उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारत में अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाहों के सामने आने वाली चुनौतियों, जिनमें ऑनर किलिंग भी शामिल है, पर चर्चा कीजिये।
- इन चुनौतियों से निपटने के उपाय सुझाइए।
- आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिये की गई है कि इसमें जीवन साथी चुनने का अधिकार भी शामिल है। लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006) और शफीन जहान बनाम अशोकन के.एम. (2018) जैसे न्यायिक निर्णय यह पुष्टि करते हैं कि विवाह में वयस्क की सहमति और व्यक्तिगत चयन मूल अधिकार हैं, चाहे जाति या धर्म कोई भी हो। इन संवैधानिक सुरक्षा के बावजूद, भारत में अंतःजातीय और अंतरधार्मिक युगल सामाजिक प्रतिरोध, दबाव और हिंसा का सामना करते हैं, जिसमें ऑनर किलिंग (सम्मान हत्या) जैसी घटनाएँ भी शामिल हैं।
मुख्य भाग:
अंतःजातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों को होने वाली चुनौतियाँ
- सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतिरोध:
- परिवार और समुदाय अक्सर जाति या धर्म के पार विवाहों का विरोध करते हैं।
- युगल को परिवार के “सम्मान” की रक्षा के लिये दबाव, धमकियाँ और ज़बरन विवाह का सामना करना पड़ सकता है।
- खाप पंचायत जैसी सामुदायिक और अनौपचारिक संस्थाएँ अक्सर जाति-आधारित विवाह नियमों की अवहेलना करने वालों के विरुद्ध हिंसा को स्वीकार करती हैं या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करती हैं।
- ऑनर किलिंग (सम्मान हत्या)
- परिवार या समुदाय सामाजिक नियमों को लागू करने के लिये हत्या या शारीरिक हमले का सहारा ले सकते हैं।
- यह अनुच्छेद 21, 14 और 15 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समता और भेदभाव-रोधी) का उल्लंघन है।
- NCRB द्वारा दर्ज अधिकांश सम्मान हत्या के पीड़ित युवा वर्ग के हैं, आमतौर पर 30 वर्ष से कम उम्र के, जो सामाजिक पैटर्न के अनुरूप है, जहाँ परिवार या समुदाय की हिंसा उन युगलों या व्यक्तियों को लक्षित करती है जो जाति या धर्म जैसी सामाजिक सीमाओं को पार करते हैं।
- कानूनी और प्रशासनिक बाधाएँ
- कानूनी उपचार मौजूद हैं, जैसे कि भारतीय दंड संहिता (धारा 302 और 304) हत्या से संबंधित मामलों के लिये और महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम (2005), जो पारिवारिक उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है।
- विशेष विवाह अधिनियम (1954) अंतःजातीय और अंतरधार्मिक विवाहों को धार्मिक अनुष्ठानों के बिना वैध बनाने की सुविधा देता है।
- हालाँकि, प्रशासनिक और प्रवर्तन संबंधी कमियाँ, जैसे पुलिस सुरक्षा में देरी, गवाह संरक्षण की कमी और सामाजिक बहिष्कार के जोखिम इन कानूनी उपायों की प्रभावशीलता को अक्सर सीमित कर देती हैं।
उपाय एवं अनुशंसाएँ
- कानूनी हस्तक्षेप:
- सम्मान हत्या के मामलों के लिये फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स स्थापित करना।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 द्वारा प्रतिस्थापित IPC प्रावधानों और विशेष विवाह अधिनियम को सख्ती से लागू करना।
- सुरक्षा तंत्र:
- पुलिस सुरक्षा, सुरक्षित आश्रय और गवाह संरक्षण कार्यक्रम प्रदान करना।
- उदाहरण: लव कमांडोज़ और पीपल अगेन्स्ट कास्ट वायलेंस (PACV) जैसी NGO युगलों को कानूनी सहायता और पुनर्वास में सहायता करती हैं।
- सामाजिक जागरूकता और संवेदनशीलता:
- अंतःजातीय/अंतरधार्मिक विवाहों की स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाना।
- स्कूल पाठ्यक्रम में वैवाहिक अधिकार और सहमति (Consent) की जानकारी को शामिल करना।
- उदाहरण: हरियाणा और राजस्थान में जागरूकता अभियानों से पायलट ज़िलों में स्वीकार्यता में 10-15% की वृद्धि देखी गई।
- डिजिटल प्रतिप्रवृत्तियों को बढ़ावा देना: सोशल मीडिया का उपयोग सकारात्मक अभियानों के लिये करना जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समता और प्रेम का समर्थन करते हों।
निष्कर्ष:
जैसा कि प्रो. उपेंद्र बक्षी (मानवाधिकार विशेषज्ञ) ने कहा है कि मूल अधिकारों की प्राप्ति अधूरी है जब तक सामाजिक प्रथाएँ मानव गरिमा और व्यक्तिगत स्वायत्तता का सम्मान करने के लिये विकसित नहीं होतीं। इस अधिकार की सुरक्षा के लिये प्रभावी कानूनी प्रवर्तन, सुरक्षा तंत्र और सामाजिक संवेदनशीलता सुनिश्चित करना आवश्यक है। व्यक्तिगत वैवाहिक चयन का सम्मान स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व के सिद्धांतों को दृढ़ करता है, जिससे एक अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण होता है।