उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सिंधु-गंगा के मैदानों (IGP) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- IGP में कृषि, प्रवास और संसाधन उपयोग पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर प्रकाश डालिये।
- आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
सिंधु-गंगा/इंडो-गैंगेटिक मैदान (IGP):
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में विस्तृत इंडो-गैंगेटिक मैदान भारत का कृषि हृदयस्थल है, जो देश के लगभग 50% अन्न का उत्पादन करता है। भारत की कुल जनसंख्या का 40% से अधिक यहाँ निवास करता है। यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, जैसे कि बढ़ती तापमान, अनियमित मानसून, भूजल क्षय और बार-बार आने वाले बाढ़। ये चुनौतियाँ कृषि, प्रवासन पैटर्न और संसाधन उपयोग को प्रभावित करती हैं, जिससे खाद्य और आजीविका सुरक्षा पर जोखिम उत्पन्न होता है।
मुख्य भाग:
कृषि पर प्रभाव
- बढ़ता तापमान: ICAR के अनुसार, तापमान में 1°C की वृद्धि गेहूँ की पैदावार को 4-5 मिलियन टन तक घटा देती है, जिसमें पंजाब और हरियाणा सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- अनियमित मानसून: बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बार-बार बाढ़ आती है, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सूखा पड़ता है, जिससे धान-गेहूँ की फसल चक्र प्रभावित होते हैं।
- भूजल संकट: नीति आयोग (2023) के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में भूजल का दो गुना अधिक निष्कर्षण हो रहा है, जिससे जल-संकट और बढ़ रहा है।
- मृदा ह्रास: बाढ़ और उर्वरकों के अधिक उपयोग से मृदा की गुणवत्ता नष्ट होती है, जिससे दीर्घकालिक उत्पादकता घटती है।
- कीट प्रकोप: कम सर्दियाँ धान में ब्राउन प्लान्थॉपर जैसे कीटों को बढ़ावा देती हैं, जिससे पैदावार प्रभावित होती है।
प्रवासन पर प्रभाव
- मौसमी संकट प्रवासन: उत्तर बिहार के बाढ़-प्रवण ज़िलों से प्रतिवर्ष लाखों लोग दिल्ली, पंजाब और गुजरात अनकुशल मज़दूरी के लिये जाते हैं।
- शहरी दबाव: प्रवासी अक्सर अनौपचारिक रोज़गारों में कार्यरत होते हैं, जिससे शहरों में आवास, स्वच्छता और बुनियादी ढाँचे पर दबाव बढ़ता है।
- श्रम बाजार में बदलाव: विडंबना यह है कि पंजाब की कृषि, जो ग्रामीण संकट से प्रभावित है, उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मज़दूरों पर अत्यधिक निर्भर करती है, जिससे संवेदनशीलता का एक चक्र बनता है।
संसाधन उपयोग पर प्रभाव
- जल संसाधन: ट्यूबवेल पर अत्यधिक निर्भरता ने पंजाब और हरियाणा के कई जिलों को भूजल संकट के "डार्क ज़ोन" में धकेल दिया है (CGWB, 2022)।
- ऊर्जा मांग: बढ़ती सिंचाई आवश्यकताओं से विद्युत और डीज़ल की खपत बढ़ती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होती है।
- जैव विविधता का ह्रास: बिहार और बंगाल में घटते वेटलैंड्स ने मछली पालन और प्रवासी पक्षियों के आवास को कम कर दिया है।
- संघर्ष की संभावना: बढ़ती कमी गंगा, यमुना और सतलज नदियों पर राज्यों के बीच जल विवाद को जन्म दे सकती है।
आगे की राह
- फसल विविधीकरण (ज्वार, बाजरा, दलहन) के माध्यम से जलवायु-सहिष्णु कृषि को बढ़ावा देना।
- सूक्ष्म-सिंचाई और भूजल पुनर्भरण संरचनाओं का विस्तार करना।
- जलवायु प्रवासियों के लिये सामाजिक सुरक्षा पोर्टेबिलिटी और कौशल विकास सुनिश्चित करना।
- डेटा-आधारित नीतियों को सुदृढ़ करना और उन्हें सतत् विकास लक्ष्यों SDG 2, 6 और 13 के साथ एकीकृत करना।
निष्कर्ष:
सिंधु-गंगा मैदानों को जलवायु परिवर्तन के तहत कृषि में गिरावट, अनिवार्य प्रवासन और संसाधनों की कमी की त्रिसंकट चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भारत के खाद्य सुरक्षा क्षेत्र और लाखों लोगों की आजीविका की रक्षा के लिये सतत् कृषि, संसाधनों के कुशल उपयोग और प्रवासन-संवेदनशील नीतियों के माध्यम से तात्कालिक अनुकूलन आवश्यक है।