• प्रश्न :

    प्रश्न. “चंदेलों की स्थापत्यकला और मूर्तिकला की शैली उनकी संरचनात्मक परिपक्वता एवं कथात्मक गहनता दोनों को अभिव्यक्त करती है।” विवेचना कीजिये। (150 शब्द)

    15 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • चंदेल वंश का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • चंदेलों की स्थापत्यकला और मूर्तिकला परंपरा को रेखांकित कीजिये।
    • चंदेलों की स्थापत्यकला एवं मूर्तिकला की संरचनात्मक परिपक्वता और कथात्मक गहनता पर चर्चा कीजिये।
    • उनके निरंतर विरासत की प्रासंगिकता के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    चंदेल वंश (9वीं–13वीं शताब्दी ई.) ने बुंदेलखंड पर शासन करते हुए खजुराहो में मंदिर स्थापत्यकला की अद्वितीय कृतियों का संरक्षण किया, जिन्हें आज UNESCO विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। ये मंदिर न केवल नागर शैली की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करते हैं, बल्कि ये मध्यकालीन भारत की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को भी मूर्त रूप देते हैं, जहाँ तकनीकी निपुणता को शैलकृत गहन कथात्मक दृष्टि के साथ संतुलित किया गया।

    मुख्य भाग :

    संरचनात्मक परिष्कार

    • नागर शैली की विशेषताएँ: ऊँचे वेदिका-आधार (जगती), अक्षीय योजनाएँ तथा परिक्रमा पथों के साथ संधार डिज़ाइन।
    • जटिल विन्यास: गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा ऊँचे शिखरों का सुसंगठित संयोजन।
    • ऊर्ध्व भव्यता: पर्वत शृंखला के सदृश अनेक शिखरों का एक समूह (जैसे: कंदरिया महादेव मंदिर)।
    • अभियांत्रिक कौशल:
      • बिना गारे के सटीक शिल्प-कटाई और अंतःस्थापन तकनीक।
      • भार के प्रभावी वितरण हेतु कलात्मक रूप से बने कॉर्बेल्ड गुंबदों का प्रयोग।
    • सौंदर्यात्मक संतुलन: ऊर्ध्व गामिता और क्षैतिज प्रसार के बीच संतुलन, जिससे सघनता बनी रहती है, परंतु भव्यता कम नहीं होती।

    मूर्तिकला में कथात्मक गहनता

    • धार्मिक विषयवस्तु: देवताओं, पौराणिक कथाओं तथा महाकाव्य प्रसंगों का समृद्ध चित्रण।
    • कामुक प्रतिमाएँ (मिथुन मूर्तियाँ):
      • उर्वरता, शुभता और ब्रह्मांडीय संयोग का प्रतीक।
      • चार पुरुषार्थों में से एक के रूप में ‘काम’ का साकार रूप।
      • तांत्रिक प्रतीकवाद, जिसमें मानव और दैवीय का संगम दिखता है।
    • सामाजिक यथार्थवाद: नर्तकों-नर्तकियों, योद्धाओं, संगीतकारों और आम जन-जीवन का चित्रण, मंदिरों को मध्ययुगीन समाज के अभिलेखों के रूप में दर्शाता है।
    • दार्शनिक एकात्मता: मूर्तियाँ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक हैं, जो मंदिर को जीवन का एक सूक्ष्म रूप बनाती हैं।
    • कलात्मक विशेषताएँ: मनोहर मुद्राएँ, लयबद्ध गति, संवेदनशील प्रकृतिवाद और भावपूर्ण सूक्ष्मता; जो अलंकरण मात्र से कहीं अधिक को दर्शाती हैं।

    निष्कर्ष :

    चंदेल कला रूप संरचनात्मक सरलता और कथात्मक प्रतीकात्मकता के एक अद्वितीय संगम का प्रतिनिधित्व करता है। जैसा कि देवांगना देसाई ने अपनी पुस्तक ‘द रिलिजियस इमेजरी ऑफ खजुराहो’ में तर्क दिया है- कामुक मूर्तियाँ केवल अलंकरण नहीं हैं बल्कि प्रतीकात्मक, शुभ रूपांकन हैं जो गहन धार्मिक अर्थों से ओतप्रोत थीं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि चंदेल योगदान नागर स्थापत्यकला की पराकाष्ठा तथा भारत की आध्यात्मिक कल्पना का शाश्वत प्रमाण है।