• प्रश्न :

    निबंध विषय:

    प्रश्न 1. जिसके पास जीने का कारण है, वह लगभग किसी भी परिस्थिति को सह सकता है। (1200 शब्द)

    प्रश्न 2. बुद्धि के बिना महत्वाकांक्षा तूफान है, जबकि प्रयास के बिना संतोष मृगतृष्णा है। (1200 शब्द)

    04 Oct, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. जिसके पास जीने का कारण है, वह लगभग किसी भी परिस्थिति को सह सकता है। (1200 शब्द)

    परिचय:

    सर्दियों में, युवा मनोचिकित्सक विक्टर फ्रैंकल ने स्वयं को नाज़ी कंसंट्रेशन कैंप में पाया। निराशा, भुखमरी एवं मृत्यु से घिरे हुए, उन्होंने देखा कि कुछ कैदियों ने आशा खो दी और जल्दी ही दम तोड़ दिया, जबकि अन्य असहनीय कठिनाइयों का सामना करके जीवित रहते थे। जो लोग जीवित रहते थे, उनके पास प्रायः जीने का एक स्पष्ट कारण होता था— कोई प्रियजन प्रतीक्षा कर रहा होता था, कोई मिशन पूरा करना होता था, या कोई व्यक्तिगत लक्ष्य होता था। यह अवलोकन फ्रेडरिक नीत्शे के इस कथन को प्रतिबिंबित करता है: “जिसके पास जीवन जीने का एक कारण होता है, वह लगभग किसी भी परिस्थिति को सहन कर सकता है।” 

    जीवन की चुनौतियाँ ‘किस-प्रकार’ सहनशील बन जाती हैं जब उन्हें एक सुदृढ़ उद्देश्य ‘क्यों’ के मार्गदर्शन में देखा जाए।

    मुख्य भाग:

    उद्धरण का तात्पर्य

    • “क्यों जीना है”: उद्देश्य, अर्थ, व्यक्तिगत मूल्य या उत्तरदायित्व।
    • “कैसे जीना है”: जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ, चुनौतियाँ।
    • मुख्य विचार: उद्देश्य की भावना मनुष्यों को प्रतिकूल परिस्थितियों को सहने के लिये क्षमता और दृढ़ संकल्प प्रदान करती है।

    दार्शनिक दृष्टिकोण

    • नीत्शे यह रेखांकित करते हैं कि जीवन स्वाभाविक रूप से चुनौतीपूर्ण है और मानव को दुःख सहने के लिये अर्थ की आवश्यकता होती है।
    • विक्टर फ्रैंकल का यातना शिविरों में जीवित रहना दर्शाता है कि जिनके पास जीने का कोई कारण है, वे अत्यधिक पीड़ा एवं अभाव को सहन कर सकते हैं।
    • उदाहरण: फ्रैंकल स्वयं अपने प्रियजनों से मिलने और मानवीय सहनशीलता पर अपना मनोवैज्ञानिक ग्रंथ (मैन्स सर्च फॉर मीनिंग) लिखने की इच्छा से प्रेरित होकर जीवित बचे।

    ऐतिहासिक उदाहरण

    • महात्मा गांधी: कई कारावासों के दौरान, गांधी ने सत्य और अहिंसा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता एवं भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य से प्रेरित होकर कठोर परिस्थितियों, भूख हड़तालों व राजनीतिक दबावों को सहन किया।
    • नेल्सन मंडेला: अमानवीय परिस्थितियों में 27 वर्ष जेल में बिताने के बावजूद, मंडेला दक्षिण अफ्रीका के लिये नस्लीय समानता और स्वतंत्रता के अपने दृष्टिकोण के कारण अडिग रहे।
    • मलाला यूसुफजई: अपने जीवन पर लक्षित हमले से बच गईं और शिक्षा के अधिकार में अपने विश्वास से प्रेरित होकर लड़कियों की शिक्षा की वकालत करती रहीं।

    समकालीन उदाहरण

    • माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा और बेहतर भविष्य प्रदान करने के लिये कई नौकरियाँ करते हैं। उनका उद्देश्य अपने बच्चों का कल्याण उन्हें थकान एवं आर्थिक संघर्षों को सहने में सहायता करता है।
    • दीर्घकालिक बीमारियों से ग्रस्त मरीज़, जीने की आशा या परिवार के प्रति ज़िम्मेदारियों से प्रेरित होकर, इलाज और दर्द सहते रहते हैं।
    • उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्त्ता प्रायः बार-बार असफलताओं, जोखिमों एवं सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हैं, लेकिन एक स्पष्ट लक्ष्य या दूरदर्शिता के कारण अपना कार्य जारी रखते हैं।

    मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य

    • उद्देश्य मानसिक शक्ति, सहनशक्ति और आघात, तनाव तथा प्रतिकूल परिस्थितियों से उबरने की प्रेरणा प्रदान करता है।
    • आधुनिक मनोविज्ञान लक्ष्य-निर्धारण, अर्थ-निर्माण और उद्देश्य-संचालित जीवन को मानसिक स्वास्थ्य के लिये आवश्यक मानता है।
    • उदाहरण: प्राकृतिक आपदाओं या दुर्घटनाओं से उबरने वाले लोग प्रायः पारिवारिक बंधनों या व्यक्तिगत लक्ष्यों के कारण अत्यधिक आघात से बच जाते हैं।
    • सहायक समुदाय कठिनाइयों को सहने की क्षमता को बढ़ाते हैं, जो व्यक्तिगत उद्देश्य के साथ-साथ सामाजिक समर्थन के महत्त्व को दर्शाता है।

    प्रति-परिप्रेक्ष्य

    • बिना किसी ‘क्यों’ के, छोटी-छोटी चुनौतियाँ भी भारी लग सकती हैं।
    • सहनशक्ति आंतरिक शक्ति, अनुकूलन रणनीतियों और सामाजिक नेटवर्क पर भी निर्भर करता है।

    निष्कर्ष:

    विक्टर फ्रैंकल, महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला और कई सामान्य व्यक्तियों के अनुभव दर्शाते हैं कि एक दृढ़ उद्देश्य मनुष्य को सबसे कठिन विपत्तियों का भी सामना करने में सक्षम बनाता है। एक स्पष्ट ‘क्यों’ सहनशक्ति को दृढ़ करता है, विकल्पों का मार्गदर्शन करता है और जीवन में दृढ़ता को प्रेरित करता है। 

    जैसा कि राल्फ वाल्डो इमर्सन ने समझदारी से कहा था, “जीवन का उद्देश्य खुश रहना नहीं है। इसका उद्देश्य उपयोगी होना, सम्माननीय होना, दयालु होना और यह सुनिश्चित करना है कि आप जो जीवन जिएँ वह आदर्श जीवन हो।” 

    आज के तेज़ी से बदलते विश्व में, अपने उद्देश्य की खोज न केवल व्यक्तिगत विकास के लिये, बल्कि समाज में सार्थक योगदान देने और एक बेहतर भविष्य बनाने के लिये भी आवश्यक है।


    2. बुद्धि के बिना महत्त्वाकांक्षा तूफान है, जबकि प्रयास के बिना संतोष मृगतृष्णा है। (1200 शब्द)

    परिचय:

     वर्ष 1914 में एक युवा वैज्ञानिक ‘रॉबर्ट ओपेनहाइमर’ अपनी उस महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित थे, जो उन्हें परमाणु ऊर्जा के रहस्यों को सुलझाने की दिशा में अग्रसर कर रही थी। उनकी असाधारण प्रतिभा और तीव्र महत्त्वाकांक्षा ने परमाणु बम के विकास को जन्म दिया, जो एक अभूतपूर्व वैज्ञानिक उपलब्धि थी, लेकिन यह महाविनाश का कारण बनी।

    बाद में ओपेनहाइमर ने अपने इस आविष्कार के नैतिक महत्त्व पर चिंतन किया और यह स्वीकार किया कि “बिना विवेक की महत्त्वाकांक्षा एक तूफान बन जाती है !”—जो यदि नैतिक निर्णय और दूरदर्शिता द्वारा नियंत्रित न की जाये तो विनाश का कारण बन सकती है। इसी प्रकार, लोग प्रायः बिना परिश्रम के सुख और संतोष की आकांक्षा करते हैं, किंतु अंततः उन्हें मरुस्थल में मृगतृष्णा की भाँति भ्रामक ही पाते हैं।

    मुख्य भाग:

    विवेक के बिना महत्त्वाकांक्षा

    • व्याख्या: महत्त्वाकांक्षा प्रगति और नवोन्मेष का प्रेरक तत्त्व है, परंतु यदि उसमें विवेक, नैतिक दिशा एवं दूरदृष्टि का समावेश न हो तो वह विनाशकारी परिणाम दे सकती है।
    • उदाहरण:
      • ऐतिहासिक: नेपोलियन बोनापार्ट की अनियंत्रित महत्त्वाकांक्षा ने यूरोप को युद्धों, अस्थिरता और अंततः उसके पतन की ओर धकेल दिया।
      • समकालीन: अनेक व्यावसायिक नेता जब केवल लाभ और विस्तार के लिये नैतिकता व पर्यावरणीय उत्तरदायित्व की उपेक्षा करते हैं, तो वे आर्थिक एवं सामाजिक संकटों को जन्म देते हैं।
    • सीख: महत्त्वाकांक्षा तभी सार्थक होती है जब वह विवेक, नियोजन और नैतिक आधार के साथ जुड़ी हो तभी वह सृजनात्मक ऊर्जा में रूपांतरित होकर विनाश के स्थान पर निर्माण का साधन बनती है।

    'परिश्रम-विहीन संतोष'

    • बिना परिश्रम के प्राप्त संतोष एक भ्रम है; वास्तविक संतोष तभी संभव है जब वह कठोर परिश्रम, निरंतर प्रयास और व्यक्तिगत योगदान से उत्पन्न हो।
    • उदहारण: 
      • अनुशासित अध्ययन के बिना शैक्षणिक सफलता की आशा रखने वाले छात्र प्रायः असफलता का सामना करते हैं।
      • जो समाज केवल विरासत में मिले विशेषाधिकारों या अनर्जित धन पर निर्भर रहते हैं, वे सांस्कृतिक, आर्थिक और नैतिक रूप से जड़ एवं दिशाहीन हो जाते हैं।
    • सीख: प्रयास स्थायी संतोष का आधार तैयार करता है, यह सुनिश्चित करता है कि संतुष्टि वास्तविक और स्थायी हो।

    संतुलित दृष्टिकोण:

    • विवेक द्वारा निर्देशित महत्त्वाकांक्षा धारणीय और नैतिक सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है।
    • परिश्रम से अर्जित संतोष वास्तविक आत्मसम्मान और तृप्ति प्रदान करता है।
    • उदाहरण: 
      • महात्मा गाँधी की भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति की महत्त्वाकांक्षा नैतिक सिद्धांतों और सतत् परिश्रम से निर्देशित थी, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय एवं व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर गहन संतोष प्राप्त हुआ।
      • रतन टाटा जैसे उद्यमियों ने अपने उच्च लक्ष्यों को सावधानीपूर्वक योजना और निरंतर प्रयास के साथ संयोजित कर सार्थक नवोन्मेष का उदाहरण प्रस्तुत किया।

    निष्कर्ष:

     जीवन हमें सिखाता है कि अनियंत्रित महत्त्वाकांक्षा या सहज संतुष्टि व्यक्तियों और समाजों को दिक् भ्रमित कर सकती है। जीवन में प्रेरणा, नैतिक निर्णय, प्रयास और संतुष्टि के बीच एक संवेदनशील संतुलन आवश्यक है। आज की तीव्र और प्रतिस्पर्द्धी दुनिया में, महत्त्वाकांक्षा के साथ-साथ ज्ञान का विकास और समर्पित प्रयास से अर्जित संतोष ही व्यक्तिगत विकास, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा सतत् सफलता की आधारशिला हैं।

    जैसा कि अरस्तू ने बुद्धिमत्तापूर्वक कहा था, “हम वही हैं जो हम बार-बार करते हैं। अतः उत्कृष्टता कोई क्रिया नहीं, बल्कि एक आदत है।” 

    आगे बढ़ते हुए, व्यक्तियों और समुदायों को अपनी महत्त्वाकांक्षा को विवेक के साथ तथा अपने संतोष को परिश्रम के साथ संयोजित करना चाहिये, ताकि उनका जीवन उद्देश्यपूर्ण, नैतिकता-संपन्न एवं सार्थक योगदान से परिपूर्ण बन सके।