• प्रश्न :

    आप अनिल हैं, भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के एक अधिकारी, जो वर्तमान में एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील ज़िले में ज़िला निर्वाचन अधिकारी (DEO) के पद पर कार्यरत हैं। चुनाव आने वाले दो हफ्तों में होने वाले हैं तथा आपकी ज़िम्मेदारी एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।

    पिछले कुछ दिनों में आपको राजनीतिक दलों, नागरिक समाज समूहों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों से गंभीर अनियमितताओं की अनेक शिकायतें प्राप्त हुई हैं। कई वास्तविक मतदाताओं के नाम रहस्यमय ढंग से मतदाता सूची से हटा दिये गए हैं, जबकि मृत व्यक्तियों के नाम और फर्जी प्रविष्टियाँ अब भी बनी हुई हैं। सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशियों पर सरकारी वाहन, कल्याणकारी योजनाओं और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग कर चुनाव प्रचार करने का आरोप है। कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में विपक्षी कार्यकर्त्ताओं और मतदाताओं को डराने-धमकाने के लिये बाहुबलियों के उपयोग की भी रिपोर्ट मिली है। कुछ निम्न स्तर के चुनावी कर्मचारी पक्षपातपूर्ण दिखाई देते हैं और उन पर प्रभावशाली प्रत्याशियों से मिलीभगत करने का संदेह है। इसके अतिरिक्त, वोट खरीदने के लिये नकद, शराब और मुफ्त उपहार बाँटने के व्यापक आरोप भी सामने आए हैं।

    जब आप इन मामलों को वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में लाते हैं, तो आपको इन्हें “गैर-महत्त्वपूर्ण परिचालन संबंधी मुद्दे” मानकर आगे न बढ़ाने की सलाह दी जाती है। राजनेता आपको चेतावनी देते हैं कि सख्त कार्रवाई से अशांति उत्पन्न हो सकती है, हिंसा भड़क सकती है एवं आपके कॅरियर व परिवार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। वहीं दूसरी ओर, नागरिक समाज समूह, चुनाव आयोग के प्रेक्षक एवं मीडिया के कुछ वर्ग जवाबदेही तथा चुनावी कानूनों के सख्त अनुपालन की मांग कर रहे हैं।

    जोखिम बहुत अधिक हैं। एक ओर, आपका कर्त्तव्य चुनावों की पवित्रता को बनाए रखना है, जो लोकतंत्र की नींव है। दूसरी ओर, यदि आप इस मामले को पूरी पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ाते हैं, तो आपको राजनीतिक प्रतिशोध, कॅरियर में बाधाएँ और व्यक्तिगत जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है।

    प्रश्न.

    A. इस परिस्थिति में अनिल के समक्ष कौन-से नैतिक द्वंद्व उपस्थित हैं?

    B.  अनिल के समक्ष उपलब्ध विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन कीजिये तथा प्रत्येक विकल्प के संभावित परिणाम का विश्लेषण कीजिये।

    C.  संवैधानिक मूल्यों, नैतिक तर्क और सुशासन के सिद्धांतों के आलोक में अनिल के लिये सर्वोत्तम कार्यवाही का सुझाव दीजिये।

    D.  कैसे प्रणालीगत सुधारों को लागू किया जा सकता है ताकि लंबे समय में ऐसे चुनावी दुराचारों को कम किया जा सके?  (250 शब्द)



    26 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय:

    निर्वाचन लोकतंत्र की आधारशिला हैं, जो जनता की सामूहिक इच्छा को प्रतिबिंबित करते हैं। ज़िला निर्वाचन अधिकारी (DEO) के रूप में, अनिल के पास संवैधानिक ज़िम्मेदारी है कि वह अनुच्छेद 324 के अंतर्गत स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करें। हालाँकि, मतदाता सूची में हेरफेर, सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग, धमकी और रिश्वत जैसे व्यापक निर्वाचन दुराचार के आरोप गंभीर नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न करते हैं।

    मुख्य भाग:

    A. अनिल के समक्ष नैतिक द्वंद्व

    • कर्त्तव्य बनाम व्यक्तिगत जोखिम: चुनावी अखंडता बनाए रखना राजनीतिक प्रतिशोध, धमकियों या कॅरियर में बाधाओं को आमंत्रित कर सकता है।
    • निष्पक्षता बनाम दबाव: वरिष्ठ अधिकारी और सत्ताधारी पार्टी के नेता समानुभूति दिखाने के लिये दबाव डालते हैं, जिससे निष्पक्ष निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
    • पारदर्शिता बनाम सार्वजनिक व्यवस्था: अनियमितताओं को उजागर करना अशांति को जन्म दे सकता है, फिर भी उन्हें अनदेखा करना लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास को कमज़ोर करता है।
    • अल्पकालिक बनाम दीर्घकालिक लोकतांत्रिक स्वास्थ्य: निष्क्रियता तत्काल शांति बनाए रख सकती है, लेकिन समय के साथ चुनावी वैधता को खतरे में डालती है।

    B. विकल्प एवं उनके परिणाम

    विकल्प A – शिकायतों की अनदेखी करना:

    • लाभ: व्यक्तिगत और राजनीतिक जोखिमों से बचाव।
    • हानि: लोकतंत्र को कमज़ोर करना, संवैधानिक कर्त्तव्य का उल्लंघन, कानूनी ज़िम्मेदारी का खतरा, और जनता के विश्वास में गिरावट।

    विकल्प B – आंशिक या सूक्ष्म कार्रवाई:

    • लाभ: तत्काल संघर्ष को कम करना; कुछ मुद्दों का समाधान करना।
    • हानि: पक्षपात की छवि बन सकती है; दुराचार जारी रहते हैं; नैतिक समझौता।

    विकल्प C – निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई (अनुशंसित):

    • लाभ: कानून का शासन बनाए रखना, लोकतांत्रिक संस्थानों को दृढ़ करना, जनता के विश्वास को पुनर्स्थापित करना।
    • हानि: व्यक्तिगत धमकियाँ, राजनीतिक प्रतिक्रिया, संभावित अशांति।

    C. अनुशंसित कार्रवाई का मार्ग

    • तत्काल उपाय: शिकायतों की पुष्टि करना, तटस्थ कर्मचारियों को तैनात करना और मतदान क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • निर्वाचन आयोग के साथ समन्वय: मुद्दों की औपचारिक रिपोर्ट करना; पर्यवेक्षक तैनाती और कानून प्रवर्तन समर्थन का अनुरोध करना।
    • सार्वजनिक संचार: नागरिक समाज और मीडिया को सूचित करने के लिये सतर्क पारदर्शिता बनाए रखना, ताकि गलत जानकारी कम हो।
    • नैतिक औचित्य: यह संवैधानिक कर्त्तव्य, निष्पक्षता और जवाबदेही पर आधारित है, जो कर्त्तव्यवादी-नैतिकता (deontological ethics) के सिद्धांतों के अनुरूप है, जहाँ भय की परवाह किये बिना कर्त्तव्य सर्वोपरि होता है।

    D. दीर्घकालिक प्रणालीगत सुधार

    • डिजिटल और स्वच्छ मतदाता सूची: भूत और डुप्लीकेट प्रविष्टियों को समाप्त करने के लिये आधार से लिंक्ड सत्यापन।
    • स्वतंत्र और सुरक्षित निर्वाचन कर्मचारी: रोटेशन, सख्त आचरण संहिता और राजनीतिक प्रभाव से सुरक्षा।
    • मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का सख्ती से पालन: संसाधनों के दुरुपयोग, वोट खरीदने और धमकाने पर दंड।
    • पारदर्शिता उपाय: अभियान वित्त और व्यय की वास्तविक समय में रिपोर्टिंग।
    • मतदाता जागरूकता कार्यक्रम: नागरिकों को दबाव या रिश्वत के विरुद्ध शिक्षित करना।
    • प्रौद्योगिकी-संचालित निगरानी: CCTV, ड्रोन और ऐप आधारित शिकायत निवारण प्रणाली।
    • अधिकारियों के लिये कानूनी सुरक्षा: निष्पक्ष कार्रवाई सुनिश्चित करने हेतु व्हिसलब्लोअर सुरक्षा और इम्युनिटी।

    निष्कर्ष:

    अनिल का द्वंद लोकतांत्रिक शासन में नैतिक ज़िम्मेदारी, कानूनी कर्त्तव्य और व्यक्तिगत जोखिम के जटिल अंतःक्रिया को उजागर करता है। निर्णायक, पारदर्शी और संवैधानिक आदेशों के अनुसार कार्रवाई करना कांटियन नैतिकता और अच्छे शासन के सिद्धांतों दोनों को प्रतिबिंबित करता है, जिसमें तात्कालिक लाभ की तुलना में कर्त्तव्य को प्राथमिकता दी जाती है। जबकि अल्पकालिक चुनौतियाँ अनिवार्य हैं, संस्थागत सुधार, डिजिटलीकरण, बढ़ी हुई जवाबदेही और नागरिक सहभागिता चुनावी अखंडता की रक्षा कर सकती हैं और लोकतंत्र को दृढ़ कर सकती हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि जनता की आवाज़ दुराचार और राजनीतिक तात्कालिकता पर विजय पाए।