उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- BRICS का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- ग्लोबल साउथ के सामूहिक प्रतिनिधित्व के रूप में BRICS की सफलताओं और इसकी सीमाओं की विवेचना कीजिये।
- BRICS में भारत की भागीदारी को मज़बूत करने की आवश्यकता को रेखांकित कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
BRICS उभरती अर्थव्यवस्थाओं के एक प्रमुख, किंतु जटिल गठबंधन के रूप में विकसित हुआ है, जो स्वयं को पश्चिमी प्रभुत्व वाली वैश्विक व्यवस्था के विरुद्ध ग्लोबल साउथ की सामूहिक आवाज़ के रूप में प्रस्तुत करता है।
“Strengthening Global South Cooperation and Promoting a More Inclusive and Sustainable Global Governance” (अर्थात् ग्लोबल साउथ सहयोग को मज़बूत करने और अधिक समावेशी एवं सतत् वैश्विक शासन को बढ़ावा देना) 17वें BRICS शिखर सम्मेलन ने इसी विषय पर आयोजित दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित किया।
- मुख्य भाग:
- ग्लोबल साउथ की सामूहिक आवाज़ के रूप में BRICS विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये एक प्रभावशाली मंच के रूप में उभरा है, फिर भी इसकी एकता और प्रभावशीलता मिश्रित रही है।
- ग्लोबल साउथ के सामूहिक प्रतिनिधित्व के रूप में BRICS की सफलताएँ:
- वैकल्पिक वित्त: न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और कंटिंजेंट रिज़र्व अरेंजमेंट (CRA) जैसी व्यवस्थाएँ, पश्चिमी प्रभुत्व वाले संस्थानों, जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एवं विश्व बैंक के विकल्प प्रस्तुत करती हैं। ये संस्थाएँ सतत् विकास के लिये वित्त उपलब्ध कराती हैं तथा चलनिधि (Liquidity) सुनिश्चित करती हैं।
- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने व्यापक वि-डॉलरीकरण के प्रयास के एक भाग के रूप में BRICS रिज़र्व करेंसी सर्जन पर चर्चा की है।
- एजेंडा-निर्धारण की क्षमता: BRICS देशों ने ग्लोबल साउथ की मांगों को प्रमुखता से उठाया है, जिनमें वैश्विक शासन संस्थाओं (जैसे: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) में सुधार करना और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अधिक प्रतिनिधित्व देना शामिल है।
- हाल की विस्तार प्रक्रिया: मिस्र, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे नये देशों के जुड़ने से BRICS का जनांकिक एवं आर्थिक भार बढ़ा है, जिससे इसे व्यापक ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधि होने का आधार और अधिक मज़बूत होता है।
- ग्लोबल साउथ के सामूहिक प्रतिनिधित्व के रूप में BRICS की सीमाएँ:
- आंतरिक विभाजन: भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, विशेषकर भारत-चीन सीमा विवाद, आपसी भरोसे की कमी को गहरा करती है और सामूहिक कार्रवाई में बाधा डालती है।
- चीन का प्रभुत्व: चीन की विशाल आर्थिक शक्ति असममित शक्ति संतुलन और निर्णय प्रक्रिया पर उसके प्रभाव को लेकर चिंता उत्पन्न करती है, जिससे समान एवं न्यायसंगत निर्णय लेना कठिन हो जाता है।
- परस्पर विरोधी हित: सदस्य देशों की विदेश नीति के रुख अलग-अलग हैं, भारत की बहु-संरेखित (multi-aligned) नीति चीन और रूस के अधिक मतभेद वाले रुख के विपरीत है।
- भारत की BRICS भागीदारी को मज़बूत करना: भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए आर्थिक सहयोग और बहुपक्षीय सुधार को प्राथमिकता देने वाली व्यावहारिक रणनीति अपनाकर BRICS में अपनी भूमिका को मज़बूत कर सकता है।
- मुद्दा-आधारित आर्थिक सहयोग का विस्तार:
- व्यापार विविधीकरण: ब्राज़ील जैसे वस्तु-समृद्ध सदस्यों और संयुक्त अरब अमीरात जैसे ऊर्जा उत्पादकों के साथ संबंधों को मज़बूत करके, विशेष रूप से चीन के साथ व्यापार असंतुलन को ठीक करने के लिये विस्तारित BRICS मंच का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
- तकनीकी नेतृत्व: प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) में सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जहाँ भारत तुलनात्मक रूप से लाभ में है।
- BRICS में UPI मॉडल को बढ़ावा देने से अंतर-समूह डिजिटल व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है।
- स्थानीय मुद्रा व्यापार: अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिये स्थानीय मुद्राओं में व्यापार की पहलों का सक्रिय रूप से समर्थन किया जाना चाहिये, जिससे भारत और उसके सहयोगियों (जैसे: रुपया-रूबल समझौते) के लिये वित्तीय लचीलापन बढ़े।
- संस्थागत तंत्रों को मज़बूत करना:
- संस्थागत सुधार: समान निर्णय लेने को सुनिश्चित करने और किसी एक सदस्य के वर्चस्व को रोकने के लिये, स्पष्ट सदस्यता मानदंड निर्धारित करने तथा NDB को मज़बूत करने जैसे दृढ़ संस्थागत सुधारों की अनुशंसा की जानी चाहिये।
- जन-जन संबंध: सदस्य देशों के बीच दीर्घकालिक सद्भावना और आपसी समझ बनाने के लिये शैक्षणिक आदान-प्रदान, पर्यटन एवं सांस्कृतिक पहलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
हालाँकि BRICS ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व करने में आंशिक रूप से सफल रहा है, फिर भी आंतरिक मतभेद इसकी पूरी क्षमता को सीमित कर देते हैं। भारत कूटनीति का लाभ उठाकर, सामंजस्य को बढ़ावा देकर, नवाचार को प्रोत्साहन देकर तथा साझा हितों की अनुशंसा करके एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है, जिससे अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं से समझौता किये बिना समूह को मज़बूती मिल सके।