उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- लद्दाख की छठी अनुसूची की माँग के संदर्भ का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- लद्दाख को छठी अनुसूची संरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता और चुनौतियों की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
लद्दाख, जिसे वर्ष 2019 में जम्मू -कश्मीर के विभाजन के बाद एक पृथक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बनाया गया, अपनी जनजातीय और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा के लिये छठी अनुसूची संरक्षण की मांग कर रहा है। यह क्षेत्र, जो चीन और पाकिस्तान की सीमाओं के पास रणनीतिक रूप से स्थित है, मुख्यतः जनजातीय समुदायों का निवास स्थान है। यह मांग राष्ट्रीय एकीकरण और क्षेत्रीय स्वायत्तता के बीच संवेदनशील संतुलन को उजागर करती है और भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में शासन, विकास और सुरक्षा संबंधी मुद्दों को सामने लाती है।
मुख्य भाग:
छठी अनुसूची संरक्षण की आवश्यकता
- राजनीतिक स्वायत्तता: वर्ष 2019 से विधायिका रहित केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में निर्वाचित प्रतिनिधियों और विधायी शक्तियों का अभाव है।
- जनजातीय पहचान और संस्कृति: लगभग 97% से अधिक जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है; छठी अनुसूची उनके रीति-रिवाज़, भूमि अधिकार और सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा करता है।
- भूमि और संसाधनों का संरक्षण: ग्लेशियर, उच्च पर्वतीय चरागाह और संकटग्रस्त प्रजातियों जैसे संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों को अधिक जनसंख्या और औद्योगिकीकरण के दबाव से बचाने की आवश्यकता है।
- स्थानीय आर्थिक विकास: छठी अनुसूची का दर्जा लक्षित आधारभूत संरचना, शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवाओं की सुनिश्चितता करता है, जिससे उच्च स्नातक बेरोजगारी (26.5%) जैसी समस्याओं को दूर किया जा सके।
- सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता: विवादित सीमाओं पर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ क्षेत्रीय स्वायत्तता के संतुलन के लिये प्रशासनिक नियंत्रण आवश्यक है।
छठी अनुसूची संरक्षण प्रदान करने में चुनौतियाँ
- कानूनी बाधाएँ: छठी अनुसूची मुख्यतः पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों के लिये बनाया गया है; लद्दाख पर इसे लागू करने हेतु संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।
- प्रशासनिक जटिलता: अतिरिक्त नौकरशाही स्तर दूरदराज़ और रणनीतिक क्षेत्र में निर्णय लेने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं।
- वर्तमान विकास सहायता: केंद्र शासित प्रदेश पहले ही पर्याप्त निधि और बढ़ी हुई आरक्षण सुविधाएँ प्राप्त कर रहा है (वर्ष 2025 के अनुसार अनुसूचित जनजाति आरक्षण 80%)।
- आर्थिक विकास संबंधी चिंता: भूमि और संसाधनों पर प्रतिबंध निवेश और बुनियादी ढाँचे परियोजनाओं को हतोत्साहित कर सकते हैं।
- पूर्ववर्ती जोखिम: छठी अनुसूची को लागू करने से अन्य जनजातीय क्षेत्रों में समान मांगें बढ़ सकती हैं, जिससे संघीय शासन में जटिलता उत्पन्न हो सकती है।
आगे की राह
- स्थानीय प्रशासन, संसाधन प्रबंधन और सांस्कृतिक संरक्षण हेतु लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LAHDC) के अधिकारों का विस्तार करना।
- अनुच्छेद 240 के तहत विशेष विधायी दर्जा प्रदान करना, जिससे स्थानीय कानून बनाने की शक्तियाँ प्राप्त हो सकें।
- स्वायत्तता के लिये अनुकूलित छठी अनुसूची ढाँचे (Tailored Sixth Schedule Framework) की संभावना पर विचार करना, जिसमें जवाबदेही सुनिश्चित हो।
- वित्तीय हस्तांतरण और विकास अनुदान बढ़ाना, ताकि सतत् आधारभूत संरचना और रोजगार सुनिश्चित हो सके।
- लद्दाख पब्लिक सर्विस कमीशन (LPSC) की स्थापना करना, ताकि स्थानीय निवासियों के लिए भर्ती सुनिश्चित हो।
- स्थानीय और केंद्र शासित निकायों के साथ संवाद और संघर्ष समाधान प्लेटफॉर्म को संस्थागत रूप प्रदान करना।
- कानूनी सुरक्षा उपाय लागू करना ताकि सांस्कृतिक धरोहर और संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा हो सके।
निष्कर्ष:
लद्दाख का राज्यत्व, छठी अनुसूची दर्जा और अधिक स्वायत्तता की मांग समावेशी शासन, सांस्कृतिक संरक्षण और सतत् विकास की आवश्यकता को दर्शाती है, साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा की सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है। एक क्रमिक और परामर्शपूर्ण दृष्टिकोण- LAHDC को सशक्त करना, स्थानीय रोज़गार सुनिश्चित करना और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देना, सबसे उचित मार्ग प्रस्तुत करता है, जैसा कि गांधीजी ने कहा था: “दुनिया में हर किसी की ज़रूरतों के लिये पर्याप्त है, लेकिन हर किसी की लालच के लिये नहीं।”