• प्रश्न :

    प्रश्न: भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र विद्रोह को बढ़ावा देने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये और पिछले दशक में सरकार द्वारा की गई हस्तक्षेप एवं शांति समझौतों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    24 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में विद्रोह के मुद्दे का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में विद्रोह को बढ़ावा देने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये।
    • पिछले दशक में सरकारी हस्तक्षेपों और शांति समझौतों की प्रभावशीलता का आकलन कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र, जिसमें आठ राज्य शामिल हैं और जिसकी चीन, म्याँमार, बांग्लादेश और भूटान के साथ 5,400 किलोमीटर से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ साझा करता है, ऐतिहासिक रूप से विद्रोह का केंद्र रहा है। जातीय विविधता, राजनीतिक अलगाव और सामाजिक-आर्थिक उपेक्षा ने अशांति को बढ़ावा दिया है। हालाँकि गृह मंत्रालय ने 2014 और 2023 के बीच विद्रोह की घटनाओं में 80% की गिरावट दर्ज की है, लेकिन इसके मूल कारण अभी भी अनसुलझे हैं, जिससे यह मुद्दा आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय एकीकरण के लिये एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है।

    मुख्य भाग:

    विद्रोह में योगदान देने वाले कारक:

    • ऐतिहासिक-राजनीतिक अलगाव:
      • औपनिवेशिक काल की “बहिष्कृत क्षेत्र” नीति ने मुख्यधारा की शासन व्यवस्था के प्रति अविश्वास उत्पन्न किया।
      • स्वतंत्रता के पश्चात, राजनीतिक एकीकरण में देरी और मनमाने राज्यीय सीमांकन ने अलगाववादी आकांक्षाओं को को बढ़ावा दिया (जैसे- नगा स्वतंत्रता की माँग, असम की संप्रभुता हेतु ULFA का आंदोलन)।
    • जातीय पहचान और जनसांख्यिकीय चिंताएँ:
      • 200 से अधिक जातीय समूह अपनी विशिष्ट भाषाओं और परंपराओं के साथ मौजूद हैं।
      • प्रवासन, विशेषकर बांग्लादेश से असम और त्रिपुरा में आने वाले प्रवासियों के कारण जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ने का भय, असम आंदोलन (1979–85) और वर्तमान NRC-CAA विरोध प्रदर्शनों जैसे आंदोलनों को प्रेरित करता रहा है।
    • सामाजिक-आर्थिक बहिष्करण:
      • रणनीतिक महत्त्व रखने के बावजूद उत्तर-पूर्व भारत का देश की GDP में योगदान मात्र लगभग 3% है।
      • युवाओं में उच्च स्तर की बेरोज़गारी व्याप्त है।
      • संसाधन शोषण की धारणाएँ: असम में कच्चे तेल और अरुणाचल में जलविद्युत परियोजनाएँ, जिनसे स्थानीय लाभ सीमित हैं।
    • भौगोलिक और बाह्य कारक:
      • छिद्रपूर्ण सीमाएँ (Porous Borders) हथियारों, मादक पदार्थों और विद्रोहियों की आवाजाही को सुगम बनाती हैं।
      • म्याँमार का सागाइंग क्षेत्र लंबे समय से नगा और मणिपुरी विद्रोहियों के लिये एक सुरक्षित आश्रय स्थल रहा है।
      • 1960-70 के दशक में नगा समूहों को चीन के कथित समर्थन की स्मृति आज भी धारणाओं को प्रभावित करती है।
    • शासन की कमी और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
      • AFSPA (1958) के अत्यधिक उपयोग ने अविश्वास को जन्म दिया; मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगातार बने हुए हैं।
      • कमज़ोर संस्थाएँ और भ्रष्टाचार, शिकायत निवारण तंत्र को बाधित करते हैं।
      • अंतर-जातीय तनाव, जैसे वर्ष 2023 का मणिपुर संघर्ष, शासन तंत्र की संवेदनशीलता को उजागर करते हैं।

    सरकारी हस्तक्षेप और शांति समझौते (2014–2024)

    • शांति समझौते:
      • बोडो समझौता (2020): बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) का गठन, अधिक स्वायत्तता और विकास निधि का प्रावधान।
      • नगा फ्रेमवर्क समझौता (2015): नगा की विशिष्ट पहचान को मान्यता; ध्वज और संविधान पर वार्ता अब भी अनसुलझी।
      • कार्बी आंगलोंग समझौता (2021): 1,000 से अधिक कैडरों ने हथियार डाले, स्वायत्तता बढ़ाने के प्रावधान किये गए।
    • सुरक्षा उपाय:
      • असम, नगालैंड और मणिपुर के बड़े हिस्सों से AFSPA को वापस लिया गया (2022–23)।
      • विद्रोह रोधी अभियानों को तेज़ किया गया, सीमा पर बाड़ लगाई गई और म्याँमार व बांग्लादेश के साथ बेहतर समन्वय स्थापित किया गया।
    • विकास और संपर्क सुधार:
      • एक्ट ईस्ट पॉलिसी ने उत्तर-पूर्व को आसियान बाज़ारों से जोड़ा।
      • उत्तर-पूर्व विशेष बुनियादी ढाँचा विकास योजना (NESIDS) और PM-DevINE ने सड़कों, स्वास्थ्य सेवाओं और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया।
      • बोगीबील ब्रिज, धोला-सदिया ब्रिज और कालादान मल्टी-मॉडल परियोजना ने क्षेत्र की संपर्क सुविधा में सुधार किया।
    • संस्थागत तंत्र:
      • उत्तरी-पूर्वी परिषद (NEC) को सशक्त बनाया गया।
      • वित्त आयोगों और उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER) के आवंटनों के माध्यम से अधिक वितरण बढ़ाया गया।

    प्रभावशीलता:

    • उपलब्धियाँ:
      • 2014-2023 के बीच उग्रवाद की घटनाएँ 80% तक कम हुईं और नागरिक हत्याएँ 90% घट गईं।
      • पिछले दशक में 9,000 से अधिक हथियारबंद विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण किया।
      • कई क्षेत्रों से AFSPA हटाए जाने से विश्वास बढ़ा।
    • सीमाएँ:
      • नगा मुद्दा अभी भी अनसुलझा; मुख्य मांगों पर शांति वार्ता स्थगित।
      • मणिपुर में जातीय हिंसा (2023) ने गहरे निहित पहचान संघर्षों को उजागर किया।
      • सुरक्षा पर अधिक ज़ोर; विकास अक्सर असमान या विलंबित रहा।
      • सीमा प्रबंधन अप्रभावी बना हुआ है; गोल्डन ट्रायंगल में मादक पदार्थों का व्यापार बढ़ रहा है।

    निष्कर्ष:

    • जहाँ समझौते और विकासात्मक प्रयासों ने कुछ परिणाम दिखाए हैं, वहाँ सतत् शांति के लिये पहचान, शासन और आजीविका से संबंधी मुद्दों को संबोधित करना आवश्यक है। उत्तरी-पूर्व में स्थायी शांति के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण, राजनीतिक संवाद, आर्थिक सशक्तिकरण, सांस्कृतिक मान्यता और दृढ़ सुरक्षा सहयोग ही एकमात्र व्यवहार्य मार्ग है।