमिका को सुदृढ़ करता है।
      • अपने G20 अध्यक्षता के दौरान, भारत ने G20 में अफ्रीकी संघ की स्थायी सदस्यता हासिल की, जिससे अफ्रीका एवं अन्य दक्षिणी देशों का राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव बढ़ा।
    • नवोन्मेषी कृषि और खाद्य सुरक्षा पहल: ICRISAT और DAKSHIN (विकास और ज्ञान साझाकरण पहल) के साथ साझेदारी के माध्यम से, भारत कृषि नवाचार एवं जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देता है।
    • बहुपक्षीय मंचों में ग्लोबल-साउथ की प्राथमिकताओं की अनुशंसा: भारत संयुक्त राष्ट्र साउथ-साउथ और त्रिकोणीय सहयोग दिवस (SSTC) जैसी पहलों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देता है, जिसमें नवीन सहयोग, जलवायु-अनुकूलन एवं सामाजिक-आर्थिक विकास पर बल दिया जाता है।

    वैश्विक विकास साझेदारियों पर प्रभाव

    • एकजुटता और समानता के माध्यम से सशक्तीकरण: SSTC विकासशील देशों के बीच पारस्परिक सम्मान, एकजुटता, समानता और साझा शिक्षा के सिद्धांतों पर आधारित है।
      • यह दृष्टिकोण ग्लोबल-साउथ में राजनीतिक और आर्थिक आत्मनिर्भरता का निर्माण करता है, जो वर्ष 1978 की ब्यूनस आयर्स कार्य योजना के बाद से एक प्रमुख सिद्धांत रहा है।
    • वैश्विक आर्थिक विकास को गति देना: ग्लोबल-साउथ के देशों ने हाल के वैश्विक आर्थिक विकास में आधे से अधिक का योगदान दिया है।
      • अंतर-दक्षिण व्यापार (Intra-South trade) अब विश्व व्यापार के एक-चौथाई से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है तथा दक्षिण से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का बहिर्वाह वैश्विक प्रवाह का एक तिहाई है।  
      • SSTC साझा विकास परिणामों के लिये इन गतिशीलता का उपयोग करता है।
    • लागत-प्रभावी, मापनीय और संदर्भ-विशिष्ट विकास समाधान: SSTC जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और डिजिटल वित्त जैसी गंभीर चुनौतियों के लिये स्थानीय रूप से अनुकूलित समाधान प्रदान करता है।
      • यह सहयोग भारत की आधार डिजिटल ID प्रणाली और UPI भुगतान मॉडल जैसे लागत-प्रभावी नवाचारों को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा करने में सक्षम बनाता है।
    • संस्थागत और तकनीकी क्षमताओं में वृद्धि: साउथ-साउथ साझेदारी संस्थागत क्षमताओं, तकनीकी ज्ञान और संसाधन जुटाने को मज़बूत करती है।
      • कोस्टा रिका, डोमिनिकन गणराज्य और जर्मनी कैरिबियन क्षेत्र में प्रवाल भित्तियों के समुत्थानशीलता एवं समुद्री जैवविविधता को बढ़ावा देने के लिये वित्त, तकनीकी विशेषज्ञता एवं सामुदायिक प्रथाओं को मिलाकर प्रवाल भित्तियों के जीर्णोद्धार पर एक त्रिकोणीय साझेदारी के माध्यम से सहयोग करते हैं।
    • वैश्विक विकास एजेंडा के भीतर SSTC को मुख्यधारा में लाना: SSTC को संयुक्त राष्ट्र की नीतियों और विकास ढाँचों में तेज़ी से संस्थागत रूप दिया जा रहा है, जिसमें 60 से अधिक प्रस्तावों एवं परिणाम दस्तावेजों में इसके महत्त्व को मान्यता दी गई है।
      • संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएँ स्वास्थ्य, जलवायु कार्रवाई, सामाजिक सुरक्षा आदि जैसे क्षेत्रों में सदस्य देशों का समर्थन करने के लिये वैश्विक स्तर पर SSTC रणनीतियों को एकीकृत कर रही हैं, जो विकासशील देशों की बढ़ती मांग को दर्शाता है।

    निष्कर्ष:

    साउथ-साउथ और त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) विकासशील देशों के बीच एकजुटता और साझा नवाचार का प्रतीक है, लेकिन इसकी पूर्ण क्षमता के लिये वित्तपोषण, क्षमता एवं समन्वय संबंधी चुनौतियों का समाधान आवश्यक है। सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप सतत् और समुत्थानशील विकास को आगे बढ़ाने के लिये यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आगे बढ़ते हुए, संस्थागत क्षमताओं को सुदृढ़ करना, प्रकृति-सकारात्मक समाधानों का विस्तार करना और समावेशी साझेदारियों को बढ़ावा देना, एक हरित एवं समतापूर्ण भविष्य के लिए SSTC की पूर्ण क्षमता का सदुपयोग करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।