प्रश्न. “देखभाल कार्य अर्थव्यवस्था का अदृश्य ढाँचा है।” देखभाल कार्य को मान्यता देने और उसे एकीकृत करने से श्रम बाज़ारों में किस प्रकार बदलाव लाया जा सकता है तथा महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) किस प्रकार बढ़ सकती है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- देखभाल कार्य और उसकी आर्थिक अदृश्यता को परिभाषित कीजिये।
- व्याख्या कीजिये कि समावेशी श्रम बाज़ारों के लिये देखभाल कार्य को मान्यता देना किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
देखभाल कार्य—चाहे वह अवैतनिक हो (जैसे: घरेलू कामकाज़, बच्चों का पालन-पोषण, बुज़ुर्गों की देखभाल) या वेतनभोगी हो (जैसे: घरेलू कामगार, केयरगिवर, नर्स)—अर्थव्यवस्था की छिपी हुई रीढ़ हैं। फिर भी, श्रम सांख्यिकी में इसे कम करके आँका जाता है और यह अदृश्य बना हुआ है। भारत में महिलाएँ प्रतिदिन औसतन 299 मिनट अवैतनिक देखभाल कार्य में व्यतीत करती हैं, जबकि पुरुष केवल 97 मिनट (NSSO समय उपयोग सर्वेक्षण, 2019)। यह असंतुलन प्रत्यक्ष रूप से महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) को प्रभावित करता है, जो वर्ष 2023-24 में केवल 41.7% है (PLFS)।
मुख्य भाग:
अदृश्य ढाँचे के रूप में देखभाल कार्य
- आर्थिक अदृश्यता: मानव पूँजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता होने के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद से बाहर रखा गया।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) (2018) के अनुसार, विश्व भर में 76.2% अवैतनिक देखभाल कार्य महिलाएँ करती हैं और यदि इसे मुद्रीकृत किया जाए तो यह सालाना लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर का योगदान दे सकता है।
- उत्पादकता का आधार: परिवारों को सहारा देकर पुरुष-प्रधान औपचारिक कार्यबल में भागीदारी को सक्षम बनाता है।
- मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के अवैतनिक कार्य को कम करने और समान भागीदारी सुनिश्चित करने से वर्ष 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 770 बिलियन डॉलर की वृद्धि हो सकती है।
- लिंग आधारित आयाम: इसे महिलाओं का ‘स्वाभाविक कर्त्तव्य’ माना जाता है, जो रूढ़िवादिता को मज़बूत करता है तथा श्रम बाज़ार में उनके प्रवेश को सीमित करता है।
- ILO का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक देखभाल अर्थव्यवस्था में वैश्विक स्तर पर 475 मिलियन नौकरियों का सृजन हो सकता है।
मान्यता: देखभाल कार्य श्रम बाज़ारों को नया रूप दे सकता है
- औपचारिक देखभाल अर्थव्यवस्था में नौकरियों का सृजन करना:
- बाल देखभाल, वृद्ध देखभाल और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों का विस्तार।
- ICDS और राष्ट्रीय क्रेच योजना के तहत आँगनवाड़ी, शिशुगृह और सामुदायिक बाल देखभाल का विस्तार।
- देखभाल कार्य का पुनर्वितरण:
- पितृत्व अवकाश और लचीली कार्य नीतियों को प्रोत्साहित करने से अवैतनिक देखभाल ज़िम्मेदारियों का पुनर्वितरण हो सकता है।
- उदाहरण: स्वीडन के साझा अभिभावकीय अवकाश ने कार्यस्थलों में लैंगिक समानता में सुधार किया है।
- महिला LFPR में वृद्धि:
- किफायती बाल देखभाल तक पहुँच महिलाओं को औपचारिक रोज़गार के लिये स्वतंत्र बनाती है।
- देखभाल संबंधी खर्चों पर कर छूट का विस्तार और कॉर्पोरेट कंपनियों को कार्यस्थल पर क्रेच (जो पहले से ही प्रसूति प्रसुविधा (संशोधन) अधिनियम, 2017 के तहत अनिवार्य है) प्रदान करने के लिये प्रोत्साहन।
- घरेलू कामगारों के लिये सामाजिक सुरक्षा अनौपचारिक देखभालकर्त्ताओं को श्रम बाज़ारों में एकीकृत करती है।
- ई-श्रम पोर्टल और घरेलू कामगार कल्याण बोर्ड जैसी योजनाएँ पेंशन, बीमा एवं न्यूनतम मज़दूरी का विस्तार कर सकती हैं।
- नॉर्डिक देश सार्वभौमिक बाल देखभाल प्रदान करते हैं, जिससे महिलाओं के लिये LFPR 70% से अधिक तक बढ़ जाता है।
- कौशल विकास और व्यावसायिकीकरण:
- कौशल भारत मिशन के तहत देखभालकर्त्ताओं, नर्सों और घरेलू सहायकों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- देखभालकर्त्ताओं की वैश्विक माँग, विशेष रूप से जापान और यूरोप जैसे वृद्ध आबादी वाले देशों में, भारतीय महिलाओं के लिये प्रवास के अवसर खोल सकती है।
निष्कर्ष:
जैसा कि नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा था, “लैंगिक असमानता एक व्यापक कारक है जो कई अलग-अलग तरीकों से और विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाओं के माध्यम से कार्य करती है।” इस प्रकार, देखभाल कार्य को मान्यता देना कोई दान का कार्य नहीं, बल्कि आर्थिक न्याय और लैंगिक न्याय का मामला है। श्रम बाज़ारों में देखभाल को एकीकृत करके, भारत महिला श्रम बल प्रतिशत (LFPR) को बढ़ा सकता है तथा अपने जनांकिक लाभांश को प्राप्त कर सकता है।