• प्रश्न :

    प्रश्न. “ऊर्जा सुरक्षा केवल एक आर्थिक आवश्यकता ही नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक साधन भी है।” महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के युग में भारत को अपनी ऊर्जा कूटनीति को किस प्रकार पुनर्संयोजित करना चाहिये? (150 शब्द)

    16 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ऊर्जा सुरक्षा के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • भारत की ऊर्जा सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित कीजिये।
    • महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के युग में भारत की ऊर्जा कूटनीति को पुनर्संयोजित करने के उपायों को प्रस्तावित कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ऊर्जा सुरक्षा का तात्पर्य किफायती मूल्य पर ऊर्जा की निर्बाध उपलब्धता से है। भारत के लिये, यह न केवल एक आर्थिक आवश्यकता है, बल्कि एक भू-राजनीतिक उत्प्रेरक भी है, जो उसके बाह्य संबंधों एवं रणनीतिक स्वायत्तता को आकार देता है। भारत अपनी 85% से अधिक कच्चे तेल एवं लगभग 50% गैस की माँग का आयात करता है, इसलिये महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता तथा बदलते वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों के बीच यह मुद्दा और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

    मुख्य भाग:

    भारत की ऊर्जा सुरक्षा के समक्ष चुनौतियाँ

    • उच्च आयात निर्भरता: भारत वैश्विक मूल्य झटकों, जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष (2022) के दौरान ब्रेंट क्रूड की अस्थिरता, के प्रति संवेदनशील बना हुआ है।
    • भू-राजनीतिक तनाव: पश्चिम एशिया में अशांति या होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे अवरोधों से आपूर्ति को खतरा है।
    • महाशक्तियों की प्रतिस्पर्द्धा: अफ्रीका और मध्य पूर्व में चीन की आक्रामक ऊर्जा कूटनीति भारत की अभिगम्यता को बाधित करती है।
    • स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण: पेरिस समझौते के तहत जलवायु लक्ष्यों के साथ जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को संतुलित करना।
    • गंभीर खनिज की कमी: हरित प्रौद्योगिकियों के लिये महत्त्वपूर्ण लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा खनिज, कुछ ही शक्तियों के प्रभुत्व में हैं।

    भारत की ऊर्जा कूटनीति का पुनर्संतुलन

    • स्रोतों का विविधीकरण:
      • पश्चिम एशिया पर निर्भरता कम करने के लिये अमेरिका, रूस, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका से तेल/LNG आयात का विस्तार।
      • उदाहरण: पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से रियायती कच्चे तेल के आयात में वृद्धि की।
    • दीर्घकालिक अनुबंध और इक्विटी हिस्सेदारी:
      • कतर LNG सौदे और वियतनाम, मोज़ाम्बिक व रूस में तेल ब्लॉकों में ONGC विदेश निवेश के माध्यम से आपूर्ति सुनिश्चित करना।
    • रणनीतिक भंडार और अवसंरचना को मज़बूत करना:
      • वर्तमान 39 MMT रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार केवल लगभग 9.5 दिनों के लिये ही पर्याप्त हैं; इसे 87 दिनों तक बढ़ाने का काम चल रहा है।
    • स्वच्छ ऊर्जा कूटनीति:
      • 120 से अधिक सदस्यों वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में नेतृत्व।
      • ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनने की महत्त्वाकांक्षा
    • महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारी:
      • लिथियम और कोबाल्ट आपूर्ति शृंखलाओं के लिये ऑस्ट्रेलिया, चिली और अफ्रीकी देशों के साथ सहयोग।
    • क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग:
      • महाशक्तियों के दबावों से बचाव के लिये क्वाड की स्वच्छ ऊर्जा पहलों और G20 ऊर्जा मंचों में भागीदारी।

    निष्कर्ष:

    महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के युग में, भारत की ऊर्जा कूटनीति में विविधीकरण, अवसंरचना की धारणीयता, नवीकरणीय ऊर्जा का अंगीकरण और क्षेत्रीय सहयोग को एकीकृत करने की आवश्यकता है। जैसा कि ऊर्जा विद्वान डैनियल येरगिन कहते हैं, “ऊर्जा सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा से अविभाज्य है।” — यह स्मरण कराता है कि भारत के आज के ऊर्जा विकल्प कल उसकी वैश्विक शक्ति स्थिति को आकार देंगे।