• प्रश्न :

    प्रश्न. “नार्को-टेररिज़्म युवाओं के विरुद्ध एक मौन युद्ध है।” नार्को-टेररिज़्म भारत की जनांकिकीय लाभांश को किस प्रकार प्रभावित करता है, इसका विश्लेषण कीजिये। साथ ही, युवाओं को इस संकट से बचाने के लिये निवारक तथा पुनर्वासात्मक उपायों का भी सुझाव दीजिये।
    (250 शब्द)

    20 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नार्को-टेररिज़्म को परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • विश्लेषण कीजिये कि नार्को-टेररिज़्म भारत के जनांकिकीय लाभांश को किस प्रकार प्रभावित करता है।युवा आबादी को इस खतरे से बचाने के लिये निवारक और पुनर्वास उपायों को प्रस्तावित कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये

    परिचय:

    नार्को-टेररिज़्म मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों के बीच गठजोड़ को संदर्भित करता है, जहाँ मादक पदार्थों से प्राप्त आय चरमपंथी नेटवर्क को वित्तपोषित करती है। भारत में, इसका प्रभाव विशेष रूप से युवाओं पर गंभीर है, जो देश के जनांकिकीय लाभांश को कमज़ोर (जिसे UNFPA ने कार्यशील आयु वर्ग की अधिक आबादी से संभावित आर्थिक वृद्धि के रूप में परिभाषित किया है) करता है। भारत की 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु वर्ग की है, इसलिये नार्को-टेररिज़्म न केवल स्वास्थ्य और उत्पादकता को कमज़ोर करता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी गंभीर खतरे उत्पन्न करता है।

    मुख्य भाग:

    भारत में मादक पदार्थ-आतंकवाद

    • भू-रणनीतिक कमज़ोरियाँ:
      • गोल्डन क्रीसेंट (अफगानिस्तान-पाकिस्तान-ईरान) और गोल्डन ट्राइएंगल (म्याँमार-लाओस-थाईलैंड) भारत को अत्यधिक सुभेद्य बनाते हैं।
      • पंजाब, मणिपुर, असम और तटीय राज्यों में सिंथेटिक ड्रग्स का प्रवाह होता है।
    • आतंकवाद का वित्तपोषण:
      • मादक पदार्थों का व्यापार तालिबान, ISI समर्थित समूहों और पूर्वोत्तर में विद्रोही समूहों जैसे आतंकवादी संगठनों को पोषित करता है।
      • UNODC का कहना है कि वैश्विक स्तर पर मादक पदार्थों की तस्करी से सालाना 320 अरब डॉलर की आय होती है, जिसका एक हिस्सा आतंकवाद को बढ़ावा देता है।
    • भेद्य लक्ष्य के रूप में युवा वर्ग:
      • बढ़ता शहरी तनाव, बेरोज़गारी और साथियों का दबाव युवाओं को मादक पदार्थों के संपर्क में लाता है।
      • वर्ष 2012 से 2022 तक दर्ज किये गए नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज़ (NDPS) के मामलों की संख्या में लगभग 70% की वृद्धि हुई है।

    भारत के जनांकिकीय लाभांश पर प्रभाव

    • स्वास्थ्य संकट:
      • भारत में 1 करोड़ से अधिक नशा करने वाले लोग हैं (AIIM सर्वेक्षण- 2019)।
      • HIV, हेपेटाइटिस और मानसिक विकारों के बढ़ते मामले स्वस्थ कार्यबल को कम कर रहे हैं।
    • आर्थिक नुकसान:
      • उत्पादकता में कमी, अनुपस्थिति और स्वास्थ्य सेवा का बोझ।
      • विश्व बैंक का अनुमान है कि विकासशील देशों में मादक पदार्थों के दुरुपयोग से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सालाना 2% तक की गिरावट आती है।
    • सामाजिक विघटन:
      • मादक पदार्थों का दुरुपयोग अपराध, घरेलू हिंसा और किशोर अपराध को बढ़ावा देता है।
      • पारिवारिक संरचना और सामुदायिक विश्वास को कमज़ोर करता है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा:
      • नार्को-मनी (मादक पदार्थों से अर्जित अवैध धन) आतंकवादी अवसंरचनाओं को सुदृढ़ करता है, जिससे विधि-व्यवस्था कमज़ोर होती है।
      • मादक पदार्थों के मार्ग हथियारों की तस्करी से जुड़े हैं, जिससे आंतरिक सुरक्षा को खतरा है।

    निवारक उपाय

    • सीमा प्रबंधन को मज़बूत करना:
      • स्मार्ट फेंसिंग, सर्विलांस ड्रोन और पड़ोसी देशों के साथ संयुक्त कार्य बल।
      • SAARC ड्रग ऑफेंसेज़ मॉनिटरिंग डेस्क के अंतर्गत क्षेत्रीय सहयोग।
    • सख़्त विधि प्रवर्तन:
      • फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स के साथ NDPS अधिनियम, 1985 का पूर्ण कार्यान्वयन।
      • डार्कनेट और क्रिप्टोकरेंसी-आधारित मादक पदार्थों के व्यापार पर नकेल कसना।
    • शिक्षा और जागरूकता
      • मादक पदार्थों के दुरुपयोग पर पाठ्यक्रम-आधारित संवेदनशीलता।
      • प्रभावशाली लोगों को शामिल करते हुए ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ जैसे सोशल मीडिया अभियानों का संचालन।

    पुनर्वास उपाय

    • समुदाय-केंद्रित नशामुक्ति कार्यक्रम:
      • विशेष रूप से पंजाब जैसे उच्च जोखिम वाले राज्यों में सुलभ पुनर्वास केंद्र।
      • गैर-सरकारी संगठनों और धर्म-आधारित संगठनों की भागीदारी।
    • कौशल विकास और रोज़गार सृजन:
      • स्किल इंडिया और स्टार्ट-अप प्रोत्साहनों के माध्यम से युवाओं के लिये रचनात्मक विकल्प प्रदान करना।
    • मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सहायता:
      • स्कूलों, कार्यस्थलों और समुदायों में परामर्श।
      • नशेड़ियों को अपराधी बनाने के बजाय सहानुभूति-आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।

    नैतिक और नीतिगत आयाम

    • स्वास्थ्य का अधिकार: नशे को एक बीमारी के रूप में पहचान की जानी चाहिये, न कि अपराध के रूप में।
    • युवा मानव पूंजी के रूप में: युवाओं की सुरक्षा भावी पीढ़ियों के लिये न्याय सुनिश्चित करती है।
    • शासन में सत्यनिष्ठा: विधि प्रवर्तन अधिकरणों में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना महत्त्वपूर्ण है।

    निष्कर्ष:

    नार्को-टेररिज़्म भारत के जनांकिकीय लाभांश को कम करता है और चरमपंथी ताकतों को सशक्त बनाता है। जैसा कि सामाजिक न्याय पर स्थायी समिति (2019) और NDPS पर राष्ट्रीय नीति (2012) द्वारा आग्रह किया गया है, नशामुक्ति, जागरूकता एवं पुनर्वास को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। नशामुक्त युवा भारत की सुरक्षा और प्रगति का सबसे मज़बूत स्तंभ है।