• प्रश्न :

    केस स्टडी:

    अर्जुन एक IAS अधिकारी हैं जो एक पिछड़े ज़िले में जिला मजिस्ट्रेट (DM) के रूप में नियुक्त हैं। हाल ही में इस ज़िले को ‘आकांक्षी ज़िला’ घोषित किया गया है तथा इसे शिक्षा, स्वास्थ्य और अवसंरचना विकास हेतु विशेष निधि प्राप्त हो रही है।

    नियमित समीक्षा के दौरान अर्जुन को पता चलता है कि शिक्षा हेतु प्राप्त बड़ी राशि का एक हिस्सा मध्य-स्तरीय अधिकारियों द्वारा एक नये VIP गेस्ट हाउस के निर्माण में लगा दिया गया है। इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि मंत्रियों एवं वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के लगातार दौरे के लिये बेहतर आवास सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से ज़िले को अधिक ध्यान और परियोजनाएँ मिल सकेंगी।

    जब अर्जुन इस पर आपत्ति जताते हैं तो अधिकारी तर्क देते हैं कि:

    I. इस परियोजना को राजनीतिक समर्थन प्राप्त है और इसे रोकने से प्रभावशाली नेताओं की नाराज़गी हो सकती है।

    II. गेस्ट हाउस ‘तकनीकी दृष्टि से जनहित’ में है।

    II. इस दुरुपयोग को उजागर करने से राजनीतिक प्रतिशोध के कारण अन्य योजनाओं में विलंब हो सकता है।

    इसी बीच अर्जुन को स्थानीय नागरिक समाज समूहों से शिकायत मिलती है कि कई विद्यालयों में शौचालय, स्वच्छ पेयजल और शिक्षक जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। अर्जुन पाते हैं कि निधि का इस प्रकार दुरुपयोग जारी रहने पर बच्चों की शिक्षा प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगी तथा असमानता और भी बढ़ेगी।

    यदि वे इसका विरोध करते हैं तो राजनीतिक नेताओं से संबंध बिगड़ने, स्थानांतरण की संभावना और ज़िले में उनके कार्य की निरंतरता पर संकट उत्पन्न हो सकता है। यदि वे चुपचाप इसे स्वीकार कर लेते हैं तो बच्चों के मूल अधिकारों का हनन होगा।

    प्रश्न:

    A. इस प्रकरण में अर्जुन किन नैतिक दुविधाओं का सामना कर रहे हैं?

    B. यदि आप युवा लोक सेवकों को इस प्रकरण पर मार्गदर्शन दे रहे हों, तो ऐसी परिस्थितियों से निपटने हेतु आप किन नैतिक सिद्धांतों एवं नेतृत्व गुणों पर विशेष बल देंगे?

    C. प्रशासनिक यथार्थवाद और नैतिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाते हुए, अर्जुन के लिये सर्वाधिक उपयुक्त कार्रवाई क्या हो सकती है?

    12 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय:

    हाल ही में 'आकांक्षी ज़िला' के रूप में घोषित एक पिछड़े ज़िले में तैनात IAS अधिकारी अर्जुन को कार्यभार संभालने के बाद यह ज्ञात होता है कि शिक्षा के लिये निर्धारित धनराशि का दुरुपयोग कर उसे एक 'VIP गेस्ट हाउस' के निर्माण में लगाया जा रहा है। यह स्थिति अर्जुन के सामने एक गंभीर नैतिक द्वंद्व उत्पन्न करती है— एक ओर सुशासन और पारदर्शिता के सिद्धांतों को बनाए रखने का दायित्व है, तो दूसरी ओर राजनीतिक दबावों से निपटने की चुनौती। यदि निधि का दुरुपयोग जारी रहता है, तो बच्चों की शिक्षा प्रभावित होगी, जबकि इसका विरोध करने पर उन्हें प्रशासनिक और राजनीतिक प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ सकता है।

    मुख्य भाग:

    A. इस प्रकरण में अर्जुन किन नैतिक दुविधाओं का सामना कर रहे हैं?

    • जनहित बनाम राजनीतिक दबाव का संघर्ष:
      • शिक्षा के लिये आवंटित निधि को VIP गेस्ट हाउस के निर्माण में लगाना राजनीतिक नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को लाभ पहुँचा सकता है, परंतु यह बच्चों की शिक्षा को सीधे तौर पर नुकसान पहुँचाता है।
      • अर्जुन को यह निर्णय लेना है कि बच्चों के अधिकारों और जन कल्याण को प्राथमिकता देनी है या प्रशासनिक सुगमता के लिये राजनीतिक सद्भावना बनाए रखनी है।
    • अल्पकालिक प्रशासनिक सुविधा बनाम दीर्घकालिक नैतिक दायित्व:
      • यदि अर्जुन वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव में आकर इस दुरुपयोग को स्वीकार कर लेते हैं, तो उन्हें तत्कालिक राजनीतिक संघर्ष से बचने और अन्य परियोजनाओं के सुचारु संचालन की सुविधा मिल सकती है।
      • परंतु यह नैतिक शासन से समझौता करता है और सार्वजनिक धन के ज़िम्मेदार उपयोग के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जिससे दीर्घकालिक सामाजिक विकास प्रभावित होता है।
    • विधि का शासन बनाम तात्कालिक सुविधा:
      • धन के दुरुपयोग को रोकना कानूनी और संवैधानिक कर्त्तव्य (शिक्षा के लिये निर्धारित धन का उपयोग शिक्षा के लिये ही किया जाना चाहिये) के अनुरूप है।
      • दूसरी ओर, राजनीतिक सुविधा के लिये इस उल्लंघन की अनदेखी करना न्याय और विधिसम्मत शासन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर प्रश्न उठाता है तथा भ्रष्टाचार का प्रेरक बनाता है।
    • समानता और सामाजिक न्याय बनाम प्रतिशोध का भय:
      • शिक्षा हेतु निधि का दुरुपयोग पिछड़े ज़िले के बच्चों के साथ अन्याय है और इससे शैक्षणिक असमानता बढ़ती है।
      • किंतु यदि अर्जुन इसका विरोध करते हैं, तो उन्हें स्थानांतरण, पदोन्नति में बाधा या अन्य प्रशासनिक प्रतिशोध का सामना करना पड़ सकता है। यह व्यक्तिगत नैतिक साहस के लिये एक चुनौती है।
    • उत्तरदायित्व की नैतिकता बनाम व्यावहारिकता:
      • यदि अर्जुन परियोजना को रोकते हैं या इसकी रिपोर्ट करते हैं, तो यह पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की दिशा में कदम होगा।
      • जबकि केवल प्रशासनिक शांति बनाये रखने के लिये चुप रहना व्यावहारिक दृष्टि से सुविधाजनक तो हो सकता है, पर यह समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग— बच्चों के प्रति उनके नैतिक कर्त्तव्य का उल्लंघन होगा।

    B. यदि आप युवा लोक सेवकों को इस प्रकरण पर मार्गदर्शन दे रहे हों तो ऐसी परिस्थितियों से निपटने हेतु आप किन नैतिक सिद्धांतों एवं नेतृत्व गुणों पर विशेष बल देंगे?

    नैतिक सिद्धांत:

    • सत्यनिष्ठा: अधिकारियों को सत्यनिष्ठ होकर कार्य करना चाहिये और गेस्ट हाउस के लिये प्राप्त राजनीतिक समर्थन की परवाह किये बिना शिक्षा निधि के दुरुपयोग का विरोध करना चाहिये।
    • जनहित और सामाजिक न्याय: प्राथमिक कर्त्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि पिछड़े ज़िलों के बच्चों को उचित शिक्षा, स्वच्छ पेयजल और बुनियादी सुविधाएँ प्राप्त हों।
    • उत्तरदायित्व और पारदर्शिता: धन के दुरुपयोग की जाँच होनी चाहिये और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये निर्णयों का दस्तावेजीकरण किया जाना चाहिये।
    • विधि का शासन: शिक्षा के लिये आवंटित धन का उपयोग इसी उद्देश्य के लिये किया जाना चाहिये; सुविधा के लिये नियमों को तोड़ना सुशासन की भावना को कमज़ोर करता है।
    • साहस और नैतिक दृढ़ता: संभावित व्यक्तिगत या कॅरियर संबंधी जोखिमों के बावजूद, मध्यम स्तर के अधिकारियों और राजनीतिक दबाव के विरुद्ध खड़ा होना, नैतिक नेतृत्व को दर्शाता है।

    नेतृत्व गुण:

    • जनकेंद्रित निर्णय (Citizen-Centric Decision-Making): प्रशासनिक सुविधा या राजनीतिक लाभ के बजाय विद्यार्थियों और समाज के दीर्घकालिक कल्याण को प्राथमिकता देना।
    • साहसपूर्ण संवाद (Courageous Communication): राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों के साथ विवेकपूर्ण संवाद के माध्यम से निधि के सही उपयोग की दिशा में सहमति बनाना।
    • संघर्ष में धैर्य (Resilience): स्थानांतरण या प्रतिशोध जैसी परिस्थितियों में भी नैतिक मानकों को बनाए रखना।
    • दूरदर्शी नेतृत्व (Visionary Leadership): अल्पकालिक राजनीतिक लाभों के बजाय शिक्षा और सामाजिक विकास की दीर्घकालिक दृष्टि रखना।

    C. प्रशासनिक यथार्थवाद और नैतिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाते हुए, अर्जुन के लिये सर्वाधिक उपयुक्त कार्रवाई क्या हो सकती है?

    • निधि का उद्देश्यपरक उपयोग सुनिश्चित करना (Ensure Funds Serve Their Intended Purpose): शौचालय, स्वच्छ पेयजल, शिक्षकों और शिक्षण संसाधनों जैसी महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं के लिये शिक्षा निधि के आवंटन को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जिससे बच्चों के शिक्षा के मूल अधिकार की रक्षा हो।
    • प्रमाण-आधारित प्रस्तुति: शैक्षिक परिणामों पर धन के विचलन के प्रतिकूल प्रभाव को दर्शाने वाली एक डेटा-आधारित रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिये। निधि के दुरुपयोग से शिक्षा पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का डेटा-आधारित विश्लेषण तैयार कर वरिष्ठ अधिकारियों और नीति-निर्माताओं के समक्ष रखना चाहिये। जिससे अनावश्यक राजनीतिक टकराव के बिना नैतिक संवाद स्थापित हो सके।
      • अनावश्यक राजनीतिक टकराव उत्पन्न किये बिना वरिष्ठ अधिकारियों और संबंधित हितधारकों को शामिल करने के लिये इस रिपोर्ट का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • राजनयिक हितधारक सहभागिता (Diplomatic Stakeholder Engagement): स्थानीय नागरिक संगठनों, विद्यालय प्रबंधन समितियों तथा प्रभावशाली राजनीतिक व्यक्तियों को सम्मिलित कर निधि के नैतिक उपयोग के लिये सामूहिक सहमति बनानी चाहिये।
      • इस विमर्श को संघर्ष के बजाय दीर्घकालिक ज़िला विकास और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
    • विधिक और नीतिगत साधनों का उपयोग (Leverage Legal and Policy Instruments): दुरुपयोग रोकने के औचित्य के लिये आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, वित्तीय नियमों और शिक्षा का अधिकार अधिनियम का हवाला दें। आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, वित्तीय नियमावली और शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) का हवाला देकर निधि के दुरुपयोग को रोकने का औचित्य प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
      • VIP आवास के लिये ऐसे वैकल्पिक समाधान प्रस्तावित किये जाने चाहिये जो आवश्यक सेवाओं से समझौता न करते हों।
    • प्रशासनिक विश्वसनीयता की रक्षा (Protect Administrative Credibility): सभी निर्णयों का विधिवत दस्तावेज़ीकरण, औपचारिक रिपोर्टिंग और पारदर्शिता बनाये रखना आवश्यक है। ताकि नैतिक उत्तरदायित्व भी सुनिश्चित हो और व्यक्तिगत जोखिम भी न्यूनतम रहे।
    • यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक जोखिम को कम करते हुए नैतिक अनुपालन सुनिश्चित करता है।

    निष्कर्ष:

    अर्जुन को सत्यनिष्ठा और लोक-कर्त्तव्य की भावना के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि शिक्षा निधि का उपयोग उसी उद्देश्य के लिये हो जिसके लिये वह निर्धारित की गयी है। जब वे राजनीतिक सुविधा के बजाय बच्चों के कल्याण को प्राथमिकता देते हैं, तो वे “लोकहित को व्यक्तिगत अथवा राजनीतिक लाभ से ऊपर रखने” की नैतिक भावना का परिचय देते हैं। इस प्रकार अर्जुन का आचरण यह सिद्ध करता है कि नैतिक नेतृत्व न केवल शासन की विश्वसनीयता को सुदृढ़ करता है, बल्कि दीर्घकालिक सामाजिक विकास और जनविश्वास की आधारशिला भी बनता है।