• प्रश्न :

    प्रश्न. क्या कर्त्तव्य का कठोर पालन कभी करुणा पर हावी हो सकता है? कांट के नैतिक सिद्धांत और लोक प्रशासन के संदर्भ में विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    11 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • कर्त्तव्य और करुणा के बीच के द्वंद्व के संबंध में संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • कांटियन नैतिकता परिप्रेक्ष्य (Kantian Ethics Perspective) का गहन अध्ययन कीजिये।
    • लोक प्रशासन परिप्रेक्ष्य का गहन अध्ययन कीजिये।
    • संक्षेप में समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    कर्त्तव्य और करुणा के बीच का द्वंद्व दर्शन और शासन दोनों में बार-बार उभरता है। इमैनुअल कांट की कर्त्तव्यवादी (Deontological) नीतिमीमांसा सार्वभौमिक नैतिक नियम (Categorical Imperative/निरपेक्ष आदेश) के आधार पर कर्त्तव्य के बिना शर्त पालन पर बल देती है, जबकि लोक प्रशासन प्रायः नियम-आधारित आचरण और नागरिकों के प्रति मानवीय संवेदनशीलता के बीच संतुलन की अपेक्षा करता है।

    मुख्य भाग:

    कांट की नीतिमीमांसा दृष्टिकोण (Kantian Ethics Perspective)

    • कर्त्तव्य की प्रधानता:
      • कांट के अनुसार, नैतिक मूल्य केवल तभी उत्पन्न होता है जब कर्म कर्त्तव्य के मार्गदर्शन में हों, न कि करुणा जैसी भावनाओं से।
      • उदाहरण: सत्य बोलना अनिवार्य है, भले ही असत्य बोलने से किसी की जान बचाई जा सके, क्योंकि सत्य एक निरपेक्ष आदेश (Categorical Imperative) है।
    • करुणा द्वितीयक:
      • करुणा, जो भावनाओं पर आधारित होती है, सार्वभौमिकता से वंचित है।
      • अतः कांट की नीतिमीमांसा में, यदि कर्त्तव्य और करुणा में द्वंद हो, तो कर्त्तव्य को प्राथमिकता दी जा सकती है।

    लोक प्रशासन दृष्टिकोण

    • कर्त्तव्य की भूमिका:
      • सिविल सेवक संविधान, विधि और आचार संहिता से बंधित होते हैं। कठोर कर्त्तव्य पालन निष्पक्षता, स्थिरता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
      • उदाहरण: अयोग्य आवेदक को उनकी कठिनाई के बावजूद कल्याणकारी लाभ से वंचित करना, ताकि निष्पक्षता और वैधता को बनाए रखा जा सके।
    • करुणा की भूमिका:
      • करुणा नागरिक-केंद्रित शासन का अभिन्न हिस्सा है। जैसे सर्वशिक्षा अधिकार अधिनियम या आयुष्मान भारत जैसी नीतियाँ कानूनी ढाँचों के भीतर करुणा की भावना को प्रतिबिंबित करती हैं।
      • नियमों के कठोर पालन में अति करने से अन्याय, अलगाव और शासन में विश्वास के क्षरण जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • दोनों में संतुलन:
      • नोलन समिति के सिद्धांत (वस्तुनिष्ठता, सत्यनिष्ठा, जवाबदेही) कर्त्तव्य के कठोर पालन की आवश्यकता बताते हैं।
      • किंतु मिशन कर्मयोगी और सेवोत्तम मॉडल जैसी पहलें समानुभूति और संवेदनशीलता पर ज़ोर देती हैं।
      • प्रशासनिक नैतिकता एक व्यावहारिक मध्य मार्ग सुझाती है, जहाँ कर्त्तव्य मार्गदर्शक सिद्धांत होता है, लेकिन करुणा इसके पालन में संतुलन बनाए रखती है।

    समालोचनात्मक विश्लेषण

    • कर्त्तव्य की करुणा पर प्राथमिकता के लाभ: नियमों का पालन सुनिश्चित करना, मनमानी रोकना, समानता की रक्षा करना।
    • अत्यधिक कर्त्तव्य के जोखिम: यह यांत्रिक शासन और “रेड-टैपिज़्म” की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
    • करुणा की भूमिका: कर्त्तव्य की व्याख्या को मानवीय और संदर्भ-संवेदनशील दृष्टिकोण से देखने का सुधारात्मक साधन प्रदान करती है।

    निष्कर्ष

    जहाँ कांटियन नीतिमीमांसा में कर्त्तव्य को करुणा पर प्राथमिकता दी जाती है, वहीं आधुनिक लोक प्रशासन में दोनों का संतुलन आवश्यक है: कर्त्तव्य संरचना प्रदान करता है, जबकि करुणा संवेदनशीलता सुनिश्चित करती है। एक जिम्मेदार सिविल सेवक को कानून और कर्त्तव्य की संरचना में कार्य करना चाहिये किंतु उन्हें करुणा के साथ व्याख्यायित और लागू करना चाहिये, जिससे दक्षता और समानुभूति का सामंजस्य स्थापित हो।