• प्रश्न :

    प्रश्न 1. क्या तटबंध और बाँध (Embankments) जैसे संरचनात्मक उपाय बाढ़ की दीर्घकालिक समस्या का समाधान प्रदान करते हैं, अथवा वे नई सुभेद्यताएँ उत्पन्न कर देते हैं? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    03 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में बाढ़ की संवेदनशीलता के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए उत्तर लिखिये।
    • संरचनात्मक हस्तक्षेपों से प्राप्त लाभों और उभरती कमज़ोरियों एवं चुनौतियों का गहन विश्लेषण कीजिये।
    • सतत् बाढ़ प्रबंधन की दिशा में आगे की राह के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं, प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    बाढ़ भारत की सबसे आवर्ती और विनाशकारी आपदाओं में से एक है, जिसका हालिया उदाहरण पंजाब में आई बाढ़ है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, देश में 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र बाढ़ संभावित क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

    तटबंधों और बाँधों जैसे संरचनात्मक उपाय लंबे समय से भारत की बाढ़ प्रबंधन रणनीति का मुख्य आधार रहे हैं। यद्यपि ये त्वरित राहत और कुछ सहायक लाभ प्रदान करते हैं, परंतु इनकी दीर्घकालिक स्थायित्व एवं प्रभावशीलता पर गंभीर प्रश्न उठते रहे हैं।

    मुख्य भाग:

    संरचनात्मक हस्तक्षेप के लाभ:

    • बाढ़ नियंत्रण और संरक्षण: हीराकुंड (महानदी) और भाखड़ा-नांगल (सतलज-व्यास) जैसे बाँधों ने निचले इलाकों में बाढ़ के चरम स्तर को कम कर दिया है।
    • बहुउद्देशीय लाभ: जल विद्युत, सिंचाई और जल आपूर्ति से वर्ष भर लाभ सुनिश्चित होता है।
      • सूखा निवारण में सहायता और कृषि को स्थिर करना।
    • घनी बस्तियों के लिये महत्त्वपूर्ण बफर्स: शहरी क्षेत्रों या कस्बों में तटबंध और रिंग बंड उन परिसंपत्तियों की सुरक्षा करते हैं, जहाँ पीछे हटना संभव या व्यावहारिक नहीं होता।
    • मनोवैज्ञानिक आश्वासन और आर्थिक विकास: सुरक्षा की धारणा बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे में निवेश को प्रोत्साहित करती है।

    उभरती कमज़ोरियाँ और चुनौतियाँ:

    • तटबंध प्रभाव और विनाशकारी जोखिम: तटबंध संरक्षित बाढ़ के मैदानों में अतिक्रमण को बढ़ावा देते हैं, जब वे टूट जाते हैं, तो नुकसान अत्यधिक होता है।
      • कुसहा (नेपाल) के निकट कोसी नदी के तटबंध के टूटने (2008) से उत्तर बिहार का विशाल क्षेत्र जलमग्न हो गया, जबकि राज्य में 3,000 किलोमीटर से अधिक लंबे तटबंध हैं।
    • गाद जमाव और तल वृद्धि: नदियों को सीमित करने से उनमें गाद जमाव बढ़ जाता है, जिससे नदी का तल (जैसे- ब्रह्मपुत्र में) ऊँचा हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप तटबंधों को और ऊँचा करना पड़ता है तथा तटबंधों के पीछे जल निकासी में बाधा उत्पन्न होती है।
    • परिचालन संबंधी जोखिम: संरचनात्मक हस्तक्षेप, यद्यपि सुरक्षा के लिये डिज़ाइन किये गए हैं, अक्सर परिचालन संबंधी चुनौतियों और जोखिमों का सामना करते हैं।
      • खराब समन्वय, अपर्याप्त बाँध नियम वक्र तथा अप्रत्याशित अपस्ट्रीम घटनाएँ (जैसे- GLOF या बादल फटना) बाढ़ को कम करने के बजाय उसे और बढ़ा सकती हैं।
        • उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में दक्षिण ल्होनक झील से हिमनद झील के प्रस्फुटन के कारण अचानक बाढ़ आई, जिसने चुंगथांग बाँध को क्षतिग्रस्त कर दिया और निचले इलाकों में गंभीर क्षति पहुँचाई। यह घटना उच्च हिमालय में बढ़ते भौगोलिक और जल-प्रबंधन संबंधी खतरों को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
    • बाँधों के नीचे तलछट की कमी: तलछट के अवरोध से डेल्टा और नदी के किनारे (जैसे- गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और गोदावरी डेल्टा) का क्षरण होता है, जिससे उछाल/बाढ़ की आशंका बढ़ जाती है।
    • सामाजिक-पारिस्थितिक लागत: बड़े पैमाने पर संरचनात्मक हस्तक्षेप अक्सर दीर्घकालिक सामाजिक और पर्यावरणीय बाह्य प्रभाव उत्पन्न करते हैं जो समुत्थानशीलता को मज़बूत करने के बजाय उसे कमज़ोर कर देते हैं।
      • बाँधों के कारण गाँव जलमग्न हो जाते हैं, जनजातीय और हाशिये पर पड़े समूह विस्थापित हो जाते हैं, जिससे आजीविका का नुकसान होता है एवं सामाजिक असंतोष उत्पन्न होता है।
        • उदाहरण: पुनर्वास प्रयासों के बावजूद सरदार सरोवर बाँध के कारण लगभग 40,000 परिवार विस्थापित हो गए।

    सतत् बाढ़ प्रबंधन की ओर:

    • हाइब्रिड बाढ़ प्रबंधन: संरचनात्मक उपायों (जैसे- बाँध और तटबंध) को गैर-संरचनात्मक उपायों (जैसे- बाढ़ क्षेत्रीकरण, बीमा, पूर्व चेतावनी) के साथ संयोजित किया जाना चाहिये। इससे अल्पकालिक सुरक्षा के साथ-साथ दीर्घकालिक अनुकूलन भी सुनिश्चित होता है।
    • जलवायु-अनुकूल डिज़ाइन: जलवायु परिवर्तन के कारण तीव्र होती चरम स्थितियों के अनुरूप बाढ़ मानकों, जलाशय संचालन प्रोटोकॉल और नियम वक्रों के डिज़ाइन को अद्यतन करना चाहिये।
      • बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021 ऑडिट के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, लेकिन सक्रिय जलवायु एकीकरण की आवश्यकता है।
    • प्रकृति-आधारित समाधान: अतिरिक्त जल को अवशोषित करने और जलभृतों को पुनर्भरित करने के लिये आर्द्रभूमि, मैंग्रोव एवं प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों को बफर के रूप में पुनर्स्थापित करना चाहिये।
      • नदियों को जगह देने के लिये निरंतर तटबंधों के स्थान पर सेटबैक तटबंधों को अपनाना चाहिये।
      • भारत नीदरलैंड के "नदी के लिये जगह" कार्यक्रम से सीख सकता है।
    • तलछट-स्मार्ट प्रबंधन: जलाशयों और नदी तलों में गाद जमाव को कम करने के लिये स्लुइसिंग, तलछट बाईपास एवं समय-समय पर गाद हटाने का तरीका अपनाना चाहिये। तटबंधों के पीछे नदी तल के ऊँचा होने से बचने के लिये तटबंधों का डिज़ाइन नदी की आकृति विज्ञान के अनुरूप होना चाहिये।
    • प्रौद्योगिकी और पूर्व चेतावनी प्रणालियों का उपयोग: समय पर निकासी और जोखिम में कमी के लिये एआई-आधारित बाढ़ पूर्वानुमान, उपग्रह निगरानी एवं मोबाइल-आधारित अलर्ट तैनात करना चाहिये।
    • समुदाय-आधारित शासन: तटबंध की निगरानी, रखरखाव और जल निकासी योजना में स्थानीय समुदायों को सम्मिलित करना एवं इसे अंतिम सीमा तक पूरी तरह तैयार रखना सुनिश्चित करना।
      • पंचायतों, स्वयं सहायता समूहों और आपदा स्वयंसेवकों के माध्यम से क्षमता निर्माण करना चाहिये।

    निष्कर्ष

    संरचनात्मक हस्तक्षेप आवश्यक हैं, किंतु पर्याप्त नहीं। आगे का मार्ग एकीकृत बाढ़ प्रबंधन में निहित है, जिसमें सुव्यवस्थित बाँध और तटबंध के साथ-साथ पारिस्थितिक पुनर्स्थापन, जोखिम क्षेत्रीकरण एवं अनुकूल समुदाय शामिल हों।