उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रवास की परिघटना का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारत में आंतरिक प्रवास के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण कीजिये।
- इसकी चुनौतियों से निपटने के उपाय सुझाइए।
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परिचय:
अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) के अनुसार, प्रवासी वह व्यक्ति है जो किसी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार कर रहा हो या पार कर चुका हो या अपने स्थायी निवास स्थान से किसी राज्य के भीतर स्थानांतरित हो रहा हो या हो चुका हो। भारत के भीतर प्रवासन एक जटिल प्रक्रिया है, जो सामाजिक गतिशीलता के अवसर प्रदान करती है, साथ ही विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ और तनाव भी उत्पन्न करती है।
मुख्य भाग:
प्रवासन की व्यापकता:
- वर्ष 2011 में भारत में लगभग 45.6 करोड़ आंतरिक प्रवासी थे, जो कुल जनसंख्या का लगभग 38% है।
- हाल की वर्ष 2023 की अनुमानित जानकारी के अनुसार, लगभग 40 करोड़ प्रवासी हैं, जिनकी प्रवासन दर लगभग 29% है।
- अधिकतर (88%) प्रवासन राज्य के भीतर ही होता है।
- प्रमुख स्रोत राज्य: उत्तर प्रदेश, बिहार
- गंतव्य राज्य/शहर: दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक
- उदाहरण: वर्ष 2001-2011 के बीच दिल्ली की जनसंख्या में लगभग 2.5 करोड़ की वृद्धि हुई, जिसका मुख्य कारण प्रवासन था।
आंतरिक प्रवासन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
- सकारात्मक प्रभाव:
- आर्थिक योगदान: प्रवासी मज़दूर उद्योगों और अनौपचारिक क्षेत्र में श्रम प्रदान करके शहरी आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं।
- प्रवासी मज़दूर ऐसे राज्यों में GSDP में 0.5–2.5% का योगदान करते हैं जहाँ नेट पॉजिटिव प्रवासन होता है, जैसे दिल्ली, तमिलनाडु और महाराष्ट्र।
- निर्माण, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में आवश्यक श्रम की कमी को पूरा करते हैं।
- उदाहरण: प्रवासी मज़दूरों ने दिल्ली मेट्रो के निर्माण और मुंबई के रियल एस्टेट क्षेत्र की रीढ़ की हड्डी का कार्य किया।
- विप्रेषित धन और ग्रामीण लाभ: प्रवासियों द्वारा भेजी गई धनराशि ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाती है, गरीबी कम करती है और स्वास्थ्य तथा शिक्षा तक पहुँच को बेहतर बनाती है।
- उदाहरण: केरल में प्रवासियों की उच्च रेमिटेंस (लगभग ₹2,16,893 करोड़, 2023) ने ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को सशक्त किया।
- सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि: प्रवासन बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रोज़गार तक पहुँच सुनिश्चित करता है, जिससे जीवन स्तर में सुधार होता है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- शहरी तनाव: शहरों में भीड़भाड़, आवास की कमी, अपर्याप्त स्वच्छता, ट्रैफिक जाम और आधारभूत संरचना पर दबाव बढ़ता है।
- मलिन बस्तियों का विकास, उदाहरण के लिये, मुंबई में धारावी, जहाँ 10 लाख से अधिक लोग रहते हैं, शहरी भीड़भाड़ को दर्शाता है।
- सामाजिक बहिष्कार: प्रवासियों को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है और स्वास्थ्य, शिक्षा व कल्याण सेवाओं तक उनकी पहुँच सीमित रहती है।
- कई लोग असुरक्षित, अनौपचारिक रोज़गारों में कार्य करते हैं, जैसे निर्माण और घरेलू कार्य, जहाँ सामाजिक सुरक्षा नहीं होती।
- ग्रामीण 'ब्रेन ड्रेन': प्रवासन से गाँवों में कुशल श्रम की कमी होती है, जिससे स्थानीय कृषि और लघु उद्योग प्रभावित होते हैं।
- पुरुषों के बाहर जाने से अक्सर महिलाएँ खेत और परिवार का प्रबंधन करती हैं, जिससे कृषि का 'नारीकरण' (Feminisation of Agriculture) होता है।
चुनौतियों को दूर करने हेतु उपाय:
- प्रवासियों के लिये किफायती आवास, स्वच्छता, सार्वजनिक परिवहन और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार।
- उदाहरण: दिल्ली का अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स (ARHC) योजना प्रवासी मज़दूरों के लिये।
- प्रवासियों को निवास स्थान से स्वतंत्र रूप से पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा लाभ प्रदान करना।
- शहरी प्रशासन में दृढ़ प्रवासी डेटा संग्रह और आधिकारिक मान्यता को प्रबल करना।
- संकटपूर्ण प्रवासन को कम करने के लिये रोज़गार और आजीविका के अवसर सृजित करना।
- उदाहरण: MNREGA ग्रामीण रोज़गार प्रदान करता है, जिससे बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में विवशता में प्रवासन घटता है।
- जागरूकता अभियानों और भेदभाव विरोधी प्रयासों के माध्यम से सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष:
भारत में आंतरिक प्रवासन सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता और शहरी विकास का एक सशक्त इंजन है, लेकिन यह शहरी तनाव, मलिन बस्तियाँ और सामाजिक बहिष्कार जैसी समस्याएँ भी उत्पन्न करता है। इसके लाभों को साकार करने तथा सतत् एवं समान विकास सुनिश्चित करने के लिये रणनीतिक शहरी नियोजन, समावेशी नीतियाँ और लक्षित ग्रामीण विकास आवश्यक हैं।