• प्रश्न :

    प्रश्न. “संस्थाओं में जनविश्वास प्राय: कानूनों के अभाव से नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों के क्षरण से कम होता है।” सिविल सेवाओं में जवाबदेही, विवेक और भ्रष्टाचार की चुनौतियों के संदर्भ में इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    18 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उद्धरण के औचित्य को उदाहरण के साथ स्पष्ट करते हुए उत्तर लिखिये।
    • कानून पर नैतिकता की प्रधानता के लिये प्रमुख तर्क प्रस्तुत कीजिये।
    • सिविल सेवाओं में नैतिक क्षरण से उत्पन्न चुनौतियों का गहन विश्लेषण कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    सार्वजनिक संस्थाओं में विश्वास केवल कानूनी ढाँचे पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह नैतिक आचरण पर भी अधिक निर्भर करता है। वर्ष 2008 का वित्तीय संकट इसका एक स्पष्ट उदाहरण है: जबकि बैंकिंग और वित्तीय प्रथाओं को नियंत्रित करने के लिये कानून मौजूद थे, सबप्राइम ऋण देने और जोखिम में हेर-फेर जैसी अनैतिक निर्णयों ने वैश्विक स्तर पर जनविश्वास क्षीण कर दिया।

    मुख्य भाग:

    कानून पर नैतिकता की प्रधानता (Primacy of Ethics Over Law):

    कानून कार्रवाई के लिये एक ढाँचा प्रदान करते हैं, लेकिन वे हर स्थिति की पूर्व-कल्पना नहीं कर सकते। वहीं, नैतिकता एक नैतिक दिशासूचक (कम्पास) प्रदान करती है जो विशेष रूप से जटिल और अप्रत्याशित परिस्थितियों में लोक सेवक के आचरण का मार्गदर्शन करती है।

    • कानून प्रतिक्रियाशील होते हैं, जबकि नैतिकता सक्रिय होती है। कानून अक्सर किसी समस्या के उत्तर में बनते हैं, वहीं दृढ़ नैतिक आधार समस्याओं के उत्पन्न होने से पहले ही उन्हें रोक सकता है।
    • कानून को दरकिनार किया जा सकता है, लेकिन नैतिकता आंतरिक होती है। एक व्यक्ति जिसकी सत्यनिष्ठा कम है, वह कानून में छिद्र खोज सकता है किंतु एक नैतिक व्यक्ति सही कार्य करेगा, भले ही कोई उसे न देख रहा हो।

    सिविल सेवाओं में नैतिक क्षरण से उत्पन्न चुनौतियाँ

    • जवाबदेही: जवाबदेही केवल कानूनी अनुपालन नहीं बल्कि नागरिकों के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी भी है। नैतिक उल्लंघन, भले ही गैरकानूनी हों, जनविश्वास कम कर देते हैं।
      • अधिकारी औपचारिक रूप से नियमों का पालन कर सकते हैं, फिर भी पारदर्शी ढंग से कार्य करने या नागरिकों की आवश्यकताओं का उत्तर देने में विफल रह सकते हैं।
        • भारत में कई नौकरशाही घोटालों में, जहाँ नियम मौजूद हैं, वहाँ भी उनका चयनात्मक प्रवर्तन या अनुपालन न होना नगरपालिका निकायों या सार्वजनिक वितरण प्रणालियों जैसी संस्थाओं में विश्वास खोने का कारण बन गया है।
    • विवेकाधीनता: व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिये विवेक का दुरुपयोग मूल्य के क्षरण को दर्शाता है। जब अधिकारी सार्वजनिक कल्याण की तुलना में स्वार्थ को प्राथमिकता देते हैं, तो विश्वास में कमी आती है।
      • सरकारी अनुबंधों या लाइसेंस का बिना पारदर्शिता के आवंटन, भले ही यह कानूनी रूप से अनुमति प्राप्त हो, अक्सर भाई-भतीजावाद या पक्षपात के आरोपों का कारण बनता है, जो कानूनी वैधता और नैतिक शासन के बीच के अंतर को उजागर करता है।
    • भ्रष्टाचार और मूल्य क्षरण: भ्रष्टाचार को प्रायः कानून के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है, लेकिन मूलतः यह एक नैतिक विफलता है।
      • भ्रष्टाचार-निरोधक कानूनों, जैसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, की मौजूदगी के बावजूद भी अनैतिक आचरण बना रहता है, क्योंकि लोक कर्त्तव्यों का आंतरिक आत्मसात पर्याप्त रूप से नहीं हो पाया है।
      • 2G स्पेक्ट्रम या कोयला आवंटन के मामले यह दर्शाते हैं कि केवल कानूनी कमियाँ ही कारण नहीं थीं; अधिकारियों में नैतिक मूल्यों का क्षरण ही इसका मूल कारक था।

    निष्कर्ष:

    जहाँ सुदृढ़ कानूनी ढाँचा सुशासन का आधार (Skeleton of Good Governance) है, वहीं नैतिक मूल्य उसकी जीवनधारा हैं। जनविश्वास को पुनः स्थापित करने और बनाए रखने के लिये आवश्यक है कि सिविल सेवाओं में सत्यनिष्ठा और नैतिक आचरण की संस्कृति विकसित की जाए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि उत्तरदायित्व केवल एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता न रहकर एक गहराई से निहित मूल्य बने और विवेक का प्रयोग बुद्धिमत्ता एवं निष्पक्षता के साथ किया जाए।